जानें, वेदवती कौन थी? उसने रावण को श्राप क्यों दिया
Vedvati Story: एक समय महाबली रावण पृथ्वी पर विचरता हुआ हिमालय पर जा पहुंचा। वहाँ उसने साक्षात् देवकन्या के समान एक ऐसी कन्या देखी जो मृगचर्म धारण किये तपोनुष्ठान में रत थी। उस रूपवती देवकन्या को देखते ही रावण ने उसे प्राप्त करना चाहा।
रावण ने कन्या से पूंछा- “तू किसकी पुत्री है पति कौन है? तेरी युवावस्था और सौन्दर्य इस प्रकार के तप के योग्य नहीं है, फिर तू इतना कठिन तप किसलिए करती है? तू अपने इस संकल्प को त्याग दे।”
तब उस यशस्विनी एवं तपस्विनी कन्या ने रावण से कहा कि ‘मैं ब्रह्मर्षि कुशध्वज की पुत्री हूँ। मेरा नाम वेदवती है। मेरे विवाह के लिए कितने ही देवता, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और नाग मेरे पिता से मिले और मुझसे ब्याह कर देने की प्रार्थना की, परन्तु मेरे पिता यह चाहते थे कि उनके जामात्र सुरेश्वर विष्णु हो, अन्य नहीं।
इससे बलगर्वित दैत्येन्द्र शुम्भ ने उन्हें रात्रि में सोते समय मार डाला। मेरी महाभागा माता उनकी शव के साथ सती हो गयीं। तबसे में अपने पिता की इच्छानुसार श्रीविष्णु को ही अपना पति बनाने के लिए तप कर रही हूँ जो सत्य बात थी, वह मैंने तुमसे कह दी। उन पुरुषोत्तम के अतिरिक्त मेरा कोई अन्य पति नहीं हो सकता है।
मैं अपने तपोबल से त्रैलोक्य में जो कुछ होता है वह सब जानती हूँ इसलिए हे रावण! मैंने तुन्हें पहचान लिया है। तुम यहाँ से चले जाओ।
यह सुनकर रावण विष्णु की निन्दा करते हुएं अपने पुष्पक विमान से उतर पड़ा और देववती के केशों को पकड़ कर उसे जबरदस्ती अपने साथ ले जाना चाहा।
इस पर वेदवती ने क्रोध भरकर अपने हाथ से जो इस समय खड्ग रूप हो गये थे—अपने उन बालों को काट डाला और अपने क्रोध से अग्नि प्रदीप्त कर उस अग्नि में प्रवेश कर गई तथा यह कह गई कि रे पापात्मा! तेरा वध करने के लिए मैं पुनः उत्पन्न होऊँगी।
यदि मैंने कुछ भी सुकृत किया हो तो उसके पुण्य से फिर किसी धर्मात्मा के गृह में जन्म धारण करू। ऐसा कह वेदवती उस धधकती चिता में कूद पड़ी चिता के चारों ओर पुष्प छितरा उठे।
वही वेदवती जनकराजा के गृह में कन्या रूप से उत्पन्न होकर सीता हुई है। जिन्हें रावण हरण कर लंका ले आया और विष्णु अवतार श्री राम ने रावण का वध कर दिया।