Tirupati Balaji Temple: श्री तिरुपति वैंकटेश्वर मंदिर यात्रा
तिरुपति बालाजी, भारत के सबसे प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में से एक है। यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दर्शनार्थी यहां आते हैं। समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर स्थित तिरुमला की पहाड़ियों पर बना श्री वैंकटेश्वर मंदिर यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है।

तिरुपति तमिल भाषा का शब्द है। तिरु का अर्थ है श्री तथा पति का अर्थ है प्रभु अतः तिरुपति का सम्मिलित अर्थ है— श्री प्रभु।
नाम | तिरुपति बालाजी |
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देवता | वेंकटेश्वर (विष्णु) |
त्यौहार | ब्रह्मोत्सवम्, वैकुण्ठ एकादशी, रथ सप्तमी |
अवस्थिति | आंध्र प्रदेश, चित्तूर जिला |
राज्य | आन्ध्र प्रदेश |
तिरुपति बालाजी मंदिर धार्मिक पृष्ठभूमि (Mythological Believe of Tirupati Balaji Temple)
तिरुमले वह पर्वत है, जिस पर लक्ष्मी जी के साथ स्वयं विष्णुजी विराजमान है। तिरुपति इसी पर्वत के नीचे बसा हुआ नगर है। कपिलतीर्थ में स्नान एवं कपिलेश्वरभगवान का दर्शन करके यात्री पर्वत पर चढ़ते हैं। तिरुमले पर्वत का दूसरा नाम वेंकटाचल है। यहाँ पर श्री बालाजी (वेंकटेश्वर भगवान) का स्थान है। और पढ़ें: भगवान विष्णु के दशावतार
मान्यता अनुसार- वेंकटाचल पर साक्षात शेषजी पर्वत रूप में स्थित है, इसलिए इसे शेषाचल भी कहते हैं। प्राचीनकाल में प्रस्ताव तथा राजा अंबरीश इस पर्वत को नीचे से ही प्रणाम करके चले गए थे। पर्वत को भगवत्स्वरूप मानकर वे ऊपर नहीं चढ़े थे। श्री रामानुजाचार्य पर्वत पर दंडवत् प्रणाम करते हुए गए थे।
श्री तिरुपति बालाजी मंदिर (Sri Venkateswara Swamy Temple)
भगवान श्री वेंकटेश्वर को ही ‘बालाजी’ कहते हैं। भगवान के मुख्य दर्शन तीन बार होते हैं। पहला दर्शन प्रभात काल में होता है। दूसरा दर्शन मध्याहन में होता है। तीसरा दर्शन रात्रि में होता है। इन तीनों दर्शनों के लिए शुल्क नहीं लगता। जो अन्य दर्शन होते हैं, उनका शुल्क लगता है।
तीन परकोटे: श्री बालाजी का मंदिर तीन परकोटों से घिरा है। इन परकोदों में गोपूर बने हैं, जिन पर स्वर्ण कलश स्थापित हैं। स्वर्णद्वार के सामने ‘तिरुमहामंडपम्’ नामक मंडप है। मंदिर के सिंह द्वार को पड़िकावलि कहते हैं। यही प्रथम द्वार है। इस द्वार के समीप वेंकटेश्वर स्वामी के भक्त नरेशों एवं रानियों की मूर्तिया है।
विरज व पुष्पकूप: प्रथम द्वार तथा द्वितीय द्वार के मध्य की प्रदक्षिणा को संपगि प्रदक्षिणा कहते हैं। इसमें ‘विरज’ नामक एक कुंआ है। कहा जाता है कि श्री बालाजी के चरणों में नीचे विरजा नदी है। उसी की धारा इस कूप में आती है। इसी प्रदक्षिणा में पुष्पकृप’ है।
बालाजी को जो तुलसी पुष्प चढ़ता है, वह किसी को दिया नहीं जाता। वह इसी कूप में डाला जाता है। केवल बसंत पंचमी पर तिरुजानूर में पद्मावतीजी को भगवान के चढ़े पुष्प अर्पित किए जाते हैं।
विमान प्रदक्षिणा: द्वितीय द्वार को पार करने पर जो प्रदक्षिणा है, उसे विमान प्रदक्षिणा कहते हैं। उसमें कई मंदिर हैं।
वैकुंठ प्रदक्षिणा: तीसरे द्वार के भीतर भगवान के निज मंदिर (गर्भगृह) के चारों ओर एक प्रदक्षिणा है। उसे वैकुंठ प्रदक्षिणा कहते हैं। यह केवल पौष शुक्ला एकादशी को खुलती है। अन्य समय यह मार्ग बंद रखा जाता है।
