Shiv Parvati: शिव पार्वती विवाह में महर्षी अगस्त्य की भूमिका
शिव पार्वती विवाह एक प्रसिद्ध कथा है जो भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह का वर्णन करती है। लेकिन कम ही लोग जानते है कि शिव पार्वती विवाह करवाने में महर्षि अगस्त्य का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा था। आइए जानते है आजके इस लेख में..
शिव पार्वती विवाह में महर्षि अगस्त्य की भूमिका
हिमालय पर्वत को पर्वतों का राजा भी कहा जाता है। हिमालय की पत्नी का नाम था मेना। उनकी पुत्री का नाम था पार्वती। पार्वती ने बड़ी गहरी तपस्या करके भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने का वर प्राप्त किया।
जब “पार्वती-शिव का विवाह हिमालय पर्वत पर आयोजित किया गया था। विवाह में भाग लेने के लिए सभी देवी-देवताएं, यक्ष, गंधर्व और अन्य दिव्य प्राणियों ने एक स्थान पर इकट्ठा हो गए।
भूमि के राजाओं और महाराजों ने भी उस स्थल पर आगमन किया। इसके परिणामस्वरूप, हिमालय की भूमि का संतुलन बिगड़ गया और वह एक ओर झुक गया, जिसके कारण पृथ्वी कांपने लगी, पर्वत झुकने लगे और समुद्र तेज गति से बहने लगा। सभी लोगों के मन में प्रलय की भयंकर भावना उत्पन्न होने लगी।
सभी देवताएं इस संकट से पृथ्वी को बाहर निकलने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करने लगें। शिव ने उन्हें समझाया, “तुम सभी इसी समय मेरे विवाह के दृश्य को देखने आए हो, इसलिए धरती का संतुलन बिगड़ गया है। इसे ठीक करने के लिए महर्षि अगस्त्य की आवश्यकता है। वे ही दक्षिण की ओर जाकर संतुलन को पुनः स्थापित कर सकते हैं।”
इसके बाद, भगवान शिव ने महर्षि अगस्त्य को दक्षिण की ओर जाने का आदेश दिया। लेकिन वह शिव पार्वती विवाह में सम्मलित नही हो सकते थे, जिस कारण वह दुखी हो गए। मन ही मन सोचने लगे कि “शिव-पार्वती का विवाह देखने का सौभाग्य मुझे नही है।”
महर्षी अगस्त्य कि व्यथा का कारण शिव जान गये। उन्होंने कहा “आप पहले लोक मंगल कार्य करने दक्षिण कि ओर चलिये। आप हमारे विवाह देखने की इच्छुक है ना! आप जिस जगह पर जा रहे है; वहीं, से हमारी विवाह देख सकेंगे।
अगस्त्य संतुष्ट होकर तुरंत दक्षिण दिशा कि ओर चले गये। इसके परिणामस्वरूप, धरती का संतुलन पुनः स्थापित हुआ और हिमालय पर्वत पुनः सामान्य हो गया। जिससे भूभाग फिर से समान हुआ।
इस तरह अगस्त्य जग कल्याण के लिये, देवधिदेव शिव के कार्य को संभाला और उनकी अनुग्रह को प्राप्त किया। धन्य है महर्षी अगस्त्य..🙏