Shatabhisha Nakshatra: शतभिषा नक्षत्र की सम्पूर्ण जानकारी
Shatabhisha Nakshatra: भारतीय खगोल मे यह 24 वा नक्षत्र है। यह राशि पथ में 306.40 से 320.00 अंशों के मध्य स्थित हैं। चरणाक्षर – गो, सा, सी, सू है।
शतभिषा का शाब्दिक अर्थ: जैसा कि नाम से ही इष्पष्ट है, इस नक्षत्र में सौ तारे हैं। इसलिये इसे शत्तारिका कहते है। इसका आकार वृत्त के समान अर्थात् गोल है। वरुण को देवता एवं राहु को इस नक्षत्र का अधिपति माना गया है।
पौराणिक मान्यता
इसके देवता वरुण है। वैदिक धर्म में वरुण को आकाशीय जल का स्वामी (देवता) माना गया है। ऋग्वेद और अथर्ववेद मे वरुण को सर्वज्ञ कहकर झूठे को जाल मे फसाकर पकड़ने वाला माना है।
हिन्दू पौराणिकता अनुसार ये जल और जल के सभी तत्वो तथा समुद्र और नदियो के स्वामी है। वरुण माता अदिति और कश्यप के पुत्र चौथे आदित्य है। ये पीत वर्णी ,हाथ मे नागपाश (वरुणास्त्र) धारण किये हुए है। इनका वाहन मगर है।
विशेषताएँ
इस नक्षत्र में जन्मा पुरुष आकर्षक नेत्र, चमकदार चेहरा, उभरा उदर, उन्नत नाक वाला होता है। स्त्री लम्बी दुबली, अतिसुन्दर, उन्नत नितम्ब, गुलाबी अधर, चौडे कपोल वाली होती है। स्त्री जातक को कभी-कभी वैधव्य योग भी होता है।
जातक रहस्यमी, दार्शनिक, दूरदर्शी, वैज्ञानिक विचारधारा और कुशल चिकित्सक होता है। ऐसे जातक प्रायः क्रोधित नहीं होते लेकिन क्रोधित होते हैं तो उन्हें रोक पाना कठिन होता है।
अनुकुल प्रतिकूल कार्य
यह व्यापारिक लेन-देन, अनुबन्ध, शिक्षा, ज्ञान, मनोरंजन, वाहन, सायकल यात्रा. खगोल, ज्योतिष, औषधि, जलीय पदार्थ, तकनीक के अनुकूल है।
यह प्रारम्भ, शिशुजन्म, विवाह, प्रजनन, मुकदमा बहस, सामाजिकता, वित्त, वस्त्र के लिए प्रतिकूल है।