Svati Nakshatra: स्वाति नक्षत्र की सम्पूर्ण जानकारी
Svati Nakshatra: स्वाति नक्षत्र राशि पथ में 186.40 से 200.00 अंशों के मध्य स्थित है। चित्रा नक्षत्र की तरह स्वाति नक्षत्र में भी केवल एक तारे की स्थिति मानी गयी है। यह नक्षत्र तुला राशि के अंतर्गत आता है। इसके देवता पवन एवं नक्षत्र स्वामी राहु देव है। चरणाक्षर हैं- रु, रे, रो, ता।
स्वाति नक्षत्र का शाब्दिक अर्थ: स्वाति यानि शुद्ध पानी की बूंद या वर्षा की पहली बूंद है। स्वाति वह नक्षत्र है, जिसमे पानी की बूंद मोती बन जाती है।
स्वाति नक्षत्र (पौराणिक मान्यता)
इसके देवता वायु है। ब्रह्माण्ड के पंच महाभूत पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि, अंतरिक्ष (आकाश) पांच तत्वों का गठन करता है। वायु सर्वशक्तिमान की सांस से उत्पन्न हुआ है। प्रभु वायु गन्धर्वो (वातावरण और आकाश की आत्मा) का राजा माना जाता है। राम भक्त हनुमान को पवन पुत्र भी कहा जाता है।
विशेषताएँ
चन्द्रमा स्वाति मे कला, सृजन, ब्रह्म या आत्मा का कारक है। जातक सृजक और विध्वसंक दोनो होता है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला जात चतुर, धर्मात्मा, लोकप्रिय, सुशील, सुन्दर, पक्षपात रहित और दयालु होता है।
शनि ग्रह स्वाति नक्षत्र मे उच्च का होकर शुभ फलदायी होता है। यदि यह स्वाति मे लग्न मे हो, तो विशेष शुभ होता है। वृद्धावस्था मे ये आध्यात्मिक हो जाते है। संसार के जाने-माने संतो का जन्म नक्षत्र स्वाति में हुआ है।
स्वाति नक्षत्र में क्या करें क्या न करें?
अनुकूल कार्य: यह नक्षत्र व्यापार, व्यवसाय, क्रय-विक्रय, कला और विज्ञान, कूटनीति के अनुकूल है।
प्रतिकूल कार्य: यह यात्रा, विरोध, आक्रमण के प्रतिकूल माना गया है।
प्रस्तुत फल जन्म नक्षत्र के आधार पर है। कुंडली में ग्रह स्थिति अनुसार फल में अंतर संभव है। अतः किसी भी ठोस निर्णय में पहुंचने के लिए सम्पूर्ण कुंडली अध्यन आवश्यक है।