सुभाष चन्द्र बोस, जीवनी | Subhas Chandra Bose Biography
सुभाष चन्द्र बोस (बांग्ला: उच्चारण: शुभाष चॉन्द्रो बोशु) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था।
उनके द्वारा दिया गया जय हिंद का नारा भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया है। “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा” का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आया।
सुभाष चन्द्र बोस, जीवनी (Subhas Chandra Bose Biography in Hindi)
पूरा नाम | सुभाष चंद्र बोस ‘नेताजी’ |
जन्म | 23 जनवरी 1897 कटक, बंगाल प्रेसीडेंसी का ओड़िसा डिवीजन |
मृत्यु | 18 अगस्त, 1945, ताइवान |
पिता | जानकीनाथ बोस, |
माता | प्रभावती बोस |
पत्नी | ऐमिली शिंकल (Emilie Schenkl), 1937 में प्रेम विवाह किया था, लेकिन दुनिया सेे रखा। |
संतान | पुत्री- अनीता बोस |
नागरिकता | भारतीय |
शिक्षा | बी०ए० (आनर्स) |
विद्यालय | प्रेज़िडेंसी कॉलेज, स्कॉटिश चर्च कॉलेज, (कोलकत्ता) केंब्रिज विश्वविद्यालय |
प्रसिद्धि कारण | भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी, आजाद हिंद फौज की स्थापना |
पदवी | अध्यक्ष (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस)- 1938) सुप्रीम कमाण्डर आज़ाद हिन्द फ़ौज |
राजनैतिक पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1921–1940, फॉरवर्ड ब्लॉक 1939–1940 |
अन्य जानकारी | नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वाधीनता संग्राम के उन योद्धाओं में से एक थे, जिनका नाम और जीवन आज भी करोड़ों देशवासियों को मातृभमि के लिए समर्पित होकर कार्य करने की प्रेरणा देता है। |
जन्म और पारिवारिक जीवन
नेताजी सुभाषचन्द्र बोस (Subhas Chandra Bose) का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 को ओड़िशा के कटक शहर मे हुआ था। उनके पिता का नाम जानकीनाथ बोस और माँ का नाम प्रभावती था। जानकीनाथ बोस एक मशहूर वकील थे। पहले वे सरकारी वकील थे मगर बाद में उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी।
प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 सन्तानें थी जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष उनकी नौवीं सन्तान और पाँचवें बेटे थे। सुभाष को सबसे अधिक लगाव अपने बड़े भाई शरद चन्द्र से था। सुभाष उन्हें मेजदा कहते थे।
शिक्षा और प्रारम्भिक जीवन
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कटक के ही रेवेंशॉव कॉलेजिएट स्कूल में की थी। तत्पश्चात् उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रसिद्ध प्रेजीडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई।
सुभाष चंद्र बोस के पिता जानकीनाथ बोस की इच्छा थी कि सुभाष आईसीएस बनें। किन्तु उनकी आयु को देखते हुए केवल एक ही बार में यह परीक्षा पास करनी थी। यह उस जमाने की सबसे कठिन परीक्षा मानी जाती थी।
इंडियन सिविल सर्विस की तैयारी के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय चले गए।
इंडियन सिविल सर्विस (आईसीएस) का सफर
सुभाष चन्द्र बोस 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैण्ड तो चले गये। लेकिन परीक्षा की तैयारी के लिये लन्दन के किसी स्कूल में दाखिला नही मिला। किसी तरह किट्स विलियम हाल में ऑनर्स की परीक्षा का अध्ययन करने हेतु उन्हें प्रवेश मिल गया।
इससे उनके रहने व खाने की समस्या हल हो गयी। हाल में एडमीशन लेना तो बहाना था असली मकसद तो आईसीएस की परीक्षा में उत्तीर्ण होना था। सुभाष चन्द्र बोस ने मात्र 7 महीने की तैयारी से सन 1920 में चौथा स्थान प्राप्त करते हुए आईसीएस की परीक्षा पास कर ली। वह ऐसा करने वाले पहले भारतीय थे।
आईसीएस की नौकरी त्यागने का निर्णय
1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर बोस ने अपनी उम्मीदवारी वापस लेने का निर्णय बना लिया। सुभाष चन्द्र बोस ने अपने बड़े भाई शरतचन्द्र बोस को पत्र लिखकर उनकी राय जाननी चाही कि आईसीएस बनकर वह अंग्रेजों की गुलामी कैसे कर पायेंगे?
