शिव भक्त उपमन्यु | पौराणिक कथा
धौम्य ऋषि के बड़े भाई और मुनि व्याघ्रपाद के पुत्र, “शिव भक्त उपमन्यु” (Shiv Bhakt Upmanyu) ने किस प्रकार दूध पाने के लिए शिव आराधना करके सब कुछ पा लिया, इसका वर्णन हमे शिव पुराण में मिलता हैं। कथा कुछ इस प्रकार है-
शिव भक्त उपमन्यु कथा (story of Shiv Bhakt Upmanyu in Hindi)
एक बार ऋषि गणों ने वायुदेव से पूछा- हे वायुदेव! आप हमें भगवान शिव के परम भक्त “उपमन्यु’ की भक्ति के विषय में बताइए। वायुदेव बोले- हे मुनियों! उपमन्यु बचपन से ही परम तपस्वी हुए हैं। उपमन्यु परम तपस्वी व्याघ्रपाद मुनि के पुत्र थे। भगवान शिव की परम भक्ति के कारण ही इन्हें शिव पुत्र कार्तिक एवं गणेश के समान शास्त्रों एवं ज्ञान की प्राप्ति हुई।
जब उपमन्यु छोटे बच्चे थे। तब उनकी मां उनके पीने के लिए दूध का प्रबंध भी नहीं कर पाती थी। एक दिन जब उपमन्यु दूध पीने के लिए हठ करने लगे तो मां ने भूने-पिसे अनाज का आटा घोलकर दिया। उपमन्यु ने उसे पीने से मना कर दिया। वह जान चुका थे कि उसकी मां दूध के नाम पर जो दे रही है, वह दूध नहीं है। उपमन्यु ने कहा, यह दूध नहीं है मां। मुझे दूध चाहिए। मैं दूध ही पीऊंगा।
अपने पुत्र की बातें सुनकर माता की आंखों में आंसू आ गए और वह बोली- पुत्र शिव भक्ति के बिना किसी भी वस्तु की प्राप्ति नहीं होती। इस संसार में सबकुछ उन्हीं की इच्छा से होता है। भला हम वनों में रहने वालों को दूध कहाँ से मिलेगा? तुम रोना बंद करो, इससे मुझे दुख पहुंचता है। तब अपनी माता के इस प्रकार के वचनों को सुनकर वह बालक उपमन्यु बोला- माते! मैं शिवजी को प्रसन्न करके ही दूध प्राप्त करूगा। आप मुझे बताये शिव कहा रहते है और कैसे प्रसन्न होते है?
तब माता बोली- बेटा! भगवान शिव तो सर्वत्र विद्यमान हैं। वे ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र द्वारा प्रसन्न होते हैं। माता ने समझाकर उपमन्यु को शांत कर दिया परंतु बालक का जिज्ञासु मन शांत न हुआ। उसने अपने मन में शिवजी के दर्शन करने का निश्चय कर लिया था। उस रात जब वह अपनी माता के साथ सोया हुआ था, तभी उसकी आँख खुली और उसे लगा जैसे शिवजी उसे बुला रहे हैं।
वह रात को ही घर से निकल गया। बालक ‘ॐ नमः शिवाय का जाप करता हुआ वनों में चला गया। उसे न तो वन में भटक जाने का भय था, ना ही किसी हिंसक पशु द्वारा खा लिए जाने की चिंता थी। उसके मन में तो उस समय सिर्फ और सिर्फ भगवान शिव के साक्षात्कार का ही संकल्प था। चलते-चलते ही रास्ते में उसे एक शिवालय दिखाई दिया।
बालक उपमन्यु ने शिवालय में प्रवेश किया और ॐ नमः शिवाय का जाप करते हुए शिवजी की मूर्ति से लिपट गया। मूर्ति से लिपटकर वह रोता रहा। इस प्रकार तीन दिन बीत गए। बालक बेहोशी में भी मंत्र का जाप करता रहा। एक पिशाच ने उस बालक को बेहोश देखा तो वह अपनी भूख शांत करने के लिए उसे उठा ले गया परंतु शिव कृपा से एक साप ने आकर पिशाच को डस लिया। जब वह होश में आया तो अपने को शिवमूर्ति के सामने न पाकर वह दुखी हुआ।
