त्रिपुर भैरवी (महाविद्या-6)
भगवती भैरवी (Tripura Bhairavi) ‘षष्ठ महाविद्या’ हैं। इनकी उपासना द्वारा साधक समाज में सम्मानित स्थान तथा समान अधिकार प्राप्त करता है। ये भी भगवती आद्या-काली का ही स्वरूप हैं। इन्हें ‘त्रिपुर भैरवी’ (Teipir Bhairavi) कहा जाता है। ये काल-रात्रि सिद्ध विद्या हैं।
काली, तारा महाविद्या, षोडशी भुवनेश्वरी ।
भैरवी, छिन्नमस्तिका च विद्या धूमावती तथा ॥
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दश-महाविद्याः सिद्ध-विद्याः प्रकीर्तिता: ॥
इनके शिव दक्षिणामूर्ति (काल भैरव) हैं। पंचमी विद्या भगवती छिन्नमस्ता का सम्बन्ध ‘महा प्रलय’ से है तथा इन षष्ठी विद्या त्रिपुर भैरवी का सम्बन्ध ‘नित्य-प्रलय’ से है ।
त्रिपुर भैरवी महाविद्या- 6
नाम | त्रिपुर भैरवी (En- Tripura Bhairavi) |
संबंध | 6 महाविद्या, देवी |
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अस्त्र | जपमाला पुस्तक वर और अभय मुद्रा |
जीवनसाथी | शिव |
सवारी | कमल |
जयंती | मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि |
बीज मंत्र | ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः॥ |
प्रत्येक पदार्थ प्रतिक्षण नष्ट होता रहता है। नष्ट करने का कार्य ‘रुद्र’ (शिव) का है। ये रुद्र ही विनाशोन्सुख होकर ‘यम’ कहलाने लगते हैं। इस यमाग्नि की सत्ता प्रधान रूप से दक्षिण-दिशा में है, इसी कारण यमराज को दक्षिण दिशा का लोकपाल माना जाता है।
सोम स्नेह-तत्त्व है, वह संकोचधर्मा है। अग्नि तेज-तत्त्व है, वह विशकलन धर्मा है। विशकलन-क्रिया ही वस्तु का नाश करती है। यह धर्म दक्षिणाग्नि का है। अतः इस रुद्र को दक्षिणामूर्ति, काल भैरव आदि नामों से संबोधित किया जाता है। इनकी शक्ति का नाम ही ‘भैरवी’ अथवा ‘त्रिपुर भैरवी’ है।
त्रिपुर भैरवी कौन है?
राजराजेश्वरी नाम से प्रसिद्ध ‘भुवनेश्वरी‘ जिन तीनों भुवनों के पदार्थों की रक्षा करती है, त्रिपुर भैरवी (Tripura Bhairavi) उन सब का नाश करती रहती है। त्रिभुवन के क्षणिक-पदार्थों का क्षणिक-विनाश इसी शक्ति पर निर्भर है। ‘छिन्नमस्ता’ परा- डाकिनी थी, यह ‘अवरा-डाकिनी’ है
त्रिपुरादेवी के तीन प्रकार कहे गए हैं- (१) बाला, (२) भैरवी और (३) सुन्दरो । ‘ज्ञानार्णव’ के अनुसार-‘त्रिपुरादेवी त्रिविद्या है, उन्हें ‘त्रिशशक्ति’ कहते है।
- वाराही तंत्र में लिखा है- त्रिदेव ने प्राचीन काल मे इनकी उपासना की थी, इसलिए इनका नाम त्रिपुरा हुआ।
- ब्रह्माण्डपुराणमें इन्हें गुप्त योगिनियों की अधिष्ठात्री देवी के रूपमें चित्रित किया गया है।
- मत्स्य पुराणमें इनके त्रिपुर भैरवी, कोलेश भैरवी, रुप्र भैरवी, चैतन्य भैरवी तथा नित्याभैरवी आदि रूपोंका वर्णन प्राप्त होता है। इन्द्रियों पर विजय और सर्वत्र उत्कर्ष की प्रापि हेतु त्रिपुर भैरवी की उपासना का वर्णन शास्त्रों में मिलता है।