हुंडी-हौज: भगवान के मंदिर के सामने स्वर्णमंडित स्तंभ है। उसके आगे तिरुमहमंडपम् नामक सभा मंडप है। द्वार पर जय विजय की मूर्तियां हैं। इसी मंडप में एक ओर हुंडी नामक बंद हौज है, जिसमें यात्री बालाजी को अर्पित करने के लिए लाया हुआ द्रव्य एवं आभूषणादि डालते हैं।
श्री बालाजी की मूर्ति: जगमोहन से मंदिर के भीतर चार द्वार पार करने पर पाँचवें के भीतर श्री बालाजी (वेंकटेश्वर स्वामी) की पूर्वाभिमुख मूर्ति है। भगवान की श्री मूर्ति श्यामवर्ण है। ये शंख, चक्र, गदा, पद्म लिए खड़े हैं। यह मूर्ति लगभग सात फुट ऊंची है।
भगवान के दोनों ओर श्री देवी तथा भूदेवी की मूर्तियां हैं। भगवान को भीमसेनी कापूर का तिलक लगाया जाता है। भगवान के तिलक से उतरा यह चंदन यहां प्रसाद रूप में बिकता है। भक्तजन उसे मंजन के काम में लेने के लिए ले जाते हैं।
चोट का चिन्ह: श्री बालाजी की मूर्ति में एक स्थान पर चोट का चिन्ह है। उस स्थान पर दवा लगाई जाती है। कहते हैं, एक भक्त प्रतिदिन नीचे से भगवान के लिए दूध ले आता था। वृद्ध होने पर जब उसे आने पर कष्ट होने लगा, तब भगवान स्वयं जाकर चुपचाप उसकी गाय का दूध पी आते थे। एक दिन भक्त ने छुपकर भगवान को मानव वेश में उसकी गाय का दूध पीते देख लिया। तब उसने उन्हें चोर समझकर डंडा दे मारा। उसी समय भगवान ने प्रकट होकर उसे दर्शन दिया तथा आश्वासन दिया। वही डंडा लगने का चिन्ह अभी तक मूर्ति में हैं।
तिरुपति बालाजी दर्शन ड्रेस कोड (Tirupati Balaji Darshan Dress Code)
पुरुष कपड़े: तिरुपति बालाजी मंदिर में कमीज और पेंट पहने हुए लोग प्रवेश कर सकते हैं। बरमुडा, शॉर्ट्स या टी शर्ट वर्जित है।
महिला कपडे: महिलाओं को साड़ी या सलवार सूट पहन कर आने से प्रवेश मिल जाता है।
विशेष अनुष्ठान: मन्दिर में होने वाले विशेष अनुष्ठानों में हिस्सा लेने वाले पुरुषों के लिए धोती या पायजामा और महिलाओं के लिए साड़ी पहनना आवश्यक है।
तिरुमला का मार्ग (Route to tirumale Travel in)
रात्रि के अंधकार में भी ऊपर जाने या लोटने में कोई कठिनाई नहीं होती। कई स्थानों में मार्ग के दोनों ओर वन है, परंतु यहां के वन में भय की कोई बात नहीं है। जो लोग बस से आते हैं, उन्हें घुमावदार पहाड़ी मार्ग द्वारा मंदिर से थोड़ी दूरी पर पहुंचा दिया जाता है।
वैकुंठ द्वार: इस बीच में एक और गोपुर मिलता है। कई छोटे-छोटे द्वार मिलते हैं। वैकुंठ द्वार पर तीसरा गोपुर है। यहां बैकुंठनाथ जी का मंदिर है। श्री राम लक्ष्मण तथा श्री राधा-कृष्ण-ललिता विशाखादि की मूर्तियां हैं।
इससे लगभग तीन मील तक सीढ़ियां नहीं है। मार्ग कुछ उतराई-चढ़ाई का है, परंतु समतल है। आगे फिर आधा मील उतराई और उतनी ही चढ़ाई पड़ती है। इस एक मील में सीढ़ियां बनी हैं। फिर आगे बालाजी तक डेढ़ मील बराबर मार्ग है।
सात पर्वत: पैदल यात्री लगभग 7 मील की यात्रा करता है। मार्ग में उसे सात पर्वत मिलते हैं। श्री बालाजी सातवें पर्वत पर हैं। इस मार्ग की पैदल यात्रा पुण्यप्रद मानी जाती है।
कल्याणकट्ट: यहां एक अश्वत्थ का वृक्ष है, इसी स्थान पर मुंडन कराया जाता है। यहां बहुत से नाई मुंडन के लिए नियुक्त है। यहां मुंडन संस्कार प्रधान कृत्य माना जाता है। यहां केश मुंडन का इतना माहात्म्य है कि सीभाग्यवती स्त्रियां भी मुंडन कराती हैं। उच्च वर्ग की सौभाग्यवती स्त्रियां केवल एक लट कटवा देती हैं।