परिवार की सहमति से सुभाष ने 22 अप्रैल 1921 को भारत सचिव ई०एस० मान्टेग्यू को आईसीएस से त्यागपत्र देने का पत्र देे दिया। यह खबर जंगल मे आग की तरह फैल गयी। न्यूज़ पेपर औऱ पत्रिकाओं में इसे वरीयता के साथ दिखाया गया।
जब सुभाष चन्द्र बोस भारत लौटे तो उन्हें देखने के लिए हजारों की संख्या में भीड़ मौजूद थी। सुभाष चन्द्र बोस रातों-रात एक बड़े नेता बनकर उभर गए। देश का बच्चा बच्चा उन्हें जानने लगा। भारत आकर सुभाष भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए।
सुभाष चन्द्र बोस ने किया था प्रेम विवाह
सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान जेल में बंद सुभाष चंद्र बोस की तबीयत में ख़राब होने लगी थी। ब्रिटिश सरकार ने उनको इलाज के लिए यूरोप भेजने की अनुमति दे दी।
सन 1934 में सुभाष चंद्र बोस अपना इलाज कराने के लिए ऑस्ट्रिया के विएना गए। सुभाष ने तय किया कि वह इलाज कराने के साथ-साथ यूरोप रह रहे भारतीय छात्रों को आज़ादी की लड़ाई के लिए एकजुट करेंगे।
इसी दौरान उन्हें एक यूरोपीय प्रकाशक ने ‘द इंडियन स्ट्रगल’ किताब लिखने का काम सौंपा। उन्हें ऐसे सहयोगी की ज़रूरत महसूस हुई, जिसे अंग्रेजी के साथ साथ टाइपिंग भी आती हो।
बोस के दोस्त डॉ. माथुर ने उन्हें दो लोगों का रिफ़रेंस दिया। जिसमे 23 वर्षीय ख़ूबसूरत ऑस्ट्रियाई युवती एमिली शेंकल को चुना गया। एमिली धीरे-धीरे पहले बोस की फ्रेंड बनीं और बाद में प्रेमिका।
सुभाष चन्द्र बोस की पत्नी और सन्तान
कैथोलिक परिवार में जन्मी एमिली के पिता को प्रारम्भ में ये पसंद नहीं था कि उनकी बेटी किसी भारतीय से सबंध रखें लेकिन जब वे लोग सुभाष चंद्र बोस से मिले तो उनके व्यक्तित्व के कायल हुए बिना नहीं रहे।
एमिली और बोस की शादी 26 दिसंबर, 1937 को, एमिल के 27 वीं जन्मदिन के अवसर पर आस्ट्रिया के बादगास्तीन में हुई थी। 29 नवंबर 1942 को विएना में एमिली ने एक बेटी को जन्म दिया। सुभाष ने अपनी बेटी का नाम अनीता बोस रखा था। अनीता बोस की गिनती जर्मनी के मशहूर अर्थशास्त्रीयों में होती है।
विवाह की बात दुनिया से छुपाकर रखी
सुभाष चंद्र बोस और एमिली शेंकल ने अपनी विवाह की बात दुनिया से छुपाकर रखी थी। इसलिए एमिल अपनी बेटी को लेकर आस्ट्रिया में अलग रहती थीं। और जीविका के लिए एक तारघर में काम करती थी।
सुभाष चन्द्र बोस और एमिली मात्र 3 वर्षो तक साथ रहे थे। सुभाष चन्द्र की मृत्यु 1945 में वाहन दुर्घटना में हो गयी थी। लेकिन एमिली, सुभाष की यादों के सहारे 1996 तक जीवित रहीं।
अनीता बोस ने काफी वक्त बाद मीडिया को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि उनकी मां को भी बोस की मौत की खबर अन्य लोगों की तरह रेडियो समाचार से मिली थी।
सुभाष चन्द्र की मृत्यु कैसे हुई?
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद, नेताजी को नया रास्ता ढूँढना जरूरी था। इसलिए उन्होने रूस से सहायता माँगने का निश्चय किया था। 18 अगस्त 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे थे। इस सफर के दौरान वे लापता हो गये।
23 अगस्त 1945 को टोकियो रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बमवर्षक विमान से आ रहे थे कि 18 अगस्त को ताइहोकू (Taihoku) हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदेई, पाइलेट तथा कुछ अन्य लोग मारे गये।
नेताजी गम्भीर रूप से घायल थे। उन्हें ताइहोकू के सैनिक अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्होंने रात्रि 21.00 बजे दम तोड़ दिया। कर्नल हबीबुर्रहमान के अनुसार- ‘सुभाष चन्द्र बोस का अन्तिम संस्कार ताइहोकू में ही कर दिया गया और उनकी अस्थियाँ संचित करके जापान की राजधानी टोकियो के रैंकोजी मन्दिर में रख दी गयीं।
सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु की जांच
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत सरकार ने सुभाष चन्द्र बोस के मृत्यु की जाँच करने के लिये 1956 और 1977 में दो बार आयोग नियुक्त किया। दोनों बार यह नतीजा निकला कि नेताजी उस विमान दुर्घटना में ही मारे गये।
1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया। 2005 में ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बताया कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था।
2005 में मुखर्जी आयोग ने भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें उन्होंने कहा कि नेताजी की मृत्यु उस विमान दुर्घटना में होने का कोई सबूत नहीं हैं। लेकिन भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया।
गुमनामी बाबा और सुभाष चन्द्र बोस
18 अगस्त 1945 के दिन नेताजी कहाँ लापता हो गये और उनका आगे क्या हुआ यह भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा रहस्य बन गया हैं। फैजाबाद के गुमनामी बाबा से लेकर छत्तीसगढ़ राज्य में जिला रायगढ़ तक में नेताजी के होने को लेकर कई दावे पेश किये गये लेकिन सभी की प्रामाणिकता संदिग्ध है।
Subhas Chandra Bose Biography in Hindi | By Dr. Vivek bindra
निष्कर्ष:- सुभाष चन्द्र बोस की मृत्यु को लेकर विवाद रहा है। टोकियो के रैंकोजी मंदिर में रखी अस्थियाँ के DNA जांच से इसमे पूर्णतः विराम लग सकता है। भारत सरकार से विन्नति है कि कृपया इस दिशा में अवश्य विचार करें..🙏