Lord Garuda: भगवान विष्णु के वाहन गरुड़
Lord Garuda: भगवान् विष्णु के वाहन गरुड़ हिदू मान्यताओं के अनुसार गरुड़ पक्षियों के राजा और भगवान् विष्णु के वाहन हैं। गरुड़ कश्यप ऋषि और उनकी दूसरी पत्नी विनता की संतान हैं। दक्ष प्रजापति की कद्रू और विनता नामक दो कन्याएँ थीं। उन दोनों का विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ।
कश्यप ऋषि से कद्रू ने एक हजार नाग पुत्र और विनता ने केवल दो तेजस्वी पुत्र वरदान के रूप में माँगे। वरदान के परिणामस्वरूप कद्रू ने एक हजार अंडे और विनता ने दो अंडे दिए। कद्रू के अंडों के फूटने पर उसे एक हजार नागपुत्र मिल गए। किंतु विनता के अंडे उस समय तक नहीं फूटे। उतावली होकर विनता ने एक अंडे को फोड़ डाला।
उसमें से निकलने वाले बच्चे का ऊपरी अंग पूर्ण हो चुका था किंतु नीचे के अंग नहीं बन पाये थे। उस बच्चे ने क्रोधित होकर अपनी माता को शाप दे दिया कि ‘माता, तुमने कच्चे अंडे को तोड़ दिया है इसलिये तुम्हें पाँच सौ वर्षों तक अपनी सौत की दासी बनकर रहना होगा। ध्यान रहे दूसरे अंडे को अपने आप फूटने देना।
उस अंडे से एक अत्यन्त तेजस्वी बालक होगा और वही तुम्हें इस शाप से मुत्तिफ़ दिलाएगा। इतना कहकर अरुण नामक वह बालक आकाश में उड़ गया और सूर्य के रथ का सारथि बन गया। एक दिन कद्रू और विनता की दृष्टि समुद्र-मथन से निकले हुये उच्चैःश्रवा घोड़े पर पड़ी।
कद्रू ने कहा कि उस घोडे़ की पूँछ काली है जबकि विनता से उसे सफेद रंग का बताया। इस पर दोनों में शर्त लगी कि जिसका कथन गलत होगा उसे दूसरे की दासी बनना होगा। दोनों शर्त मानकर पूँछ देखने गईं। कद्रू ने चुपचाप अपने पुत्रें को उस पूँछ से लिपट जाने की आज्ञा दी इससे पूँछ काली दिखाई पड़ने लगी।
विनता हार मानकर कद्रू की दासी बन गयी। समय आने पर विनता के दूसरे अंडे से महातेजस्वी गरुड़ की उत्पत्ति हुई। उनकी शक्ति और गति अद्वितीय थी। एक दिन कद्रू ने गरुड़ से कहा कि तुम मेरी दासी के पुत्र हो इसलिये तुम मेरे पुत्रें को घुमाने ले जाओ।
गरुड़ को इस पर बहुत क्रोध आया लेकिन उन्होंने सौतेली माता की आज्ञा मान ली। सर्पों को घुमाते हुऐ गरुड़ ने उनसे अपनी माता को दासता से मुत्तफ़ कर देने के लिये कहा। इस पर सर्पों ने कहा कि यदि तुम हम लोगों के लिये अमृत ला दोगे तो इस तुम्हारी माता को दासता से मुत्तफ़ कर देंगे।
गरुड़ ने इंद्र सहित सभी देवताओं को परास्त कर अमृत घट उनसे छीन लिया। गरुड़ के पराक्रम से प्रभावित होकर इंद्र ने गरुड़ से मित्रता कर ली। मित्रता हो जाने पर इंद्र बोले, ‘मित्र! आप इस अमृत घट को मुझे वापस दे दीजिये क्योंकि आप जिनके लिये इसे ले जा रहे हैं वे स्वभावतः बहुत दुष्ट हैं।’
इस पर गरुड़ ने कहा, फ्मुझे पता है किंतु मैं अपनी माता को दासता से मुत्तिफ़ दिलाने हेतु इसे उनके पास ले जा रहा हूँ। आप वहाँ से इसे वापस ला सकते हैं। सहसा उनकी भेंट भगवान् विष्णु से हो गई। विष्णुजी ने गरुड़ से प्रसन्न होकर वर माँगने के लिये कहा।
इस पर गरुड़ ने सदा उनकी छत्रछाया में बने रहने का वर ले लिया साथ ही उनके वाहन भी बन गए। इसके पश्चात् गरुड़ ने अमृत घट को सर्पों को देकर अपनी माता विनता को दासता से मुक्ति दिलाई। अमृत घट को कुशासन पर रख कर सर्प पवित्र होने के लिये स्नान करने चले गए। इसी बीच इंद्र चोरी से उस अमृत घट को उठाकर ले गए।
रावण के पुत्र मेघनाद ने राम से युद्ध करते हुए राम को नागपाश से बाँध दिया था। देवर्षि नारद के कहने पर गरुड़, जो कि सर्पभक्षी थे, ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर राम को नागपाश के बंधन से छुड़ाया। राम के इस तरह नागपाश में बँध जाने पर राम के परब्रह्म होने पर गरुड़ को संदेह हो गया।
गरुड़ का संदेह दूर करने के लिये देवर्षि नारद ने उन्हें ब्रह्मा के पास भेजा। ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि तुम्हारा संदेह भगवान् शंकर दूर कर सकते हैं। भगवान् शंकर ने भी गरुड़ को उनका संदेह मिटाने के लिये कामभुशुंडी के पास भेज दिया। अंत में काकभुशुंडिजी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरुड़ के संदेह को दूर किया।
हिंदू देवी-देवताओं की लीला-कथाएँ