Rechest Temple: तिरूपति मंदिर के पास कुल कितनी संपत्ति है?
Tirupati Balaji Temple: आंध्र प्रदेश के चित्तुर जिले में धन और वैभव के भगवान श्री तिरूपति बालाजी मंदिर स्थित है। ऐसा माना जाता है यहां साक्षात् भगवान व्यंकटेश विराजमान हैं। यहां बालाजी की करीब 7 फीट ऊंची श्यामवर्ण की प्रतिमा भी स्थापित है।
तिरूपति बालाजी में चढ़ता है सर्वाधिक चढ़ावा (Tirupati Balaji is The Richest Temple in The World
तिरूपति बालाजी एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान को सबसे अधिक धन, सोना, चांदी, हीरे-जवाहरात अर्पित किए जाते हैं। यहां दान करने की कोई सीमा नहीं है। भक्त यहां नि:स्वार्थ भाव से अपनी श्रद्धा के अनुसार धन अर्पित करते हैं। तिरुपति बालाजी विश्व का सर्वाधिक दान राशि प्राप्त करने वाला मंदिर है।
तिरुपती के पास कुल कितनी संपत्ति है? (Tirupati’s Balaji temple richer than Wipro, ONGC and IOC)
आपको जानकर आश्चर्य होगा, कि तिरुपति मंदिर के पास देश के शीर्ष के कई कंपनियों से भी अधिक संपत्ति है। तिरुपति मंदिर की कुल संपत्ति 2.26 लाख करोड़ रुपये आंकी गई है। मंदिर ट्रस्ट का राष्ट्रीयकृत बैंकों में 5,300 करोड़ (10.4 टन सोना) से अधिक का सोना जमा है। इसके अलावा जमा नकदी 15,938 करोड़ रुपये है।
सालाना 200 करोड़ से अधिक का बाल चढ़ाया जाता है (Temple earns more than 200 crore Annualy by Hair Donation)
आपको यह बात जानकर हैरानी होगी, कि इस मंदिर में प्रतिदिन लगभग 20,000 भक्त अपने बाल दान करते हैं। इस कार्य को संपन्न करने के लिए मंदिर परिसर में करीब 600 नाइयों का भी प्रबंध है। इन बालों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेचा जाता है। अकेले बाल को बेचने से मंदिर को सालाना 150 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है।
तिरुपति बालाजी में धन चढ़ाने की पौराणिक मान्यता (Here is Why it is The Richest Temple in The World)
तिरुपति मंदिर में धन चढ़ाने के संबंध में एक कथा बहुप्रचलित है। कथा के अनुसार एक बार सभी ऋषियों में यह बहस शुरू हुई कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सबसे बड़ा देवता कौन हैं? त्रिदेव की परिक्षा के लिए ऋषि भृगु को नियुक्त किया गया। इस कार्य के लिए भृगु ऋषि भी तैयार हो गए। ऋषि सबसे पहले ब्रह्मा के समक्ष पहुंचे और उन्होंने परमपिता को प्रणाम तक नहीं करा, इस पर ब्रह्माजी भृगु ऋषि पर क्रोधित हो गए। (और पढ़ें: तिरुपति बालाजी मंदिर की सम्पूर्ण जानकारी
अब ऋषि शिवजी की परिक्षा लेने पहुंचे। कैलाश पहुंचकर भृगु बिना महादेव की आज्ञा के उनके सामने उपस्थित हो गए और शिव-पार्वती का अनादर कर दिया। इससे शिवजी अतिक्रोधित हो गए और भृगु ऋषि का अपमान कर दिया। अंत में ऋषि भुगु भगवान विष्णु के सामने क्रोधित अवस्था में पहुंचे और श्रीहरि की छाती पर लात मार दी। इस भगवान विष्णु ने विनम्रता से पूर्वक पूछा कि मेरी छाती व्रज की तरह कठोर है अत: आपके पैर को चोट तो नहीं लगी?
यह सुनकर भृगु ऋषि समझ गए कि श्रीहरि ही सबसे बड़े देवता यही है।यह सब माता लक्ष्मी देख रही थीं और वे अपने पति का अपमान सहन नहीं कर सकी और विष्णु को छोड़कर दूर चले गईं और तपस्या में बैठ गई। लंबे समय के बाद देवी लक्ष्मी ने शरीर त्याग दिया और पुन: एक दरिद्र ब्राह्मण के यहां जन्म लिया।
जब विष्णु को यह ज्ञात हुआ तो वे माता लक्ष्मी से विवाह करने पहुंचे परंतु देवी लक्ष्मी के गरीब पिता ने विवाह के लिए विष्णु से काफी धन मांगा। लक्ष्मी के जाने के बाद विष्णु के पास इतना धन नहीं था। तब देवी लक्ष्मी से विवाह के लिए उन्होंने देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेरदेव से धन उधार लिया। इस उधार लिए धन की वजह से विष्णु-लक्ष्मी का पुन: विवाह हो सका। (और पढ़ें: वैभव लक्ष्मी व्रत कथा पर पूजन विधि
कुबेर देव धन चुकाने के संबंध में यह शर्त रख दी कि जब तक मेरा कर्ज नहीं उतर जाता आप माता लक्ष्मी के साथ केरल में रहेंगे। बस तभी से तिरूपति अर्थात् भगवान विष्णु वहां विराजित हैं। कुबेर से लिए गए उधार धन को उतारने के लिए भगवान के भक्तों द्वारा तिरूपति में धन चढ़ाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह कुबेर देव को प्राप्त होता है और भगवान विष्णु का कर्ज कम होता है।
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