Rudrabhishek: रुद्र अभिषेक से करें शिव को प्रसन्न
Rudrabhishek in Hindi: भगवान शिव का अभिषेक करने से भक्तों के सभी मनोरथ पूर्ण होती हैं। आइए विस्तार से जानें रुद्राभिषेक के संबंध में..
सम्पूर्ण शिव रुद्राभिषेक (Rudrabhishek Complete Guide)

शिव और रुद्र एक ही हैं, शिव को ही रुद्र की संज्ञा दी गयी है। भगवान शिव कल्याणकारी देवता हैं उनकी पूजा से सारे मनोरथ पूरे होते हैं भारतीय वैदिक शास्त्रों में भगवान शिव पूजन के अनेक विधान बताए गए है, उसमें से अभिषेक भी एक विधान है। और पढ़ें: एकादश रुद्र (भगवान शिव के 11 स्वरूप)
रुद्राभिषेक के फायदें (Benefits of Rudrabhishek in Hindi)
रूद्र का अर्थ है- ‘शिव’ और अभिषेक का अर्थ है ‘स्नान’ (Bath) करना अथवा कराना। अतः रूद्राभिषेक का शाब्दिक अर्थ हुआ शिवलिंग पर रुद्रमंत्रों के द्वारा अभिषेक करना।
रुद्राभिषेक भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल व प्रभावी तरीका है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद में रुद्र अभिषेक की महिमा बताई गयी है।
“रुद्राभिषेक से समस्त पाप धुल जाते है”- वेद कहते हैं कि हमारे दुखों का कारण हमारे पाप हैं और रुद्र अभिषेक से वो सारे पाप धुल जाते हैं और शिव का आशीर्वाद मिल जाता है। और पढ़ें: शिव द्वादश ज्योतिर्लिंग
यजुर्वेद में बताये गये विधि से रुद्राभिषेक करना अत्यन्त लाभकारी है परंतु जो लोग विधि विधान से शिव अभिषेक नहीं कर सकते वे लोग ‘ॐ नमः शिवाय’ का जाप करते हुए भी शिव अभिषेक का पूरा लाभ ले सकते हैं।
किस वस्तु के अभिषेक से क्या फल मिलता है? (Rudrabhishek Pooja vidhi in Hindi)

हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिये रुद्राभिषेक के पूजन के निमित अनेक द्रव्यों व अनेक पूजन सामग्री को बताया गया है। जैसी कामना और जैसा प्रयोग करना अभीष्ट हो, तदनुसार ही इनको काम में लिया जाता है-
जल- वर्षा
कुशा- असाध्य रोगों से शांति
गन्ने का रस- धन लाभ
शहद- धन लाभ
घी- धन लाभ, वंश विस्तार
इत्र- रोग शान्ति
दूध- आरोग्य, संतान सुख, दीर्घायु
गंगाजल– मनोवांछित, मोक्ष
शहद- शत्रु विजय, रोग शांत
शक्कर- पुत्र प्राप्ति
साधरणतः अभिषेक जल (गंगाजल मिश्रित) से किया जाता है। सोमवार, प्रदोष, शिवरात्रि पर दूध द्वारा अभिषेक किया जाता है विशेष पूजा में दूध, दही, घी, शहद, चीनी को मिलाकर पंचामृत बनाकर भी अभिषेक किया जाता है। और पढें: प्रदोष व्रत: कथा, मुहर्त एवं पूजा विधि
पारद शिवलिंग: ज्योतिर्लिंग और शक्ति पीठ में कभी भी रुद्राभिषेक किया जा सकता है। पारद शिवलिंग पर अभिषेक करने से लाभ तुरंत व सहस्त्रगुना होता है।
क्यों पसंद है भगवान शिव को सावन मास? (Scientific reason behind Shravan month)
सावन में हुआ था शिव-पार्वती विवाह: सावन के माह में शिवजी ने माता से विवाह किया था। इसलिए उन्हें यह माह प्रिय है।
सृष्टि को बचाने के लिए किया विषपान: समुन्द्र मंथन के दौरान शिव जी ने सृष्टि को बचाने के लिए अपने गले में विष धारण किया था। उस समय सावन का माह था। विष के काण उनके शरीर का तापमान बढ़ने लगा। देवताओं और दैत्यों ने उन पर शीतल जल डालकर उस ताप को शांत किया।
