क्यों प्रिय है भगवान शिव को बिल्व पत्र ?
भगवान शिव (Lord Shiva) को बिल्व पत्र प्रिय है। यह सभी जानते है। पूजन में बिल्व पत्र (Bel Leaves) का प्रयोग भी करते हैं, लेकिन भगवान शिव को क्यों बेलपत्र प्रिय है, यह नहीं जानते हैं। इसलिए हम आज आपको बताने जा रहे है, आखिर क्यों भगवान शिव को इतने प्रिय है बिल्व पत्र…
शिव पूजन में बेलपत्र का महत्व (Why Do We Offer Bilva Patra to lord Shiva?)
भगवान शिव की प्रिय चीजों में बिल्वपत्र (Bel Leaves) को सबसे प्रिय माना गया है। बिल्वपत्र के बिना भगवान शिव की पूजा अधूरी मानी जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव मात्र एक बिल्वपत्र और एक लोटा जल चढ़ाने से भी प्रसन्न हो जाते हैं, इसलिए शिव को “आशुतोष” भी कहते है। और पढ़ें: शिव पूजन में ध्यान रखने योग्य बातें
बेलपत्र की 3 पत्तियां निम्न चीज़ों को दर्शाता है-
- त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश
- तीन गुण- सात्विक, राजसिक, तामसिक।
- तीन वेद- ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद
- जीवन के तीन चरणों- जन्म, जीवनयात्रा और मृत्यु।
- त्रिलोक- आकाश, पाताल और पृथ्वी।
भगवान् शिव बेलपत्र से बेहद प्रसन्न हो जाते हैं। महाशिवरात्रि पर मंदिरों में शिवलिंग पूरी तरह से बिल्वपत्रों से ढक जाती है। इस विषय में अनेक पौराणिक किंवदंतियाँ भी प्रचलित हैं। जिनमें एक व्याध की कथा काफी लोकप्रिय है-
व्याध की कथा: एक बार एक व्याघ शिकार हेतु जंगल में गया तथा रात्रि को घर नहीं लौट सका। अंततः उसने एक बेल के पेड़ पर चढ़कर रात्रि बिताई। बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरे, जो बेल के वृक्ष के नीचे ही था भगवान् शिव उससे बड़े प्रसन्न हुए तथा उसे मनोवांछित फल प्रदान किए। और पढ़ें: जानें, शिव लिंग का रहस्य
शिव ने नारद मुनि को बताया था, बेलपत्र का रहस्य (Why Lord Shiva loves Bilva Patra?)
एक समय महर्षि नारद कैलाश पर्वत में जाकर भगवान शिव की स्तुति करने लगे। स्तुति करने के अनन्तर भगवान शिव ने नारद से कहा महाभाग! ‘आप किस प्रयोजन से आये है, आपके मन मे क्या है कहिये, वह सब कुछ में आपको बताऊंगा। और पढ़ें: नारद मुनि का रहस्य
नारद बोले- हे त्रिलोकीनाथ! आप सहज ही प्रसन्न हो जाते हैं फिर भी मेरी जानने की इच्छा है कि आपको सबसे ज्यादा क्या प्रिय है?
शिवजी बोले – नारदजी! वैसे तो मुझे भक्त के भाव सबसे प्रिय हैं, फिर भी आपने पूछा है तो बताता हूं। मुझे जल के साथ-साथ बिल्वपत्र बहुत प्रिय है। जो अखंड बिल्वपत्र मुझे श्रद्धा से अर्पित करते हैं, मैं उन्हें अपने लोक में स्थान देता हूं। और पढ़ें: रुद्राभिषेक से करे शिव को प्रसन्न
नारदजी भगवान शंकर और माता पार्वती की वंदना कर अपने लोक को चले गए। उनके जाने के पश्चात् पार्वतीजी को बेलपत्र प्रिय होने का कारण जानने की जिज्ञासा हुई।
पार्वती ने कहा- हे प्रभु! मेरी यह जानने की बड़ी उत्कृष्ट इच्छा हो रही है कि आपको बिल्व पत्र इतने प्रिय क्यों है। कृपा करके मेरी जिज्ञासा शांत करें।
शिवजी बोले- हे शिवे! बिल्व के पत्ते मेरी जटा के समान हैं। उसका त्रिपत्र यानी 3 पत्ते ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद हैं। शाखाएं समस्त शास्त्र का स्वरूप हैं। बिल्ववृक्ष को आप पृथ्वी का कल्पवृक्ष समझें। जो ब्रह्मा-विष्णु-शिव स्वरूप है। स्वयं महालक्ष्मी ने शैल पर्वत पर बिल्ववृक्ष रूप में जन्म लिया था।