महाविद्याओं में इनका छठा स्थान है। त्रिपुर भैरवी का मुख्य उपयोग घोर कर्म में होता है। इनके ध्यान का उल्लेख दुर्गासप्तशती के तीसरे अध्याय में महिषासुर-बध के प्रसंग में हुआ है।
त्रिपुर भैरवी के स्वरूप की व्याख्या (Iconography of Tripura Bhairavi)
त्रिपुर भैरवी (Tripura Bhairavi) के 4 हाथ और तीन नेत्र हैं। ये लाल वस्त्र पहनती हैं, गले में मुण्डमाला धारण करती हैं और स्तनों पर रक्त चन्दन का लेप करती हैं। ये अपने हाथों में जपमाला, पुस्तक तथा वर और अभय मुद्रा धारण करती हैं। इनका आसान लाल कमल हैं।
घोर कर्म के लिये काल की विशेष अवस्था जनित मानों को शान्त कर देने वाली शक्ति को ही त्रिपुर भैरवी कहा जाता है। इनका अरुण वर्ण विमर्श का प्रतीक है। इनके गले में सुशोभित मुण्डमाला ही वर्णमाला है। देवी के रक्त लिप्त पयोधर रजोगुण सम्पन्न सृष्टि प्रक्रिया के प्रतीक हैं। अक्ष जपमाला वर्ण समाग्राय की प्रतीक है। पुस्तक ब्रह्मविद्या है, त्रिनेत्र वेदत्रयी हैं तथा स्मिति हास करुणा है।
कमलासन पर विराजमान भगवती त्रिपुर भैरवी ने ही मधुपान करके महिष का हृदय विदीर्ण किया था। रुद्रयामल एवं भैरवी कुल सर्वस्व में इनकी उपासना तथा कवच का उल्लेख मिलता है। संकटों से मुक्ति के लिये भी इनकी उपासना करने का विधान है।
आगम ग्रन्थों के अनुसार त्रिपुर भैरवी एकाक्षररूप (प्रणव) है। इनसे सम्पूर्ण भुवन प्रकाशित हो रहे हैं तथा अन्त में इन्हीं में विलय हो जायेंगे। ‘अ’ से लेकर ‘विसर्ग’ तक सोलह वर्ण भैरव कहलाते हैं तथा ‘क’ से ‘क्ष’ तक के वर्ण योनि अथवा भैरवी कहे जाते हैं। स्वच्छन्दोद्योत के प्रथम पटल में इसपर विस्तृत प्रकाश डाला गया है।
यहाँ पर त्रिपुर भैरवी को योगीश्वरी रूप में उमा बतलाया गया है। इन्होंने भगवान् शंकरको पतिरूपमें प्राप्त करने के लिये कठोर तपस्या करने का दढ़ निर्णय लिया था। बड़े बड़े ऋषि-मुनि भी इनकी तपस्या को देखकर दंग रह गये। इससे सिद्ध होता है कि भगवान् शंकरकी उपासना में निरत उमा का दृढ़निश्यी स्वरूप ही त्रिपुर भैरवी का परिचायक है। त्रिपुर भैरवी की स्तुति में कहा गया है कि भैरवी जगत के मूल कारण की अधिष्ठात्री है।
त्रिपुर भैरवीके अनेक भेद हैं; जैसे सिद्धि भैरवी, चैतन्य भैरवी, भुवनेश्वरी भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कामेश्वरीभैरवी, घट्कुटाभैरवी, नित्याभैरवी, कोलेशीभैरवी, रुद्रभैरवी आदि।
सृष्टि में परिवर्तन होता रहता है। इसका मूल कारण आकर्षण विकर्षण है। इस सृष्टिके परिवर्तनमें क्षण-क्षणमें होनेवाली भावी क्रियाकी अधिष्ठातृ शक्ति ही वैदिक दृष्टिसे त्रिपुर भैरवी कही जाती हैं। त्रिपुर भैरवीको रात्रिका नाम कालरात्रि तथा भैरवका नाम काल भैरव है।
तिरुपुर भैरवी जयंती और पूजन विधि (Tripur Bhairavi Jyanti Pujan Vidhi)
