Narayan & Nagbali: नारायणबलि और नागबलि क्या हैं?
Narayan Nagbali Puja: नारायणबलि और नागबलि दोनों मानव की अपूर्ण इच्छाओं और कामनाओं को पूरा करने के लिए की जाती हैं। इसलिए दोनों काम्य हैं। नारायणबलि और नागबलि दो अलग-अलग प्रकार की प्रथाएं हैं।
नारायण बली और नाग बली में क्या अंतर है? | What is the difference between Narayan Bali and Nag Bali
What is Narayan Nagbali: नारायणबलि का मुख्य लक्ष्य पितृदोष को दूर करना है, जबकि नागबलि का मुख्य लक्ष्य सर्प या नाग की हत्या के दोष को दूर करना है।
इसमें से कोई भी एक विधि करने से उद्देश्य नहीं पूरा होता, इसलिए दोनों को एक साथ करना चाहिए। इन कारणों से नारायणबलि पूजा की जाती है!
पितृ दोष क्या है? | What is Pitra dosha?
जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं किया गया है। तो इसका परिणाम उनकी आगामी पीढि़यों में भी होता है। इसे ही पितृ दोष कहते है।
ऐसे लोगों का जीवन भर कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान नहीं किया जाए।प्रेमयोनी की पीड़ा को दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है। परिवार का कोई सदस्य अचानक मर गया हो। ऐसा दोष आत्महत्या, पानी में डूबने, आग में जलने या दुर्घटना में मरने से होता है।
यह पूजा क्यों की जाती है? | Who should perform Narayan Nagbali
Who should perform Narayan Nagbali: शास्त्रों में कहा गया है कि नारायणबलि-नागबलि कर्म करने से पितृदोष दूर होता है। यह भी आवश्यक है कि आप पूर्ण जानकारी रखें कि किस तरह और कौन इसे कर सकता है। यदि कोई अपने पिता का आशीर्वाद चाहता है तो वह इसे कर सकता है। जिन जातकों के माता-पिता आज भी जीवित हैं, वे भी ऐसा कह सकते हैं।
यह काम पत्नी के साथ करना चाहिए, क्योंकि इससे संतान प्राप्ति, वंश वृद्धि, कर्ज से छुटकारा और काम में आने वाले अवरोधों दूर होगा। कुल को बचाने के लिए पत्नी के बिना भी यह कार्य किया जा सकता है। यदि पत्नी गर्भवती है, तो यह कार्य गर्भधारण से पांचवें महीने तक नही किया जा सकता है। घर में कोई मांगलिक कार्य हो तो ये एक वर्ष तक नहीं किए जा सकते। माता-पिता की मृत्यु होने पर भी एक वर्ष तक ऐसा करना वर्जित है।
नारायणबलि नागबलि पूजा कब नही करना चाहिए? | What are the rules for Narayan Nagbali pooja
नारायणबलि गुरु, शुक्रवार को अस्त नहीं होना चाहिए। लेकिन प्रमुख ग्रंथ निर्णण सिंधु का मत है कि इस कर्म के लिए सिर्फ नक्षत्रों के गुणों और दोषों को देखना चाहिए। नारायणबलि कर्म में धनिष्ठा पंचक और त्रिपाद नक्षत्र धारण करना वर्जित है।
धनिष्ठा पंचक में चार नक्षत्र हैं: रेवती, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और शतभिक्षा। त्रिपाद नक्षत्र हैं कृतिका, पुनर्वसु, विशाखा, उत्तराषाढ़ा और उत्तराभाद्रपद। इनके अलावा, यह कार्य किसी भी समय किया जा सकता है।
नारायणबलि पूजा कब और कहा कराना चाहिए | When and where should Narayan Bali Puja be performed?
नारायणबलि नागबलि के लिए पितृपक्ष सबसे अच्छा है। किसी अनुभवी पुरोहित से समय निकालकर इसे पूरा करना चाहिए। यह काम गंगा तट या किसी और नदी के किनारे भी कराया जाता है। पूरी पूजा तीन दिनों तक चलती है।