RUDRAKSHA: जानें, रुद्राक्ष का रहस्य
रुद्राक्ष (Rudraksha) की चामत्कारिक क्षमता का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है कि राजा से रंक तक रुद्राक्ष का मनका पाने के लिए लालायित रहते हैं। इसलिए आजके इस लेख में हम रुद्राक्ष से जुडी जानकारी दे रहे है, आइये जानते है रुद्राक्ष के रहस्य…
रुद्राक्ष क्या है? (What is Rudraksha)
रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर की आँखों के जलबिंदु से हुई है। छोटा सा दिखने वाला यह दाना, पर इतना गुणकारी कि कहा नहीं जा सकता। रुद्राक्ष शिव का वरदान है, जो संसार के भौतिक दु:खों को दूर करने के लिए प्रभु शंकर ने प्रकट किया है। दार्जिलिंग, कोंकण, मैसूर, केरल आदि भारतीय क्षेत्रों तथा नेपाल, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा में रुद्राक्ष के वृक्ष पाए जाते हैं।
विभिन्न भाषाओं में नाम: संस्कृत में रुद्राक्ष को शर्वाक्ष, नीलकंठाक्ष, हराक्ष कहा जाता है; जबकि बँगला में ‘रुद्राक्य’, तमिल में अक्कम’, तेलुगु में ‘रुद्रचलम्’, अंग्रेजी में ‘एलियो कारपस सीड्स’ तथा लैटिन में ‘एलियो कारपस’ कहा जाता है। और पढ़ें: रुद्राभिषेक से करे शिव को प्रसन्न
रुद्राक्ष का महत्व (Benefits of Rudraksha in Hindi)
रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शंकर की आँखों के जलबिंदु से हुई है। हिन्दू मान्यता अनुसार- “रुद्राक्ष का मूल ब्रह्मा, मध्य भाग विष्णु एवं मुख रुद्र है तथा उसके बिंदु सब देवता कहे गए हैं।” इसलिए हवन पूजन तथा अन्य अनुष्ठान करते समय रुद्राक्ष धारण करना श्रेयस्कर बताया गया है। और पढ़ें: शिव पूजन में ध्यान रखने योग्य बातें
रुद्राक्ष की माला से जप करना विशेष लाभकारी होता है। रुद्राक्ष की माला, मालाओं में सर्वश्रेष्ठ है। शिव भक्त के लिए तो यह अत्यधिक उपयोगी एवं लाभदायक है। रुद्राक्ष का प्रभाव साधक को सिद्धि प्राप्ति में जहाँ अद्भुत सफलता दिलाने हेतु अपनी चामत्कारिक भूमिका निभाता है वहीं सुख-समृद्धि, धन-दौलत, वैभव की प्राप्ति में भी रुद्राक्ष का प्रभाव चामत्कारिक सिद्ध होता है। और पढ़ें: तुलसी कंठी माला का रहस्य
Helath Benefits of Rudraksha: स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से रुद्राक्ष का प्रयोग बड़ा प्रभावकारी माना गया है। आज की भीड़भाड़ भरी, तनावग्रस्त जिंदगी में जहाँ रक्तचाप, हृदयाघात की बीमारी से राहत पाने के लिए लोग गले में रुद्राक्ष की माला या मनका धारण करने में राहत महसूस करते हैं वहीं रुद्राक्ष को पास में रखना अनेक दृष्टियों से लाभकारी होता है। और पढ़ें: हिन्दू नित्य कर्म कैसे करें?
