2nd House: कुंडली में द्वितीय भाव (धन भाव)
Second House in Horoscope: कुंडली में द्वितीय भाव (धन भाव) का विशेष महत्व होता है। अगर आप अपनी कुंडली के द्वितीय भाव के बारे में जानना चाहते हैं तो आपको इस लेख को अंत तक पढ़ना चाहिए।
ज्योतिष में द्वितीय भाव से क्या देखा जाता है?
कुंडली में द्वितीय भाव (Second House) व्यक्ति की संपत्तियों, पैतृक सम्पत्ति, खुशहाली, सुख-दुःख और आयु के बारे में सूचना देती है। वृहद पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार..
धनं धान्यं कुटुम्बांश्च मृत्युजालममित्रकम्
धातुरत्नादिकं सर्व धनस्थानान्निरीक्षयेत् ।।
अर्थात: द्वितीय भाव से धन, धान्य, कुटुम्ब, मृत्यु, शत्रु और संचित धन का विचार किया जाता है।
।। अथ लग्नभावाध्यायः ।।
धनलाभ योग :-
धनेशो धनभावस्थः केन्द्रकोणगतोऽपि वा
धनवृदिधकरो ज्ञेयस्त्रिकस्थो धनहानिकृत् ।
धनदश्व धने सौम्यः पापो धनविनाशकृत् ।
सौम्यग्रहयुते दृष्टे धनलाभं विनिर्दिशेत् ।।
अर्थात: धनेश यदि द्वितीय भाव में ही हो, अथवा केन्द्र त्रिकोण (1,4, 5, 7,9,10) में हो तो धन वृदिधकारक होता है। इसके विपरित यदि यदि धनेश त्रिक भाव (6,8,12) में स्थित हो तो धन हानि होती है।
धन भाव में शुभ ग्रह धनप्रद तथा धन भाव में पाप ग्रह धननाशक होते हैं। यदि धनस्थ शुभ ग्रह या धनेश, शुभ युक्त या दृष्ट हो तो धनलाभ होता रहता है।
धनाधिपो गुरुर्यस्यधनभावगतो भवेत् ।
तावुभौ केन्द्रकोणस्थौ धनवान् मानवो भवेत् ।।
धनेशे लाभभावस्थे लाभेशे वा धनं गते ।
तावुभौ केन्द्रकोणस्थौ धनवान् मानवो भवेत् ।
अर्थात: यदि धनेश गुरु हो (जो की वृश्चिक या कुम्भ लग्न की कुंडली में ही संभव है) तथा गुरु द्वितीय भाव में हो अर्थात स्वग्रही हो साथ में मंगल भी हो तो मुनष्य धनवान होता है।
धनेश यदि एकादश भाव में हो या लाभेश धनस्थान में गया हो अथवा ये दोनों केन्द्र त्रिकोण में गए हों तो मनुष्य धनवान् होता है।
धनहानि योग :-
धनेशे रिपुभावस्थे लाभेशे तद्गते यदि
वित्तलाभौ पापयुक्तौ दृष्टौ निर्धन एव सः ।
धनलाभाधिपावस्तौ पापग्रहसमन्वितौ
जन्मप्रभृतिदारिद्र्यं भिक्षान्नं लभते नरः ।
ष्ठाष्टमव्ययस्थी चेदधनलाभाधिपौ मुने ।
लाभे कुजे धने राहौ राजदण्डाद् धनक्षयः ।।
अर्थात: यदि धनेश षष्ठभाव में लाभेश के साथ स्थित हो और घन व लाभ भाव में पापग्रहों का योग या दृष्टि हो तो मनुष्य निर्धन होता है।
यदि धनेश व लाभेश 6, 8, 12 में स्थित हों तथा मंगल एकादश स्थान में व राहु द्वितीय स्थान में हो तो राजा (सरकारी जुर्माना) के दण्ड के कारण धनहानि होती है।
नेत्र विचार :-
नेत्रेशे बलसंयुक्ते शोभनाक्षो भवेन्नरः
षष्ठाष्टमव्ययस्थे च नेत्रवैकल्यवान् भवेत् ।।
धनेशे पापसंयुक्ते धने पापसमन्विते
पिशुनकसत्यवादी च वातव्याधिसमन्वितः । ।
अर्थात: यदि द्वितीयेश व द्वादशेश बलवान् होकर शुभ भाव में स्थित होतो मनुष्य सुन्दर नेत्रों वाला होता है। यदि धनेश पापयुक्त हो तथा धनभाव में भी पाप ग्रह हो तो मनुष्य चुगलखोर, झूठा व वात रोगी होता है।
टिप्पड़ी: द्वितीय और द्वादश भाव नेत्र है। इन भावो के शुभ होने पर नेत्र स्वस्थ ओर आकर्षक होते है। इसी प्रकार इन भावो अपर प्रतिकूल प्रभाव व्यक्ति को नेत्र रोगी बनाता है।
निष्कर्ष: कुंडली में द्वितीय भाव एक महत्वपूर्ण भाव है। इसलिए इस भाव का सावधानी पूर्वक अध्यन करना चाहिए।