स्वामिपुष्करिणी: श्री बालाजी के मंदिर के समीप ही पुष्पकरिणी नामक विस्तृत सरोवर है। सभी यात्री इसमें स्नान करके दर्शन करने जाते हैं।
वाराह मंदिर: स्वामिपुष्करिणी के पश्चिम में वाराह भगवान का मंदिर है। नियमानुसार तो वाराह भगवान के दर्शन करने के बाद ही बालाजी के दर्शन करने चाहिए, परंतु अधिकांश यात्री बालाजी का दर्शन करके तब वाराह भगवान के दर्शन करते हैं।
तिरुपति मंदिर के आश्चर्यजनक तथ्य (Intresting facts about Tirupati balaji Temple)
1. तिरुपति बालाजी भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहां प्रतिवर्ष करोड़ों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
2. मुख्यद्वार के दाएं बालरूप में बालाजी को ठोड़ी से रक्त आया था, उसी समय से बालाजी के ठोड़ी पर चंदन लगाने की प्रथा शुरू हुई।
3. भगवान बालाजी के सिर पर रेशमी केश हैं, जो हमेशा ताजा रहेते है।
4. मंदिर से 23 किलोमीटर दूर एक गांव है, उस गांव में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश निषेध है। वहां पर लोग नियम से रहते हैं। वहीं से लाए गए फूल और अन्य वस्तु (दूध, घी, मक्खन आदि) भगवान को चढ़ाए जाते हैं।
5. भगवान बालाजी गर्भगृह के मध्य भाग में खड़े दिखते हैं लेकिन, वे दाई तरफ के कोने में खड़े हैं बाहर से देखने पर ऎसा लगता है।
6. बालाजी को प्रतिदिन नीचे धोती और उपर साड़ी से सजाया जाता है।
7. गृभगृह में चढ़ाई गई किसी वस्तु को बाहर नहीं लाया जाता, बालाजी के पीछे एक जलकुंड है उन्हें वहीं पीछे देखे बिना उनका विसर्जन किया जाता है।
8. बालाजी की पीठ को जितनी बार भी साफ करो, वहां गीलापन रहता ही है, वहां पर कान लगाने पर समुद्र घोष सुनाई देता है।
9. बालाजी के वक्षस्थल पर लक्ष्मीजी निवास करती हैं। हर गुरुवार को निजरूप दर्शन के समय भगवान बालाजी की चंदन से सजावट की जाती है उस चंदन को निकालने पर लक्ष्मीजी की छबि उस पर उतर आती है।
10. गर्भगृह मे जलने वाले दिपक कभी बुझते नही हैं, वे कितने ही हजार सालों से जल रहे हैं किसी को पता भी नही है।
तिरुपति मंदिर कैसे पहुंचे (How To Reach Tripati Balaji)
तिरुपति, आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है। तिरुपति दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध नगर है। हैदराबाद, मद्रास, कांची, चित्तूर, विजयवाड़ा आदि स्थानों से तिरुपति के लिए बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
हवाई मार्ग: यहाँ से निकटम हवाई अड्डा रेनिगुंटा में स्थित है। इंडियन एयरलाइंस की हैदराबाद, दिल्ली और तिरुपति के बीच प्रतिदिन सीधी उडा़न उपलब्ध है।
रेल मार्ग: यहां से सबसे पास का रेलवे जंक्शन तिरुपति है। देश के लगभग सभी बड़े रेलवे स्टेशन से यहां के लिए हर समय ट्रेन उपलब्ध है।
सड़क मार्ग: राज्य के विभिन्न भागों से तिरुपति और तिरुमला के लिए APSRTC की बसें नियमित रूप से चलती हैं। TTD भी तिरुपति और तिरुमला के बीच नि:शुल्क बस सेवा उपलब्ध कराती है। यहां के लिए टैक्सी भी मिलती है।
तिरुपति में ठहरने और खाने की व्यवस्था (Hotels and Restaurants in Tirupati / Tirumala)
निवास स्थान: तिरुपति में यात्रियों के ठहरने आदि की सुव्यवस्था जैसी देवस्थान ट्रस्ट की ओर से है, वैसी व्यवस्था किसी अन्य तीर्थ में नहीं है। देवस्थानम ट्रस्ट की कई धर्मशालाएं हैं जिनमें हर चीज की उत्तम व्यवस्था है। स्टेशन के पास ही देवस्थान ट्रस्ट की बड़ी विस्तृत धर्मशाला है।