रुद्राक्ष का वैज्ञानिक पक्ष (The Science behind Rudrakshas)
Science Behind Rudrakshas: वैज्ञानिक दृष्टि से ‘रुद्राक्ष के वानस्पतिक गुण और शारीरिक जल-स्पर्श से विद्युत् शक्ति पैदा होती है, जो जप के समय उँगलियों के स्पर्श से शरीर के अंदर रोग अवरोधक शक्ति पैदा करती है। शरीर पर धारण करने से भी आक्रामक रोगों की क्षमता क्षीण हो जाती है। और पढ़ें: महामृत्युंजय: मृत्यु टालने का सर्वश्रेठ अनुष्ठान_
रुद्राक्ष की उत्पत्ति कथा (Story Behind Rudraksha)
शिवपुराण, पद्मपुराण, स्कंदपुराण, आदिपुराण आदि में जो कथाएँ दी गई हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि भगवान् रुद्र (शिव) की आँख से निकले अश्रुबिंदु से इसकी उत्पत्ति हुई है। ये अश्रुबिंदु त्रिपुर राक्षस के वध की घटना के कथानक से जुड़े हैं—
पहली कथा: त्रिपुर वध से विश्व को जो सुख मिला, उससे अभिभूत रुद्र की आँखों से आनंद के अश्रु छलक पड़े और वही आँसू जहाँ-जहाँ पड़े, रुद्राक्ष के रूप में उग आए। और पढ़ें: जाने, शिव लिंग का रहस्य
दूसरी कथा: एक अन्य कथा अनुसार, शिव ने सहस्राधिक वर्षों तक त्राटकीय तपस्या की थी। इसी तपस्या के क्रम में उनकी आँख से एक अश्रुबिंदु पृथ्वी पर टपका, जिससे रुद्राक्ष बना यही रुद्राक्ष के पेड़ अनेक मुखी रुद्राक्ष का फल हमें देते हैं। और पढ़ें: क्यों प्रिय है शिव को बेलपत्र
रुद्राक्ष के प्रकार (Types of Rudraksha in Hindi)
संस्कृत में रुद्राक्ष: (पुल्लिंग) रुद्राक्ष के वृक्ष को कहते हैं तथा रुद्राक्ष (नपुंसकलिंग) रुद्राक्ष के फल या बीज को कहते हैं। इन फलों के बीज में जो रेखाएँ होती हैं, उन्हें ही मुख मानकर एकमुखी, द्विमुखी से लेकर चतुर्दशमुखी तक के रुद्राक्ष मनका का अलग-अलग महत्त्व है।
एकमुखी रुद्राक्ष
एक मुखी रुद्राक्ष सर्वश्रेठ रुद्राक्ष है। इसे साक्षात ‘शिव’ का रूप माना जाता है। एकमुखी रुद्राक्ष अद्भुत उपलब्धियों से अलंकृत करने वाला, असीम सुख-समृद्धि, ज्ञान-ध्यान, प्रतिष्ठा प्राप्त कराने की क्षमता रखता है। और पढ़ें: शिव द्वादश ज्योतिर्लिंग
द्विमुखी रुद्राक्ष
द्विमुखी रुद्राक्ष यह रुद्राक्ष अर्द्धनारीश्वर का प्रतीक माना गया है। शिव भक्तों के लिए द्विमुखी रुद्राक्ष विशेष लाभकारी बताया गया है। मानसिक शांति, तामसिक प्रवृत्तियों के परिहार, आध्यात्मिक उत्थान आदि के लिए इसको धारण करना हितकारी होता है। पेट की व्याधि से मुक्ति, अशुभ घटनाओं से सुरक्षा के लिए भी द्विमुखी रुद्राक्ष धारण करना उचित है।
त्रिमुखी रुद्राक्ष
त्रिमुखी रुद्राक्ष यह रुद्राक्ष अग्निस्वरूप माना गया है। इसके धारण करने से बीमारियाँ नहीं आती हैं। पीलिया के मरीज के लिए त्रिमुखी रुद्राक्ष अत्यधिक लाभकारी माना गया है। स्फूर्ति, क्रियाशीलता, नौकरी आदि के लिए यह धारण करना लाभकारी होता है। रोगग्रस्त होने पर त्रिमुखी रुद्राक्ष को धारण करने से शीघ्र रोग से मुक्ति मिल जाती है।
चतुर्मुखी रुद्राक्ष
चतुर्मुखी रुद्राक्ष यह रुद्राक्ष ब्रह्मा का प्रतीक है। इसके धारण करने से बौद्धिक विकास होता है, विद्याध्ययन में लाभ होता है तथा श्रेष्ठ साहित्य पढ़ने में रुचि बढ़ती है। इसे गले में धारण करने पर वाणी में मिठास, नेत्रों में तेज तथा वशीकरण की क्षमता बढ़ती है। मानसिक विकार दूर करने के लिए भी चतुर्मुखी रुद्राक्ष लाभकारी होता है।
पंचमुखी रुद्राक्ष
