शंकर अबाजी भिसे (Shankar Abaji Bhise)
शंकर अबाजी भिसे (Shankar Abaji Bhise) भारत के एक महान वैज्ञानिक थे, जिन्होंने करीब 200 आविष्कार किया, जिनमे से 40 उनके नाम पेटेंट है। उनके आविष्कार की वजह से उन्हें एडिसन ऑफ इंडिया यानी भारत का एडिसन भी कहा जाता हैं।
Shankar Abaji Bhise (Edison of India)

पूरा नाम | शंकर अबाजी भिसे (Shankar Abaji Bhise) |
जन्म | 29 अप्रैल 1867 को बॉम्बे |
मृत्यु | 7 अप्रैल 1935 |
व्यवसाय | वैज्ञानिक, आविष्कारक |
अविष्कार | 200 से अधिक आविष्कार जिसमे कोल गैस उपकरण, ऑप्टिकल इल्यूजन, पेकिंग मशीन, टाइप सी कास्टिंग और कंपोजिंग मशीन, इलेक्ट्रीक मशीन प्रमुख है। |
अन्य जानकारी | 200 आविष्कार और 40 से अधिक पेटेंट करने के कारण भारत का एडिसन कहा जाता हैं। मुम्बई में साइं सक्लब की स्थापना। |
शंकर अबाजी भिसे जीवनी (Biography of Shankar Abaji Bhise in Hindi)
शंकर अबाजी भिसे का जन्म 29 अप्रैल 1867 को बॉम्बे में हुआ था। बचपन के दिनों से ही उन्हें विज्ञान में काफी लगाव था। मात्र 14 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने घर में कोल गैस उपकरण बनाया था। 16 वर्ष की आयु में उन्होंने आविष्कार के लिए उन्होंने इंग्लैंड या अमेरिका जाने का फैसला किया।
1890- 95 तक उन्होंने ऑप्टिकल इल्युजन पर काम किया। उन्होंने एक ठोस पदार्थ को दूसरे ठोस पदार्थ में परिवर्तित होने की प्रक्रिया का प्रदर्शन किया। उन्होंने इंग्लैंड के मैनचेस्टर में इस तरह के शो का आयोजन किया। विदेशी लोगो ने जो आविष्कार किए थे। उसकी तुलना में शंकर अबाजी भिसे का आविष्कार बेहतर माना गया। अल्फ्रेड बेव नाम के प्रसिद्ध वैज्ञानिक ने उनकी तारीफ करी और उन्हें गोल्ड मेडल से भी सम्मानित किया गया।
साइंस कल्ब की स्थापना
जब शंकर अबाजी भिसे मुंबई में रहते थे तब उन्होंने एक साइंस कल्ब की स्थापना की थी। वह विविध कला प्रकाश नाम के मराठी पत्रिका का प्रकाशन भी करते थे। इसके माध्यम से वह आम भाषा में लोगो को विज्ञान का महत्व समझाते थे।
पैकिंग मशीन का आविष्कार
लंदन से प्रकाशित होने वाली एक पत्रिका ने आविष्कार प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता में एक ओटोमेटिक मशीन बनाने की थी जो निश्चित मात्रा (जैसे 500 ग्राम 1 किलो) में चीनी, आटा, चावल के ढेर से खुद पैकेजिंग कर दें।
शंकर भिसे ने जो डिजाइन बनाकर भेजा उसे सर्वाधिक पसंद किया गया। इससे बाज़ार में उनकी एक आविष्कारक के तौर पर पहचान बन गई।
प्रिंटिंग के क्षेत्र में क्रांतिकारी आविष्कार
शंकर जी का सबसे प्रसिद्ध आविष्कार टाइप सी कास्टिंग और कंपोजिंग मशीन थी। उन दिनों टाइप सी कास्टिंग मशीन बड़ी धीमी रफ्तार वाली होती थी। उन्होंने एक ऐसी टाइप मशीन बनाई जिससे छपाई की रफ्तार काफी तेज़ हो गई।
लंदन के कुछ इंजीनियर को उनके आविष्कार पर भरोसा नहीं हुआ ओर उन्होंने शंकर जी को चुनौती दी। उन्होंने 1908 में एक ऐसी मशीन बनाई जिसकी मदद से हर मिनट 1200 अलग अलग अक्षरों की छपाई ओर असैंबलिग हो सकती थी। उसके बाद उनके आलोचक भी उनके प्रतिभा का लोहा मान गए।
प्रिंटिंग टेक्नोलोजी में 40 पेटेंट उन्होंने अपने नाम किए। ओर अमेरिका में एक प्रिंटिंग मशीन बनाने वाली एक कंपनी बनाकर दुनिया भर में उसे बेचा।
ऑटोमोडीन दवा का आविष्कार
शंकर अबाजी भिसे ने ओटोमोड़ीन नामक एक एंटीसेप्टिक दवाई बनाई थी। जिसका पहले विश्वयुद्ध में बड़े पैमाने में प्रयोग हुआ था। वह इस दवा को बनाने के लिए भारत में एक कंपनी खोलना चाहते थे मगर उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी।
शंकर अबाजी भिसे के अन्य आविष्कार
इसके अलावा भी उन्होंने कई बड़े आविष्कार किए। इन्होंने केमेस्ट्री और इलेक्ट्रिसिटी के फिल्ड में भी काम किया। 1917 में एक साबुन भी बनाया था। यह सारे आविष्कार उन्होंने एक अंग्रेजी कंपनी को बेच दिए। हवा से गैसो को अलग करने वाला इलेक्ट्रिक मशीन भी बनाया। उन्होंने एक इंजन भी बनाया था जो सूर्य के प्रकाश से एनर्जी हासिल करता था।
शंकर अबाजी भिसे शोहरत से गुमनामी में क्यों खो गए?
