वराह पुराण
वराह पुराण (Varah Puran) में भगवान श्रीहरि के वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है।
इसमें भगवान नारायणका पूजन-विधान, शिव-पार्वती की कथाएँ, वराह क्षेत्रवर्ती आदित्य तीर्थों की महिमा, मोक्षदायिनी नदियों की उत्पत्ति और माहात्म्य एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है।
The Varah Puran, Varaha Purana is a Sanskrit text from the Puranas genre of literature in Hinduism. It belongs to the Vaishnavism literature corpus praising Narayana (Vishnu), but includes chapters dedicated to praising and centered on Shiva and Shakti (goddesses it calls Brahmi, Vaishnavi and Raudri).
वराह पुराण (Varah Puran Hindi)
लेखक | वेदव्यास |
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देश | भारत |
भाषा | संस्कृत |
समर्पित | वराह अवतार |
विषय | विष्णु भक्ति |
प्रकार | प्रमुख वैष्णव ग्रन्थ |
पृष्ठ | 25,000 श्लोक |
वराह पुराण क्या है? (What is Varaha Purana in hindi)
‘वराह पुराण’ हिन्दू धर्म के पवित्र 18 पुराणों में से एक है, पुराणों की सूची में इसका स्थान 12 है। ऋषि व्यास द्वारा लिपिबद्ध इस पुराण में कुल 217 अध्याय और चौबीस हजार श्लोक है।
‘वराह पुराण’ वैष्णव पुराण है। भगवान विष्णु के दशावतारों में एक अवतार ‘वराह अवतार’ (Varah Awtar) है। पृथ्वी का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने यह अवतार लिया था। इस अवतार की विस्तृत व्याख्या इस पुराण में की गई है।
इस पुराण में भगवान श्रीहरि (विष्णु) के वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ, दान आदि का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें भगवान नारायणका पूजन-विधान, शिव-पार्वती की कथाएँ, वराह क्षेत्रवर्ती आदित्य तीर्थों की महिमा, मोक्षदायिनी नदियों की उत्पत्ति और माहात्म्य एवं त्रिदेवों की महिमा आदि पर भी विशेष प्रकाश डाला गया है।
वराह पुराण कथा और इतिहास (History & Story of varaha Purana in Hindi)
यह पुराण सर्वप्रथम भगवान् वराह ने पृथ्वी को सुनाया था, इसी कारण इसे ‘वराह पुराण’ कहा जाता है। वस्तुत भगवान् विष्णु ने ही पृथ्वी के उद्धार के लिए वराहावतार धारण किया था। इस अवतार में भगवान् वराह ने हिरण्याक्ष नामक दैत्य का वध कर पृथ्वी को एक सहस्र वर्ष तक अपने विशालमुख पर धारण किया था।
इसके बाद नियम स्थान पर स्थापित होने के पश्चात पृथ्वी द्वारा भगवान् वराह के स्वरूप से संबंधित अपनी जिज्ञासाओं को प्रस्तुत करने पर भगवान वराह ने उन्हें पौराणिक तथा गूढ़ ज्ञान का उपदेश दि︎या था। भगवान् वराह द्वारा पृथ्वी को दि︎ए गए उसी दि︎व्य ज्ञान का इस पुराण पुराण में विस्तृत विवेचन किया गया है।
वराह पुराण में क्या है? (What is in Varaha purana in hindi)
इसमें भगवान श्रीहरि के वराह अवतार की मुख्य कथा के साथ अनेक तीर्थ, व्रत, यज्ञ-यजन, श्राद्ध-तर्पण, दान और अनुष्ठान आदि का शिक्षाप्रद और आत्मकल्याणकारी वर्णन है। भगवान श्रीहरि की महिमा, पूजन-विधान, हिमालय की पुत्री के रूप में गौरी की उत्पत्ति का वर्णन और भगवान शंकर के साथ उनके विवाह की रोचक कथा इसमें विस्तार से वर्णित है।
