Skip to content

imvashi

  • Home
  • HindusimExpand
    • Vrat Tyohar
    • Devi Devta
    • 10 Mahavidya
    • Pauranik katha
  • TempleExpand
    • Jyotirlinga
    • ShaktiPeeth
  • AstrologyExpand
    • Jyotish
    • Face Reading
    • Shakun Apshakun
    • Dream
    • Astrologer
    • Free Astrology Class
  • BiogpraphyExpand
    • Freedom Fighter
    • Sikh Guru
  • TourismExpand
    • Uttar Pradesh
    • Delhi
    • Uttarakhand
    • Gujarat
    • Himachal Pradesh
    • Kerala
    • Bihar
    • Madhya Pradesh
    • Maharashtra
    • Manipur
    • Kerala
    • Karnataka
    • Nagaland
    • Odisha
  • Contact Us
Donate
imvashi
Donate

Yaksha Prashna: ‘यक्ष’ ने किए थे युधिष्ठिर से ये प्रश्न

Byvashi Pauranik-katha
4.9/5 - (54109 votes)

Yaksh Yudhisthir Samvad: यक्ष और युधिष्ठिर के बीच जो संवाद हुआ है उसे जानने के बाद आप जरूर हैरान रह जाएंगे। यह प्रश्न अध्यात्म, दर्शन और धर्म से जुड़े प्रश्न ही नहीं है, आपकी जिंदगी से जुड़े प्रश्न है। यदिआप भी अपने जीवन में कुछ प्रश्नों के उत्तर ढूंढ रहे हैं। तो निश्‍चित ही लेख को अंत तक पढ़ें..

‘यक्ष’ ने क्यों किए थे युधिष्ठिर से प्रश्न (Why did Yaksha asked questions to Yudhisthira?)

पांडवजन तेरह-वर्षीय वनवास के दौरान वनों में विचरण कर रहे थे। तब उन्होंने एक बार प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश की। पानी का प्रबंध करने का जिम्मा प्रथमतः सहदेव को सौंप गया। उन्हें पास में एक जलाशय दिखा जिससे पानी लेने वे वहां पहुंचे।

जलाशय के स्वामी अदृश्य यक्ष ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें रोकते हुए पहले कुछ प्रश्नों का उत्तर देने की शर्त रखी। सहदेव उस शर्त और यक्ष को अनदेखा कर जलाशाय से पानी लेने लगे। तब यक्ष ने सहदेव को निर्जीव कर दिया। सहदेव के न लौटने पर क्रमशः नकुल, अर्जुन और फिर भीम ने पानी लाने की जिम्मेदारी उठाई। वे उसी जलाशय पर पहुंचे और यक्ष की शर्तों की अवज्ञा करने के कारण निर्जीव हो गए।

अंत में चिंतातुर युधिष्ठिर स्वयं उस जलाशय पर पहुंचे। अपने भाइयों को मृत देखकर जब वह कारण जानने के लिए प्रश्न करते हैं। तुम कौन हो? जिसने मेरे हिमालय परियात्र, विन्ध्य तथा मलय पर्वत के समान तेजस्वी भाइयों को मारा है।

अहं बकः शैवलमत्स्यभक्षो नीता मया प्रेतवशं तवानुजाः ।
त्वं पञ्चमो भविना राजपुत्र न चेत् प्रश्नान् पृच्छतो व्याकरोषि ।

मैं यक्ष हूँ और मैंने ही प्रश्नों का उत्तर दिए बिना जल ले जाने वाले तुम्हारे भाइयों को मारा है। यदि तुम जल पीना या ले जाना चाहते हो तो मेरे प्रश्नों का उत्तर देकर ऐसा कर सकते हो।

यह सुनकर विनम्रतापूर्ण युधिष्ठिर प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तैयार हो जाते हैं। उन्होंने न केवल यक्ष के सभी प्रश्न ध्यानपूर्वक सुने अपितु उनका तर्कपूर्ण उत्तर भी दिया। प्रस्तुत है यक्ष- युधिष्ठर संवाद…