भारतीय राष्ट्रवादी नेता “दादाभाई नौरोजी” लंदन में पहले ही प्रतिष्ठित थे। भिसे ने प्रसिद्ध नौरोजी को अपने नए आविष्कारों (किचन गैजेट्स, टेलिफोन, सिरदर्द के इलाज के लिए एक डिवाइस और ऑटोमेटिक टॉयलेट) के बारे में बताया था। दादाभाई नौरोजी ने अभाजी भिसे के सभी प्रयासों में उनका समर्थन किया।
उन्होंने ब्रिटेन में निवेशकों को खोजने में मदद की, लेकिन आशा के मुताबिक चीजें नहीं हो पाई। उस समय नौरोजी ने इंग्लैंड में भिसे को तकनीकी कंपनियों में काम दिलाने और एग्रीमेंट तय करने में नौरोजी ने मदद की। इससे एक तरफ भिसे को शोहरत मिली, तो वही उनके पतन का कारण भी बनी।
भिसोटाइप को लेकर नौरोजी की मदद से कार्ल मार्क्स के अनुयायी “हिंडमैन” के साथ करार की बात आगे बढ़ी। हिंडमैन ने भिसे को फाइनेंस का भरोसा दिलाया था। उस वक्त की प्रिंटिंग की सबसे बड़ी कंपनी लिनोटाइप के साथ बातचीत आगे बढ़ी और भिसे अपनी मशीन को फाइनल टच देने की तैयारियों में जुट गए, लेकिन, ऐन मौके पर हिंडमैन ने फाइनेंस न जुटा पाने पर अफसोस जताया।
भिसे का काफी वक्त और पैसा लगा चुकने के बाद भिसे के पास कुछ नहीं बचा था। अंततः 1908 में उन्हें बॉम्बे लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा। बॉम्बे आकर उन्होंने अपने टाइपकास्टर के बारे में क्रांतिकारी नेता “गोपाल कृष्ण गोखले” को बताया। उन्होंने भिसे को बड़े उद्योगपति “रतन जे टाटा” से मिलवाया।
रतन टाटा ने उनके आविष्कारों को वित्तपोषित करने का निर्णय लिया, लेकिन उनकी प्रिंटिंग की परियोजना नहीं चल पाई। इसके बाद भिसे टाटा के भरोसे पर अमेरिका गए। न्यूयॉर्क में भिसे को अपने आयोडीन घोल वाले आविष्कार के लिए काफी दौलत व शोहरत मिली। लेकिन, भिसोटाइप के लिए न तो वो मार्केटिंग कर पाए और न ही उस मशीन से उन्हें कुछ हासिल हो पा रहा था।
इसके बाद उन्होंने ‘स्पिरिट टाइपराइटर’ भी बनाया. लेकिन, इसका अंजाम भी भिसोटाइप की तरह निराशाजनक रहा। भिसे के अंतिम समय तक उन्हें ‘भारत का एडिसन’ तो कहा जाता रहा लेकिन उनके आविष्कारों की कद्र हुई इसीलिए उनका नाम इतिहास के पन्नों में कहीं खो गया।
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निष्कर्ष:- शंकर अबाजी भिसे एक महान आविष्कारक थे, यदि उनके आविष्कारों की कद्र की जाती तो शायद स्थिति कुछ और होती। उस समय भारत गुलामी और गरीबी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था। विदेशियों द्वारा भारतीयो को हीन भावना से देखा जाता थे। शायद इन्ही कारणों से उन्हें उतनी लोकप्रियता और सहायता नही मिली, जिसके वो हकदार थे।