जिससे लोक कल्याण के लिये विष पीने वाले शिव को शीतलता मिलती है इसलिए सावन के माह में शिव का अभिषेक करने वाले को सहस्त्रगुना लाभ मिलता है। और पढ़ें: मासिक शिवरात्रि: कथा, मुहूर्त एवं पूजा विधि
शिव सावन में गए थे ससुराल: मान्यता अनुसार एक बार महादेव सावन मास में अपने ससुराल गए थे, जहां उनका अभिषेक और सेवा सत्कार किया गया। जिस कारण उन्हें यह माह अति प्रिय है।
शिव भक्त कावड़ यात्रा: गंगा जल से अभिषेक करने से बाबा शीघ्र प्रसन्न होते हैं। इसलिए पश्चिमी उत्त्तर प्रदेश, दिल्ली व इसके आसपास के लोग सावन माह में कांवड़ लेने जाते हैं और शिवलिंग का अभिषेक कर महादेव का आशीष पाते हैं। और पढ़ें: जानिए, शिवलिंग का रहस्य
रुद्राष्टधायी क्या है? (What’s is Rudhrashtdhayi)
रुद्राष्टाध्यायी को यजुर्वेद (Yajurveda) का अंग माना जाता है। दरसअल, रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद के कुछ मंत्रों को संकलित करके रुद्राष्टाध्यायी बनाया गया है। इसका संकलन कब और किसने किया?- यह अज्ञात है।
रुद्राष्टधायी में कुल 10 अध्याय है चूंकि इसके आठ अध्यायों में भगवान शिव की महिमा व उनकी कृपा शक्ति का वर्णन किया गया है। इसलिये इसका नाम रुद्राष्टाध्यायी रखा गया है। शेष दो अध्याय को “शांत्यधाय” और “स्वस्ति प्रार्थनाध्याय” के नाम से जाना जाता है।
रुद्राभिषेक के प्रकार (Types of Rudrabhishek)
रुद्राभिषेक मुख्यतः 5 प्रकार के होते हैं-
(1) रूपक
(2) रुद्र
(3) लघु रुद्र
(4) महारुद्र
(5)अति रुद्र
ये अनुष्ठान पाठात्मक, अभिषेकात्मक तथा हवनात्मक तीनों प्रकार से किये जा सकते हैं। इसलिए उक्त रुद्र के भी प्रत्येक में 3 प्रकार के होते हैं—(1) जपार्थ रुद्र (2) होमार्थ रुद्र (3) अभिषेकार्थ रुद्र
रूपक, रुद्री, लघुरुद्री, महारुद्री, अति रुद्री कैसे करते है?
रूपक या षडंग: पूरे दस अध्यायों को एक सामान्य आवृत्ति रूपक या पडंग पाठ कहलाता है। रूद्र के छ: अंग होने के कारण इसका पूरा पाठ पडंग पाठ कहलाता है।
रुद्री पाठ: साधारणत: एक ब्राह्मण द्वारा 11 बार (नमस्ते 16 व 66 मंत्रात्मक) पाठ द्वारा किया जाने वाला अभिषेक केवल रुद्र या ‘रुद्री पाठ’ कहलाता है।
लघु रुद्र: एकादशिनी रुद्र की ग्यारह आवृत्तियों के पाठ को लघुरूद्र पाठ कहा जाता है। यह लघु रुद्र अनुष्ठान एक दिन में 11 ब्राह्मण करके या एक ब्राह्मण द्वारा अथवा स्वयं लगातार 11 दिनों तक एक एकादशिनी पाठ नित्य करने पर सम्पन्न होता है।
महारुद्र: इसी तरह 11 बार लघुरुद्र का होना एक महारुद्र कहलाता है। महारुद्र अनुष्ठान लगातार 11 दिनों में 11 ब्राह्मण करके या एक दिन में 121 ब्राह्मणों द्वारा एक एकादशिनी पाठ करने पर सम्पन्न किया जा सकता है।
अतिरूद्र: महारूद की ग्यारह आवृत्तियों या एकादशिनी रुद्री की 1331 आवृत्तियों के पाठ को अतिरुद्र पाठ कहा जाता है। लगातार 11 दिनों में 121 ब्राह्मणों द्वारा एक एकादशिनी पाठ करने पर सम्पन्न होता है।
रुद्राभिषेक कब करना चाहिए? (When should Rudrabhishek be done?)