त्रिपुर भैरवी जयंती मार्गशीर्ष मास के पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। घर मे लाल आसान बिछाकर दक्षिण की ओर मुख करके बैठ जाए। माँ त्रिपुर भैरवी का चित्र व यंत्र स्थापित करें। तत्पश्चात चित्र व यंत्र का विधिवत पूजन करें।
तिल के तेल का दीपक जलाएं करें, गूगल का धूप करें, रक्तचंदन से तिलक करें, आलता, लाल पुष्प, मसूर, उड़द व अरहर के दाने चढ़ाएं। गुड़ का भोग लगाएं। ततपश्चात लाल चंदन की माला से यथासंभव 51, 108, 1008 जाप करें। पूजन उपरांत भोग किसी गरीब को दान दे।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः।।
माँ त्रिपुर भैरवी बीज मंत्र (Tripur Bhairavi Beej Mantra)
माँ त्रिपुर भैरवी के बीज मंत्रों का जप करने से एक साथ अनेक संकटों से मुक्ति मिल जाती है। इन मंत्रों का जप करने वाला अत्यधिक धन का स्वामी बनकर जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य का अधिकारी बन जाता है। साथ ही मनोवांछित वर या कन्या को जीवनसाथी के रूप में प्राप्त करता है।
1. ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:।।
2- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः।।
3- ॐ ह्रीं सर्वैश्वर्याकारिणी देव्यै नमो नम:।।
त्रिपुरभैरवी माता का मंदिर (Tripura Bhairavi Temple Varanasi)
त्रिपुरभैरवी माता का मंदिर, वाराणसी कैंट स्टेशन से करीब 8 किलोमीटर दूर स्थित इस मंदिर तक पहुचने के लिए गोदौलिया आटो द्वारा पहुंचकर पैदल गलियो में पहुंचा जा सकता है। वहीं इस मंदिर तक मीर घाट होते हुए भी पहुंचा जा सकता है।
वाराणसी की विशिष्ट शैली की सकरी गलियों में मां त्रिपुर भैरवी का मंदिर स्थित है। कहां जाता है – “मां की अद्भुत प्रतिमा स्वयं भू है।” मां त्रिपुर भैरवी के दर्शन-पूजन से सभी प्रकार के दुःख दूर हो जाते हैं। मां का ऐसा महात्म्य है कि इनके आस-पास का पूरा मोहल्ला त्रिपुर भैरवी के नाम से जाना जाता है।
कार्तिक मास में अनन्त चतुर्दशी को मां का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इनके भक्तों को सहज रूप से विद्या प्राप्त होती है। मान्यता के अनुसार मां अपने भक्तों को विद्या के साथ सुख-सम्पत्ति भी प्रदान करती हैं। मंदिर परिसर में ही एक तरफ त्रिपुरेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित है।
वर्ष में पड़ने वाले दोनों नवरात्र में मां के दर्शन के लिए दर्शनार्थियों की काफी संख्या बढ़ जाती है। जबकि सप्ताह में मंगलवार एवं शुक्रवार को भी मां के दरबार में दर्शनार्थी मत्था टेकते हैं।
मंदिर खुलने का समय (Tripur Bhairavi Temple Timing)
यह मंदिर सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक खुला रहता है। सुबह की आरती 9 बजे एवं रात की शयन आरती 10 बजे मन्त्रोच्चारण के बीच सम्पन्न होती है।
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