Rohini Nakshatra: रोहणी नक्षत्र की संपूर्ण जानकारी
Rohini Nakshatra: रोहणी नक्षत्र 27 नक्षत्रो मे से चौथा नक्षत्र है। यह नक्षत्र वृषभ राशि के 10 डिग्री-0′-1 से 23 डिग्री-20′-0 के बीच है। इसके 5 तारे है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म इसी नक्षत्र मे हुआ था।
रोहणी का अर्थ: रोहिणी का मूल शब्द “रोहण” (उदय/ विद्यमान) है। रोहिणी का अन्य नाम नाम “सुरवी” अर्थात स्वर्गीय गाय (कामधेनु) भी है।
किसी भी वर्ष की 26 मई से 8 जून तक (14 दिनों में) इस नक्षत्र से सूर्य गुजरता है। इस प्रकार रोहिणी के प्रत्येक चरण में सूर्य लगभग साढ़े तीन दिन रहता है।
रोहणी नक्षत्र (पौराणिक मान्यता)
रोहणी नक्षत्र के देवता ब्रह्मा है। इनकी उत्पत्ति विष्णु के नाभि कमल से मानी जाती है। ब्रह्म पुराण अनुसार मनु इनके पुत्र है जिनसे मानव प्राकट्य हुए।
पौराणिकता अनुसार रोहिणी दक्ष प्रजापति और प्रसूति की पुत्री थी, दक्ष की 27 कन्याओ के साथ इसका विवाह चन्द्रमा से हुआ था। रोहणी चंद्र की सत्ताईस पत्नियों में सबसे सुंदर और प्रिय पत्नी थी। ज्यों-ज्यों चंद्र रोहिणी के पास जाता है, त्यों-त्यों उसका रूप अधिक खिल उठता है।
विशेषताएँ
इस नक्षत्र मे जन्म लेने वाले जातक का चेहरा गोल, कोमल अंग, मादक नयन, आकर्षक और वासनायुक्त होते है। जातक कला प्रेमी, धार्मिक, स्थिर चित्त, प्रेम प्रसंग मे रुचिवान, मृदुभाषी, भोजन और वस्त्राभूषण प्रेमी होता है।
रोहिणी नक्षत्र मे उत्पन्न जातक के नेत्र विशेष आकर्षक, प्रभावी होते देखे जाते है। यह नक्षत्र स्त्रियों के सुंदरता के लिए लिहाज से उत्तम है, संसार की अनेक सुन्दरियो का जन्म इस नक्षत्र मे हुआ है। जिस स्त्री का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ हो वह स्त्री, माता पिता पति की आज्ञाकारि औ ऐश्वर्यवान होती है।
- “श्रीकृष्ण”
- ओशो “रजनीश’
- महारानी “विक्टोरिया प्रथम “
आजीविका और व्यवसाय
जातक एजेंट्स, जज, फैंसी आइटमों के व्यापारी, जमीन, खेती, राजकीय प्रवृत्तियों द्वारा, साहित्य आदि से धन-वैभव और सत्ता प्राप्त करते हैं।
रोहणी नक्षत्र के दिन क्या करें क्या न करें?
अनुकूल कार्य: कृषि, व्यापार, वित्त, विवाह, औषधि, अन्वेषण, यात्रा, निर्माण की शुरुआत, प्रणय, आभूषण खरीदना आदि गतिविधियो के अनुकूल है।
प्रतिकूल कार्य: तोडफोड, विनाश, मृत्यु के लिये प्रतिकूल है। इसमे ब्रम्हा की उपासना शिव शाप के कारण वर्जित है।
प्रस्तुत फल जन्म नक्षत्र के आधार पर है। कुंडली में ग्रह स्थिति अनुसार फल में अंतर संभव है। अतः किसी भी ठोस निर्णय में पहुंचने के लिए सम्पूर्ण कुंडली अध्यन आवश्यक है।