यक्ष-युधिष्ठिर संवाद (Dialogues of Yaksha and Yudhisthira in Hindi)

प्रश्न 1 : कौन हूं मैं?
उत्तर : तुम न यह शरीर हो, न इन्द्रियां, न मन, न बुद्धि। तुम शुद्ध चेतना हो, वह चेतना जो सर्वसाक्षी है।

टिप्पणी : व्यक्ति को खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि मैं कौन हूं। क्या शरीर हूं जो मृत्यु के समय नष्ट हो जाएगा? क्या आंख, नाक, कान आदि पांचों इंद्रियां हूं जो शरीर के साथ ही नष्ट हो जाएंगे? तब क्या में मन या बुद्धि हूं। अर्थात मैं जो सोचता हूं या सोच रहा हूं- क्या वह हूं? जब गहरी सुषुप्ति आती है तब यह भी बंद होने जैसा हो जाता है। तब मैं क्या हूं? व्यक्ति खुद आंख बंद करके इस पर बोध करे तो उसे समझ में आएगा कि मैं शुद्ध आत्मा, चेतना और सर्वसाक्षी हूं। ऐसा एक बार के आंख बंद करने से नहीं होगा।

प्रश्न 2 : जीवन का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: जीवन का उद्देश्य उसी चेतना को जानना है जो जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है। उसे जानना ही मोक्ष है।

टिप्पणी : बहुत से लोगों का उद्देश्य धन कमाना हो सकता है। धन से बाहर की समृद्धि प्राप्त हो सकती है, लेकिन ध्यान से भीतर की समृद्धि प्राप्त होती है। मरने के बाद बाहर की समृद्धि यहीं रखी रह जाएगी लेकिन भीतर की समृद्धि आपके साथ जाएगी। महर्षि पतंजलि ने मोक्ष तक पहुंचने के लिए सात सीढ़ियां बता रखी है:- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा और ध्यान। ध्यान के बाद समाधी या मोक्ष स्वत: ही प्राप्त होता है।

यक्ष प्रश्न 3 : जन्म का कारण क्या है?
उत्तर: अतृप्त वासनाएं, कामनाएं और कर्मफल ये ही जन्म का कारण हैं।

टिप्पणी : जन्म लेना और मरना एक आदत है। इस आदत से छुटकारा पाने का उपाय उपनिषद, योग और गीता में पाया जाता है। वासनाएं और कामनाएं अनंत होती है। जब तक यह रहेगी तब तक कर्मबंधन होता रहेगा और उसका फल भी मिलता रहेगा। इस चक्र को तोड़ने वाला ही जितेंद्रिय कहलाता है।

प्रश्न 4 : जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त कौन है?
उत्तर: जिसने स्वयं को, उस आत्मा को जान लिया वह जन्म और मरण के बन्धन से मुक्त है।

टिप्पणी : मैं कौन हूं और मेरा असली स्वरूप क्या है। इस सत्य को जानने वाला ही जन्म और मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है। यह जानने के लिए अष्टांग योग का पालन करना चाहिए।

प्रश्न 5 :- वासना और जन्म का सम्बन्ध क्या है?
उत्तर:- जैसी वासनाएं वैसा जन्म। यदि वासनाएं पशु जैसी तो पशु योनि में जन्म। यदि वासनाएं मनुष्य जैसी तो मनुष्य योनि में जन्म।

टिप्पणी : वासना का अर्थ व्यापक है। यह चित्त की एक दशा है। हम जैसा सोचते हैं वैसे बन जाते हैं। उसी तरह हम जिस तरह की चेतना के स्तर को निर्मित करते हैं अगले जन्म में उसी तरह की चेतना के स्तर को प्राप्त हो जाते है। उदाहरणार्थ एक कुत्ते के होश का स्तर हमारे होश के स्तर से नीचे है लेकिन यदि हम एक बोतल शराब पीले तो हमारे होश का स्तर उस कुत्ते के समान ही हो जाएगा। संभोग के लिए आतुर व्यक्ति के होश का स्तर भी वैसा ही होता है।