इन धर्मशालाओं में यात्री बिना किसी शुल्क के अपना सामान रखकर निश्चित जा सकते हैं। सामान रखने की व्यवस्था अलग है। ठहरने के लिए कमरे हैं जो अपना भोजन स्वयं बनाना चाहते हैं, उन्हें वर्तन इत्यादि भी दिए जाते हैं।
तिरुमला में भोजन: नित्य अन्ना दाना हॉल (मंदिर से एक किमी दूर) शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के पास) में शाकाहारी खाना नि:शुल्क मिलता है। यहांरोजाना 25 हजार लोग यहां खाना खाते हैं। आप स्वामीपुष्कर्नी तीर्थ के पास स्थित होटल और ढाबों का भी मजा ले सकते है। तिरुमला के सभी रेस्टोरेंट्स में खाने की कीमत टीटीडी द्वारा निर्धारित की जाती है।
तिरुपति में भोजन: यहां के होटल-रेस्टोरेंट में शाकाहारी मांसाहारी दोनों प्रकार का भोजन मिलता है। यहां सफाई का खास ध्यान रखा जाता है। एपीटीडीसी द्वारा संचालित पुन्नमी रेस्टोरेंट में सस्ता, स्वादिष्ट और स्वच्छ भोजन मिलता है।
तिरुमला के अन्य तीर्थ (Other pilgrimages in Tirumala)
आकाश गंगा: बालाजी के मंदिर से दो मील दूर वन में यह तीर्थ है। एक पर्वत में से एक झरना बहता है। उसका जल एक कुंड में एकत्र होता है। यात्री उस कुंड में स्नान करते हैं। वहां का जल प्रतिदिन बालाजी के मंदिर में पूजा के लिए जाता है।
पापनाशन तीर्थ: आकाश गंगा से एक मील और आगे यह तीर्थ है। दो पर्वतों के मध्य से एक बहती धारा आकर एक स्थान पर ऊपर से दो धाराएं होकर नीचे गिरती हैं। इसको साक्षात गंगा माना जाता है। यहां यात्री सांकल पकड़कर स्नान करते हैं।
वैकुंठ तीर्थ: बालाजी से दो मील पूर्व पर्वत में वैकुंठ गुफा है। उस गुफा से जो जलधारा निकलती है, उसे वैकुंठ तीर्थ कहते हैं।
पांडव तीर्थ: बालाजी से दो मील उत्तर-पश्चिम में एक झरना है जो पांडव तीर्थ कहलाता है। यहां एक सुंदर गुफा है, जिसमें द्रोपदी सहित सभी पांडवों की मूर्तियां हैं।
जाबालि तीर्थ: पांडव तीर्थ से एक मील और आगे जाबालि तीर्थ है। यहां झरने के पास हनुमानजी की मूर्ति है।
श्री गोविंदराज मंदिर: यह मंदिर विशाल है। इसमें मुख्य मंदिर शेषशायी भगवान नारायण का है। इस मूर्ति की प्रतिष्ठा श्री रामाजुनाचार्य ने की थी। इस मंदिर के आस-पास छोटे-छोटे कई देव मंदिर हैं। यह मंदिर तिरुपति में देवस्थान कमेटी की धर्मशाला के पास है। यहां एक सरोवर भी है।
कोदंडराम मंदिर: यह तिरुपति का दूसरा मुख्य मंदिर है। यह मंदिर तिरुपति की उत्तरी दिशा में फूलबाग धर्मशाला के पास है। यहां भगवान श्री राम, लक्ष्मण, जानकी देवी के श्री विग्रह प्रतिष्ठित हैं।
कपिल तीर्थ: जो लोग बस से वेंकटाचल पर बालाजी के दर्शन करने आते हैं तथा बस से ही लौट जाते हैं, उन्हें तो यह तीर्थ मिलता ही नहीं। तीर्थ के पास से ही बसे चली जाती है। चढ़ाई प्रारंभ होने से पहले ही पर्वत के नीचे यह तीर्थ है। कपिल तीर्थ में एक सुंदर सरोवर है।
इसमें पर्वत से जलधारा गिरती है। सरोबर में पक्की सीढ़ियां बनी हैं। सरोवर के तट पर संध्या मंडप बने हुए हैं। तीर्थ में चारों कोनों पर चार स्तंभों में चक्र के चिन्ह अंकित है। पूर्व दिशा में संध्या वंदन मंडप के ऊपरी भाग में कपिलेश्वर मंदिर है। सरोवर के दक्षिण में नम्मालवार का मंदिर है और उत्तर-पश्चिम में नरसिंह मूर्ति है। पर्वत पर जूते-चप्पल सहित नहीं जाया जाता। पूरे मार्ग में बिजली की व्यवस्था है।
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