Uttara Ashadha Nakshatra: उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की सम्पूर्ण जानकारी
Uttara Ashadha Nakshatra: राशि पथ के 266.40-270.00 अंशों के मध्य उत्तराषाढ़ा नक्षत्र की स्थिति मानी गयी है। इस नक्षत्र के प्रथम तीन चरण मकर राशि एवं अंतिम चरण कुंभ राशि में होता है। दोनों राशियों का स्वामी शनि है। चरणाक्षर हैं. मे, मो. ज, जी।
उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में चार तारे हैं तथा उसकी स्थिति एक मचान अथवा शैया की तरह अर्थात् चौकोर है। नक्षत्र का देवता विश्व देव कहा गया है। सूर्य को उसका अधिपत्य दिया गया है।
- प्रथम चरण का स्वामी गुरु
- द्वितीय चरण का स्वामी शनि
- तृतीय चरण का स्वामी शनि
- चतुर्थ चरण का स्वामी गुरु है।
प्रतीकवाद
उत्तराषाढा के देवता विश्वदेवा या विश्वेदेवा है। यह देवताओं का समूह है। ऋग्वेद की लगभग 40 ऋचाओ मे इन वैदिक देवताओ का वर्णन है।
विष्णु पुराण अनुसार ये (विश्वदेव) विश्वा (दक्ष की पुत्री) के पुत्र थे, ये क्रमश: 1 वसु, 2 सत्य, 3 कृतु, 4 दक्ष, 5 काल, 6 काम 7 धृति 8 कुरु, 9 पुरुरवास, 10 मद्रवास मूलतः दस तथा दो जोड़े गये 11 रोदक या लोकन, 12 ध्वनि धुरी है।
विशेषताएँ
यह एक अपराजित नक्षत्र है। इस नक्षत्र में उत्पन्न जातक धर्मपरायण, सदाचारी, अत्यधिक, धैर्यशाली होता है। ऐसा जातक अपने कार्य-व्यवहार में सदैव ईमानदारी बरतने वाले ये जातक पारदर्शी होते हैं। इन्ही गुणो के कारण वह पूर्वाषाढा नक्षत्र के जातक से भिन्न होता हैं।
क्या करें क्या न करें?
अनुकूल कार्य: यह शुरुआत, योजना, आध्यात्मिक गतिविधिया, व्यापार, विवाह, सम्भोग, कानूनी मामले, नीव रखना, धर्म, कला, राजनीति, गृह प्रवेश के लिए अनुकूल है।
प्रतिकूल कार्य: यह यात्रा, निष्कर्ष, समाप्तिकरण, विसर्जन, दुर्व्यवहार और अनैतिकता के प्रतिकूल है।