रुद्राभिषेक का फल बहुत शीघ्र प्राप्त होता है। वेदों में इसकी महानता का उल्लेख है। परंतु रुद्रअभिषेक से पूर्व कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है।
रुद्राभिषेक करने की तिथियां: कृष्णपक्ष की प्रतिपदा चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, शुक्लपक्ष की द्वितीय पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी, त्रयोदशी तिथि में अभिषेक करने से सुख समृद्धि संतान प्राप्ति व ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
कुंडली के अशुभ योग: कुंडली मे अशुभ योग, गृहकलेश, व्यापार में नुकसान, शिक्षा में रुकावट सभी बाधाओं को दूर करने में रुद्र अभिषेक लाभकारी है। और पढ़ें: शिव भक्त उपमन्यु (पौराणिक कथा)
रुद्रभिषेक के दौरान शिव वास जरूर देखें (How to check shiv vaas)
रुद्राभिषेक करते समय शिव वास का ध्यान रखना चाहिए, अन्यथा लाभ के स्थान पर हानि हो सकता है। आइए जानते है, शिव वास देखने का तरीका- शिव वास जानने का तरीका
• कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा अष्टमी, अमावस्या, तथा शुक्ल पक्ष की द्वितीय नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं अतः इस तिथि में रुद्राभिषेक हर तरह से श्रेष्ठ व लाभकारी होता है।
• कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, एकादशी व शुक्ल पक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में शिव कैलाश पर होते हैं अतः इस दिन अभिषेक करने से पारिवारिक सुख मिलता है।
• कृष्ण पक्ष की पंचमी, द्वादशी शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर बैठकर पूरे संसार का भ्रमण करते हैं अतः इन तिथियों पर किया अभिषेक भी लाभ देता है।
• कृष्ण पक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी व शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, पूर्णिमा में भगवान श्मशान में निवास करते हैं अतः इस वक्त रुद्राभिषेक करने पर अभिषेक कर्ता पर बड़ी विपत्ति आ सकती है।
• कृष्ण पक्ष की द्वितीया, नवमी, शुक्लपक्ष की तृतीया व दशमी में भोलेनाथ देवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं। इन तिथियों में किया गया अभिषेक संताप व दुख देता है।
• कृष्ण पक्ष की तृतीया, दशमी व शुक्लपक्ष की चतुर्थी, एकादशी में शिव माता गौरी के साथ एकान्त में रहते हैं अतः इस समय किया गया अभिषेक संतान को कष्ट देता है।
• कृष्ण पक्ष की षष्ठी, त्रयोदशी व शुक्लपक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी में रुद्रदेव भोजन करते हैं इस समय किया अभिषेक कष्ट देता है।
विशेष: ज्योतिलिंग, शक्ति पीठ, शिवरात्रि, प्रदोष, श्रावण के सोमवार में किया अभिषेक बिना विचार के किया जा सकता है।
सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी बुक पीडीफ (Saral Rusrashtdhayi Book PDF free Download)
इस लेख में आपको रुद्राभिषेक और रुद्राष्टाध्यायी के बारे में जानकारी दी गयी है। और प्रयास किया है कि आपको सरल भाषा में रुद्राभिषेक के महत्व को समझाया जा सकें।
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रूद्राभिषेक से जुड़े सवाल (Shiva Rudrabhishek FAQs)
अंतिम निर्णय: भगवान शिव अभीष्ट फल देने वाले है। संसार में कोई ऐसा सुख नहीं जो कि शिव उपासना से प्राप्त न हो और ऐसा कोई दुख नही जिसे भगवान शिव दूर न कर सकें। बस जरूरत है, तो सच्चे मन से उन्हें पुकारने की।
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