यह रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र रूप है। यह आसानी से बाजार में मिल जाता है। इसके धारण करने से विषैले जीव-जंतुओं से रक्षा होती है। विष का प्रभाव कम करने में भी यह लाभकारी होता है। सुख-शांति तथा प्रसन्नता के लिए इसे धारण करने से लाभ होता है। शत्रुओं से हानि न होने के लिए भी इसका धारण करना हितकारी होता है।
षणमुखी रुद्राक्ष
यह रुद्राक्ष गणपति का प्रतीक माना गया है। इसके धारण करने से वक्तृता (भाषण कला) में पटुता की वृद्धि होती है। व्यापारिक लाभ, भौतिक संपन्नता तथा दारिद्र्य दूर करने के लिए इसे धारण करना श्रेयस्कर माना गया है। इस रुद्राक्ष के धारक पर माता पार्वती की विशेष कृपा रहती है। मूर्च्छा जैसी बीमारियों को दूर करने के लिए भी इसका धारण हितकारी होता है। और पढ़ें: जानें गणेश का रहस्य
सप्तमुखी रुद्राक्ष
यह सप्तमातृकाओं का प्रतीक है। दीर्घायु के लिए इसके धारण करने का विधान है। शस्त्र के प्रहार से बचाव के लिए भी इसका धारण करना हितकारी माना गया है जबकि अकाल मृत्यु से रक्षा करने में इसकी अत्यधिक उपयोगिता आँकी गई है। विषबाधा से बचने के लिए भी सप्तमुखी रुद्राक्ष धारण किया जाता है। सन्निपात, मिर्गी, शीतज्वर आदि के निवारण हेतु इसके धारण करने का प्रावधान है।
अष्टमुखी रुद्राक्ष
विघ्नों की शांति के लिए भैरव के प्रतीक रूप में यह अष्टमुखी रुद्राक्ष धारण करना विशेष लाभकारी माना गया है। चित्त की चंचलता पर नियंत्रण रखकर एकाग्रता के उद्देश्य की पूर्ति में यह विशेष रूप से सहायक होता है। आठों वसुओं (आठ देवताओं का एक वर्ग) तथा गंगाजी को यह बहुत प्रिय है।
नवमुखी रुद्राक्ष
नवदुर्गा का प्रतीक यह रुद्राक्ष भी कठिनाई से मिलता है। सभी प्रकार की साधनाओं में सफलता, प्रतिष्ठा, आदर-सम्मान के लिए इसका धारण करना लाभकारी होता है। शत्रुओं को पराजित करने तथा मुकदमे में सफलता प्राप्ति के लिए इसे धारण करना चाहिए। हृदय रोग के नियंत्रण के लिए भी नवमुखी रुद्राक्ष हितकारी होता है।
दशमुखी रुद्राक्ष
यह रुद्राक्ष साक्षात् यम का स्वरूप माना गया है। तांत्रिक साधना में इसका बहुत अधिक महत्त्व बताया गया है। इस रुद्राक्ष को गले में धारण करने से मारण-मोहन आदि का प्रभाव धारक पर नहीं होता। दुर्घटनाओं से बचाव के लिए इसे धारण करना लाभकारी होता है। कुकुर खाँसी के लिए इसका उपयोग हितकारी होता है। भूत-प्रेत बाधा से बचाव के लिए इसको धारण करना चाहिए। यह रुद्राक्ष भी बहुत कठिनाई से प्राप्त होता है।
एकादशमुखी रुद्राक्ष
यह रुद्राक्ष एकादश रुद्र का प्रतीक माना गया है। सौभाग्य का सूचक यह रुद्राक्ष संतान सुख के लिए लाभकारी होता है। स्त्रियों के लिए यह विशेष कल्याणकारी बताया गया है। श्रेष्ठ संतान प्राप्ति, पति की सुरक्षा, समृद्धि आदि के लिए इसे धारण करना चाहिए। संक्रामक रोगों से सुरक्षा के लिए भी यह रुद्राक्ष उपयोगी होता है।
द्वादशमुखी रुद्राक्ष
भगवान् विष्णु का प्रतीक द्वादशमुखी रुद्राक्ष भी कठिनाई से मिलता है। ब्रह्मचर्य व्रत के पालन में इसकी अक्षुण्ण उपयोगिता आँकी गई है। ओज-तेजस्विता बढ़ाने के लिए इसे धारण करना लाभकारी होता है। व्याधियों से छुटकारा पाने के लिए भी इसे धारण करना श्रेयस्कर बताया गया है। जीव जंतुओं, चोर-लुटेरों से सुरक्षा के लिए भी इस रुद्राक्ष का धारण करना लाभकारी बताया गया है। और पढ़ें: भगवन विष्णु के दशावतार
त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष
