वरुथिनी एकादशी : व्रत कथा, मुहूर्त एवं पूजा विधि
वैशाख मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत-पूजन करने से अधूरी मनोकामनाएं विष्णु भगवान अवश्य पूरी करते है।
वरुथिनी एकादशी व्रत सम्पूर्ण जानकरी
आधिकारिक नाम | वरूथिनी एकादशी व्रत |
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अनुयायी | हिन्दू, वैष्णव |
प्रकार | व्रत |
देवता | विष्णु (नारायण) |
उद्देश्य | सर्वकामना पूर्ति |
तिथि | वैशाख के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि |
वरुथनी एकादशी क्या है? (What is Varuthini Ekadashi)
हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं।
वैशाख मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि में पड़ने वाली एकादशी को ‘वरुथिनी एकादशी’ कहते है। इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार यह अप्रैल-मई में पड़ता है। हिन्दू मान्यता अनुसार इस दिन व्रत-पूजन करने से अधूरी मनोकामनाएं विष्णु भगवान पूरी करते है।
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा
युधिष्ठिर ने पूछा : हे वासुदेव! वैशाख मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? कृपया उसकी महिमा बताइये।
भगवान श्रीकृष्ण बोलेः राजन् ! वैशाख कृष्णपक्ष की एकादशी वरुथिनी के नाम से प्रसिद्ध है। यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करनेवाली है। वरुथिनी के व्रत से सदा सुख की प्राप्ति और पाप की हानि होती है। ‘वरुथिनी’ के व्रत से ही मान्धाता तथा धुन्धुमार आदि अन्य अनेक राजा स्वर्गलोक को प्राप्त हुए हैं। जो फल दस हजार वर्षों तक तपस्या करने के बाद मनुष्य को प्राप्त होता है, वही फल इस ‘वरुथिनी एकादशी’ का व्रत रखने मात्र से प्राप्त हो जाता है
नृपश्रेष्ठ! घोड़े के दान से हाथी का दान श्रेष्ठ है। भूमिदान उससे भी बड़ा है। भूमिदान से भी अधिक महत्व तिलदान का है। तिलदान से बढ़कर स्वर्णदान और स्वर्णदान से बढ़कर अन्नदान है, क्योंकि देवता, पित्र तथा मनुष्यों को अन्न से ही तृप्ति होती है। विद्वान पुरुषों ने कन्यादान को भी इस दान के ही समान बताया है। कन्यादान के तुल्य ही गाय का दान है, यह साक्षात भगवान का कथन है। इन सब दानों से भी बड़ा विद्यादान है। मनुष्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करके विद्यादान का भी फल प्राप्त कर लेता है।
जो लोग पाप से मोहित होकर कन्या के धन से जीविका चलाते हैं. वे पुण्य का क्षय होने पर यातनामक नरक में जाते हैं। अतः सर्वथा प्रयत्न करके कन्या के धन से बचना चाहिए उसे अपने काम में नहीं लाना चाहिए। जो अपनी शक्ति के अनुसार अपनी कन्या को आभूषणों से विभूषित करके पवित्र भाव से कन्या का दान करता है, उसके पुण्य की संख्या बताने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं। ‘वरुथिनी एकादशी’ करके भी मनुष्य उसी के समान फल प्राप्त करता है।
राजन! रात को जागरण करके जो भगवान मधुसूदन का पूजन करते हैं, वे सब पापों से मुक्त हो परम गति को प्राप्त होते हैं। अत: पाप भीरु मनुष्यों को पूर्ण प्रयत्न करके इस एकादशी का व्रत करना चाहिए। यमराज से डरने वाला मनुष्य अवश्य वरुथिनी एकादशी का व्रत करे। राजन! इसके पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है और मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है।
राजा मान्धाता कथा (Raja Mandhata Story In Hindi)
प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नामक राजा राज्य करते थे। वह अत्यंत दानशील तथा तपस्वी थे। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी न जाने कहाँ से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहे। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया।
राजा बहुत घबराया, मगर तापस धर्म अनुकूल उसने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की, करुण भाव से भगवान विष्णु को पुकारा। उसकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला।
राजा का पैर भालू पहले ही खा चुका था। इससे राजा बहुत ही शोकाकुल हुए. उसे दुखी देखकर भगवान विष्णु बोले: हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।
भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर श्रद्धापूर्वक वरूथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा शीघ्र ही पुन: सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गये थे।
जो भी व्यक्ति भय से पीड़ित है उसे वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। इस व्रत को करने से समस्त पापों का नाश होकर मोक्ष मिलता है।
2021 में वरुथिनी एकादशी व्रत कब है? (Varuthani Ekadashi Vrat Date and Muhurat)
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वरुथिनी एकादशी वेशाख मास के कृष्णपक्ष के दौरान ग्यारहवें दिन (एकादशी) को आती है। इंग्लिश कलेंडर के अनुसार, यह ऐप्रेल या मई के महीने में पड़ता है।
सूर्योदय (Sunrise) | May 07, 2021 5:53 AM |
सूर्यास्त (Sunset) | May 07, 2021 6:53 PM |
एकादशी प्रारंभ (Ekadashi Begins) | May 06, 2021 2:11 PM |
एकादशी समाप्त (Ekadashi Ends) | May 07, 2021 3:32 PM |
द्वादशी समाप्त (Dwadashi End) | May 08, 2021 5:21 PM |
हरी वसारा (Hari Vasara End) | May 07, 2021 9:59 PM |
पारण टाइम (Parana Time) | May 08, 5:53 AM – May 08, 8:29 AM |
Varuthini Ekadashi festival dates between 2021 & 2025
2021 | Friday, 7th of May |
2022 | Tuesday, 26th of April |
2023 | Sunday, 16th of April |
2024 | Saturday, 4th of May |
2025 | Thursday, 24th of April |
2021 में पढ़ने वाले एकादशी व्रत (Ekadashi Tithi Date List in 2021)
शुक्रवार, 23 अप्रैल | कामदा एकादशी |
शुक्रवार, 07 मई | वरुथिनी एकादशी |
रविवार, 23 मई | मोहिनी एकादशी |
रविवार, 06 जून | अपरा एकादशी |
सोमवार, 21 जून | निर्जला एकादशी |
सोमवार, 05 जुलाई | योगिनी एकादशी |
मंगलवार, 20 जुलाई | देवशयनी एकादशी |
बुधवार, 04 अगस्त | कामिका एकादशी |
बुधवार, 18 अगस्त | श्रावण पुत्रदा एकादशी |
शुक्रवार, 03 सितंबर | अजा एकादशी |
शुक्रवार, 17 सितंबर | परिवर्तिनी एकादशी |
शनिवार, 02 अक्टूबर | इन्दिरा एकादशी |
शनिवार, 16 अक्टूबर | पापांकुशा एकादशी |
सोमवार, 01 नवंबर | रमा एकादशी |
रविवार, 14 नवंबर | देवुत्थान एकादशी |
मंगलवार, 30 नवंबर | उत्पन्ना एकादशी |
मंगलवार, 14 दिसंबर | मोक्षदा एकादशी |
गुरुवार, 30 दिसंबर | सफला एकादशी |