वायुदेव बोले-है ऋषिगण! बालक उपमन्यु रोते हुए भगवान शिव को हूंढने लगा। उस समय वह भूख और प्यास से व्याकुल था। भगवान शिव ने जब दिव्य दृष्टि से देखा कि उनका परम भक्त उपमन्यु उनके दर्शनों के लिए भटक रहा है तो वे तुरंत उठकर जाने लगे। तभी देवी पार्वती जी उन्हें रोककर पूछने लगी- स्वामी! आप कहां जा रहे हैं? तब शिवजी बोले देवी। मेरा भक्त उपमन्यु मुझे पुकार रहा है। उसकी मां भी रोती हुई उसे ही ढूंढ रही है। मैं वहीं जा रहा हूं।
शिवजी यह बता ही रहे ये कि सब देवता वहां जा पहुंचे। उन्होंने भगवान शिव-पार्वती को प्रणाम किया और उनसे संसार में अमंगल कारक दुर्भिक्ष का कारण पूछा। तब शिवजी ने उन्हें बताया कि उपमन्यु की तपस्या पूरी हो चुकी है और मैं उसे ही वर देने जा रहा हूँ। तुम लोग अपने-अपने स्थान को जाओ। यह कहकर शिवजी देवराज इंद्र का रूप धारण करके ऐरावत हाथी पर सवार होकर बालक उपमन्यु के पास गए।
भगवान शिव इन्द्र के रूप में उपमन्यु के पास पहुँचकर बोले- बालक हम तुम्हारे तप से प्रसन्न हैं। मांगों। क्या मांगना चाहते हो? उपमन्यु ने हाथ जोड़कर देवेंद्र को प्रणाम किया और बोला- हे देवेंद्र! आप मुझे भगवान शिव की भक्ति और श्रद्धा प्रदान कीजिए। यह सुनकर इदरूपी शिव जानबूझकर अपनी निंदा करने लगे। यह सुनकर बालक उपमन्यु को क्रोध आ गया और उसने उन्हें उसी वक्त वहां से चले जाने के लिए कहा।
उपमन्यु की शिव भक्ति से प्रसव होकर शिवजी ने उसे साक्षात दर्शन दिए। शिवजी को सामने पाकर उपमन्यु उनके चरणों में गिर पड़ा और उनकी स्तुति करने लगा। तब उसे गोद में लेकर शिवजी बोले-उपमन्यु! मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ। मेरी कृपा से तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। तुम्हारा परिवार धनी हो जाएगा तथा तुम्हें दूध, घी और शहद आदि वस्तुओं की कोई कमी नहीं रहेगी।
फिर शिव-पार्वती ने उपमन्यू को अविनाशी ब्रह्म विद्या, ऋद्धि-सिद्धि प्रदान की और उन्हें पाशुपत व्रत का तत्व ज्ञान दिया और सदा यौवन सम्पन्न रहने का आशीर्वाद प्रदान किया। भगवान शिव के आशीर्वादों को पाकर उपमन्यु कृतार्थ हो गया और बोला-है देवाधिदेव महादेव! कल्याणकारी सर्वश्रु! आप मुझे अपनी भक्ति का वर प्रदान करें। मेरी प्रीति आप में सदा बनी रहे। मैं संसार में आपकी भक्ति का ही प्रचार-प्रसार करू।
शिवजी ने प्रसन्न होकर कहा-बालक जैसा तुम चाहोगे वैसा ही होगा। तुम्हारी सभी कामनाएं पूर्ण होंगी। यह कहकर शिव देवी पार्वती सहित अंतर्ध्यान हो गए और उपमन्यु प्रसन्नतापूर्वक घर लोट आया।
You Must Read:- Shiv Bhakt Upamanyu
Tags:- Shiv Bhakt Upmanyu Ki katha, Shiv Purane Story