प्रश्न 6 : संसार में दुःख क्यों है?
उत्तर: संसार के दुःख का कारण लालच, स्वार्थ और भय हैं।

टिप्पणी : लालच का कोई अंत नहीं, स्वार्थी का कोई मित्र नहीं और भयभीत व्यक्ति का कोई जीवन नहीं। भय से ही सभी तरह के मानसिक विकारों का जन्म होता है।

कई बार लालच मौत का कारण भी बन जाता है। लालच को बुरी बला कहा गया है। लालची व्यक्ति का लालच बढ़ता ही जाता है और वह अपन लालच के कारण ही दुखी रहता है। स्वार्थी व्यक्ति तो सर्वत्र पाए जाते हैं। स्वार्थी आदमी स्वयं का उल्लू सीधा करने के लिए किसी की भी जान को भी दांव पर लगा सकते हैं। स्वार्थी के मन में ईर्ष्या प्रधान गुण होता है।

प्रश्न 7 : तो फिर ईश्वर ने दुःख की रचना क्यों की?
उत्तर: ईश्वर ने संसार की रचना की और मनुष्य ने अपने विचार और कर्मों से दुःख और सुख की रचना की।

टिप्पणी : मनुष्य जैसा सोचता है वैसा ही बन जाता है। नकारात्मकता स्वत: ही आती है लेकिन सकारात्मक विचारों को लाना पड़ता है। लाने की मेहनत कोई नहीं करता है इसीलिए वह बुरे विचार सोचकर बुरे कर्मों में फंसता रहता है। बुरे कर्मों का परिणाम भी बुरा ही होता है।

प्रश्न 8 : क्या ईश्वर है? कौन है वह? क्या वह स्त्री है या पुरुष?
उत्तर: कारण के बिना कार्य नहीं। यह संसार उस कारण के अस्तित्व का प्रमाण है। तुम हो इसलिए वह भी है उस महान कारण को ही आध्यात्म में ईश्वर कहा गया है। वह न स्त्री है न पुरुष।

टिप्पणी : यह जगत या संसार ही इस बात का सबूत है कि ईश्‍वर है। उसके होने के बगैर यह हो नहीं सकता। जैसे शरीर के होने का सबूत ही ये है कि आत्मा है या तुम हो। तुम्हें (पढ़ने और लिखने वाले को) ही तो आत्मा कहा गया है। ईश्‍वर न तो पुरुष है और न स्त्री ‍उसी तरह जैसे कि आत्मा न तो स्त्री है और न पुरुष। स्त्री और पुरुष तो शरीर की भावना है। यदि आत्मा स्त्री जैसे शरीर में होगी तो वैसी भावना करेगी। जिस तरह जल, हवा और आत्मा का कोई आकार प्रकार नहीं होता लेकिन उन्हें जिस भी पात्र में समाहित किया जाता है वह वैसे ही हो जाते हैं।

प्रश्न 9 : उसका (ईश्वर) स्वरूप क्या है?
उत्तर: वह सत्-चित्-आनन्द है, वह निराकार ही सभी रूपों में अपने आप को स्वयं को व्यक्त करता है।

प्रश्न 10 : वह अनाकार (निराकार) स्वयं करता क्या है?
उत्तर: वह ईश्वर संसार की रचना, पालन और संहार करता है।

प्रश्न 11 : यदि ईश्वर ने संसार की रचना की तो फिर ईश्वर की रचना किसने की?
उत्तर: वह अजन्मा अमृत और अकारण है।

प्रश्न 12 : भाग्य क्या है?
उत्तर: हर क्रिया, हर कार्य का एक परिणाम है। परिणाम अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। यह परिणाम ही भाग्य है। आज का प्रयत्न कल का भाग्य है।