लक्ष्मी ने लिया था बेल वृक्ष का रूप (Mahalakshmi Bilva Patra story)
पार्वतीजी ने शिव से पूछा कि देवी लक्ष्मी ने आखिर बिल्ववृक्ष का रूप क्यों लिया? भोलेनाथ ने देवी पार्वती को विस्तार से कथा सुनाते हुए बताया कि हे देवी! सतयुग में ज्योतिरूप में मेरे अंश का रामेश्वर लिंग था। ब्रह्मा आदि देवों ने उसका विधिवत पूजन-अर्चन किया था फलतः मेरे अनुग्रह से वाग्देवी सबकी प्रिया हो गई। वे भगवान विष्णु को सतत प्रिय हो गई। और पढ़ें: द्वादश ज्योतिर्लिंग का रहस्य
मेरे प्रभाव से भगवान केशव के मन में वाग्देवी के लिए जितनी प्रीति हुई वह स्वयं लक्ष्मी को नहीं भाई अतः लक्ष्मी देवी चिंतित और रुष्ट होकर परम उत्तम श्री शैल पर्वत पर चली गई। वहां उन्होंने मेरे लिंग विग्रह की उग्र तपस्या प्रारंभ कर दी।
हे परमेश्वरी ! कुछ समय बाद महालक्ष्मीजी ने मेरे लिंग विग्रह से थोड़ा ऊर्ध्व में एक वृक्ष का रूप धारण कर लिया और अपने पत्र-पुष्प द्वारा निरंतर मेरा पूजन करने लगीं। इस तरह उन्होंने कोटि वर्ष तक आराधना की। अंततः उन्हें मेरा अनुग्रह प्राप्त हुआ। महालक्ष्मी ने मांगा कि श्रीहरि के हृदय में मेरे प्रभाव से वाग्देवी के लिए जो स्नेह हुआ है, वह समाप्त हो जाए।
शिवजी बोले कि मैंने महालक्ष्मी को समझाया कि श्रीहरि के हृदय में आपके अतिरिक्त किसी और के लिए कोई प्रेम नहीं है। वाग्देवी के प्रति तो उनकी श्रद्धा है। यह सुनकर लक्ष्मीजी प्रसन्न हो गईं और पुनः श्रीविष्णु के हृदय में स्थित होकर निरंतर उनके साथ विहार करने लगीं। लक्ष्मी के हृदय का एक बड़ा विकार इस प्रकार दूर हुआ था। इस कारण हरिप्रिया उसी वृक्षरूप में सर्वदा अतिशय भक्ति से भरकर यत्नपूर्वक मेरी पूजा करने लगीं। बिल्व इस कारण बहुत प्रिय है और मैं बिल्ववृक्ष का आश्रय लेकर रहता हूं। और पढ़ें: एकादश रुद्र (शिव के 11 स्वरूप)
बिल्व वृक्ष को सदा सर्व तीर्थमय एवं सर्व देवमय मानना चाहिए। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। बिल्वपत्र, बिल्व फूल, बिल्व वृक्ष अथवा बिल्व काष्ठ के चंदन से जो मेरा पूजन करता है, वह भक्त मेरा प्रिय है। बिल्व वृक्ष को शिव के समान ही समझो। वह मेरा शरीर है।
जो बिल्व पर चंदन से मेरा नाम अंकित करके मुझे अर्पण करता है, मैं उसे सभी पापों से मुक्त करके अपने लोक में स्थान देता हूं। उस व्यक्ति को स्वयं लक्ष्मीजी भी नमस्कार करती हैं। जो बिल्वमूल में प्राण छोड़ता है, उसको रुद्र देह प्राप्त होता है। और पढ़ें: कौन से देवी-देवता को चढ़ाए कौन सा प्रसाद
बिल्वपत्र चढ़ाते समय इन बातों का रखें ध्यान (How To Offer Belpatra To Lord Shiva?)
- भगवान शिव को बिल्वपत्र चढ़ाने से पहले उन्हें भलिभांति धोने के बाद गंगाजल से शुद्ध कर लें।
- शिवलिंग पर बिल्वपत्र अर्पित करे से पहले सुनिश्चित कर लें कि वह कहीं से भी कटा-फटा न हो।
- शिव जी को बिल्वपत्र के साथ जल अवश्य चढ़ाएं।
- शिवलिंग पर हमेशा तीन पत्तियों का बिल्वपत्र ही चढ़ाना चाहिए
- बिल्वपत्र अर्पित करते समय उनके पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय का उच्चारण भी करते रहना चाहिए।