इसके अतिरिक्त इसमें वराह-क्षेत्रवर्ती आदित्य-तीर्थों का वर्णन, भगवान श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं के प्रभाव से मथुरामण्डल और व्रज के समस्त तीर्थों की महिमा और उनके प्रभाव का विशद तथा रोचक वर्णन है।
वराह पुराण की संरचना (Structure of Varaha Puran in Hindi)
व्यास ऋषि द्वारा रचित इस पुराण में दो सौ सत्तरह अध्याय और लगभग दस हज़ार श्लोक हैं। इन श्लोकों में भगवान वराह के धर्मोपदेश कथाओं के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। ‘वराह पुराण’ एक योजनाबद्ध रूप से लिखा गया पुराण है। पुराणों के सभी अनिवार्य लक्षण इसमें मिलते हैं। यह पुराण दो भागों से युक्त है पूर्व भाग और उत्तर भाग।
पूर्व भाग
वराह पुराण में सबसे पहले पृथ्वी और वाराह भगवान का शुभ संवाद है, तदनन्तर आदि सत्ययुग के वृतांत में रैम्य का चरित्र है, फ़िर दुर्जेय चरित्र और श्राद्ध कल्प का वर्णन है, तत्पश्चात महातपा, गौरी, विनायक, नागगण सेनानी (कार्तिकेय) आदित्यगण देवी धनद तथा वृष का आख्यान है।
उसके बाद सत्यतपा के व्रत की कथा दी गयी है, तदनन्तर अगस्त्य गीता तथा रुद्रगीता कही गयी है, महिषासुर के विध्वंस में ब्रह्मा विष्णु रुद्र तीनों की शक्तियों का माहात्म्य प्रकट किया गया है, तत्पश्चात पर्वाध्याय श्वेतोपाख्यान गोप्रदानिक इत्यादि सत्ययुग वृतान्त मैंने प्रथम भाग में दिखाया गया है।
फ़िर भगवर्द्ध में व्रत और तीर्थों की कथायें है, प्राय: सभी तीर्थों के पृथक पृथक माहात्मय का वर्णन है, मथुरा की महिमा विशेषरूप से दी गयी है, उसके बाद श्राद्ध आदि की विधि है।
तदनन्तर ऋषि पुत्र के प्रसंग से यमलोक का वर्णन है, कर्मविपाक एवं विष्णुव्रत का निरूपण है, गोकर्ण के पापनाशक माहात्मय का भी वर्णन किया गया है, इस प्रकार वाराहपुराण का यह पूर्वभाग कहा गया है।
उत्तर भाग
वराह पुराण के उत्तर भाग में ऋषि पुलस्त्य और पुरुराज के सम्वाद के रूप में विस्तार के साथ सब तीर्थों के माहात्मय का वर्णन है। फ़िर सम्पूर्ण धर्मों की व्याख्या और पुष्कर नामक पुण्य पर्व का भी वर्णन है।
वराह पुराण का महत्व (Importance of Varaha Purana in hindi)
‘वराह पुराण’ एक वैष्णव पुराण है। पृथ्वी का उद्धार करने के लिए भगवान विष्णु ने वराह अवतार लिया था। इस अवतार की विस्तृत व्याख्या इस पुराण में की गई है। वराह पुराण में, पुराणों के सभी अनिवार्य लक्षण मिलते हैं। साथ इसमे ही कुछ सनातन उपदेश भी हैं जिन्हें ग्रहण करना प्रत्येक प्राणी का लक्ष्य होना चाहिए।
‘वराह पुराण’ का भौगोलिक दृशी से भी महत्व है इसमे वर्णित भौगोलिक वर्णन अन्य पुराणों के भौगोलिक वर्णनों से अधिक प्रामाणिक और स्पष्ट हैं। इस पुराण में मथुरा नागरी के तीर्थों का वर्णन अत्यन्त विस्तृत रूप मिलता है।
इन श्लोकों में भगवान वराह के धर्मोपदेश कथाओं के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। ‘वराह पुराण’ एक योजनाबद्ध रूप से लिखा गया पुराण है।