वांछित फल तथा सिद्धियाँ प्रदान करनेवाला तेरहमुखी रुद्राक्ष धारण करने से कामदेव प्रसन्न होते हैं। जैसाकि कहा गया है-‘कामदेवः प्रसीदति’। इस पद में कामदेव की व्युत्पत्ति इस प्रकार दी गई है- ‘काम्यते मुमुक्षुभिरिति कामस्तथाभूतः सन् दीव्यति परमेश्वरः। कामदेव के प्रतीक इस रुद्राक्ष को धारण करने से यश, मान, पद, प्रतिष्ठा, लावण्य आदि की वृद्धि होती है। सौंदर्य के लिए भी दूध के साथ इसका प्रयोग लाभकारी बताया गया है। मानसिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए भी इस रुद्राक्ष का धारण करना हितकारी होता है। और पढ़े: जाने कामदेव का रहस्य
चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष
त्रिपुरारि का प्रतीक यह रुद्राक्ष सभी प्रकार के कष्टों का निवारण करने में सक्षम माना गया है। स्वास्थ्य लाभ, रोग मुक्ति, विविध क्षेत्रों में उन्नति, नीरोगी काया के लिए इस रुद्राक्ष का धारण करना लाभकारी होता है। शिव के डमरू से चौदह प्रत्याहार निकले थे तथा रुद्राक्ष के संबंध में जो शास्त्रों में विवरण बताए गए हैं, उनसे चतुर्दशमुखी तक ही रुद्राक्ष होने की पुष्टि होती है। एतत् विषयक उल्लेख इस प्रकार है
विशेष: रुद्राक्ष इक्कीसमुखी तक होता है; किंतु इनका मिलना दुर्लभ है। इसलिए उनका यह उल्लेख नही किया गया है।
असली रुद्राक्ष की पहचान कैसे करें? (How to identify original rudraksha In Hindi)
रुद्राक्ष धारण करने से मनोवांछित फल मिलता है। बड़े-बड़े उद्योगपति, नेता, अभिनेता, विद्वान्, मनीषी, संत-महात्मा, योगी-तपस्वी रुद्राक्ष को धारण करने के लिए लालायित रहते हैं। असली रुद्राक्ष बताने और पाने की होड़ में लोग क्या-क्या नहीं कर डालते। असली रुद्राक्ष की पहचान करना बहुत कठिन है; फिर भी जो पारखी होते हैं, वे परख लेते हैं। आइए जानते है असली रुद्राक्ष पहचान करने के तरीका और उसकी हकीकत।
तांबे की कटोरी या तार द्वारा: ताँबे का तार एकमुखी रुद्राक्ष के मनके को स्पर्श कराने पर यदि मनका घूम जाए, तो उसे असली एकमुखी रुद्राक्ष समझना चाहिए।
ताँबे की कटोरी में पानी रखकर उसमें रुद्राक्ष का मनका डाल दिया जाए, यदि मनका घूमने लगे और पानी गरम हो जाए तो असली एकमुखी रुद्राक्ष समझना चाहिए।
पानी में डुबोकर: रुद्राक्ष की पानी या दूध में डुबोकर भी परख की जाती है; पर अब नकली बनाने वाले बेर की गुठली से रुद्राक्ष का ऐसा रूप दे देते हैं कि पानी में डुबोने की प्रक्रिया से परख नहीं हो पाती।
रुद्राक्ष धारण करते समय ध्यान रखने योग्य बातें (What are the rules for wearing Rudraksha?)
Rudraksha Wearing Rules: असंभव को संभव करने की क्षमता रुद्राक्ष में होती है। इसे धारण कर जीवन को शांतिपूर्ण व सुखमय बनाया जा सकता है, शस्त्रों की ऐसी मान्यता है। लेकिन रुद्राक्ष धारण करते वक्त हमे कुछ सावधानी भी बरती चाहिए। अन्यथा हमे लाभ के स्थान पर हानि का सामना करना पड़ सकता है।
- शुभ मुहूर्त में शिव के नाम का स्मरण कर रुद्राक्ष धारण करना श्रेयस्कर रहता है।
- रुद्राक्ष धारण करने में सर्वोच्च प्राथमिकता सात्त्विकता को दी जानी चाहिए।
- मद्य-मांस तथा अभक्ष्य इसके धारणकर्ता के लिए वर्जित हैं।
- जितना ही अच्छा आचार-विचार एवं आचरण होगा उतना ही रुद्राक्ष का मनका एवं मालाओं का धारण करना अधिक लाभप्रद होता है। और पढ़ें: शिव पूजन में ध्यान रखने योग्य बातें