टिप्पणी: बहुत से लोग भाग्यवादी होते हैं उनके लिए यह अच्छा जवाब है। भाग्य के भरोसे रहने वालों के मन में नकारात्मकता का जन्म भी होता है। बहुत से लोग जिंदगी भर इसी का दुख मनाते हैं कि हमारे भाग्य में नहीं था इसलिए यह हमें नहीं मिला। ऐसे लोग कभी सुखी नहीं रहते हैं। भाग्य के होने के बहुत सबूत इसलिए दिए जाते हैं क्योंकि वे लोग कर्म के सिद्धांत को अच्‍छे से समझते नहीं है।

प्रश्न 13 : सुख और शान्ति का रहस्य क्या है?
उत्तर: सत्य, सदाचार, प्रेम और क्षमा सुख का कारण हैं। असत्य, अनाचार, घृणा और क्रोध का त्याग शान्ति का मार्ग है।

टिप्पणी : असत्य बोलकर व्यक्ति दुख, चिंता या तनाव में रहने लगाता है। बुरा व्यवहार करके भी व्यक्ति सुखी नहीं रह सकता। परिवार या किसी व्यक्ति के प्रति प्रेम नहीं है तो भी सुखी नहीं रह सकता। यदि किसी ने उसके साथ कुछ किया है तो क्षमा न करके उससे बदला लेने की भावना रखने पर भी वह सुखी नहीं रह सकता।

प्रश्न 14 : चित्त पर नियंत्रण कैसे संभव है?
उत्तर: इच्छाएं, कामनाएं चित्त में उद्वेग उत्पन्न करती हैं। इच्छाओं पर विजय चित्त पर विजय है।

टिप्पणी : इच्छाएं अनंत होती है। जिस तरह भोजन करने के बाद पुन: भूख लगती है उसी तरह एक इच्छा के पूरी होने के बाद दूसरी जाग्रत हो जाती है। वे इच्छाएं दुखदायी होती है जो उद्वेग उत्पन्न करती है। न भोग, न दमन, वरण जागरण। इच्छाओं के प्रति सजग रहकर ही उन पर विजय प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 15 : सच्चा प्रेम क्या है?
उत्तर: स्वयं को सभी में देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सर्वव्याप्त देखना सच्चा प्रेम है। स्वयं को सभी के साथ एक देखना सच्चा प्रेम है।

टिप्पणी : किसी के प्रति संवेदना और करुणा का भाव रखना सच्चा प्रेम है। यदि आप अपने साथी की जगह खुद को रखकर सोचेंगे तो इसका अहसास होगा कि वह क्या सोच और समझ रहा है। वह भी आप ही की तरह एक निर्दोष आत्मा ही है। उसकी भी इच्‍छाएं, भावनाएं और जीवन है। वह भी अच्छा जीवन जीना चाहता है लेकिन लोग उसे जीने नहीं दे रहे हैं। कभी किसी के लिए त्याग करें। सभी को खुद के जैसा समझना या सभी को खुद ही समझने से ही प्रेम की भावना विकसित होगी। खुद से प्रेम करना सीखें।

प्रश्न 16 : तो फिर मनुष्य सभी से प्रेम क्यों नहीं करता?
उत्तर:. जो स्वयं को सभी में नहीं देख सकता वह सभी से प्रेम नहीं कर सकता।

प्रश्न 17 : आसक्ति क्या है?
उत्तर: प्रेम में मांग, अपेक्षा, अधिकार आसक्ति है।

प्रश्न 18 : नशा क्या है?
उत्तर: आसक्ति।

प्रश्न 19: मुक्ति क्या है?
उत्तर: अनासक्ति (आसक्ति के विपरित) ही मुक्ति है।

प्रश्न 20 : बुद्धिमान कौन है?
उत्तर: जिसके पास विवेक है।

प्रश्न 21 : चोर कौन है?
उत्तर: इन्द्रियों के आकर्षण, जो इन्द्रियों को हर लेते हैं चोर हैं।

प्रश्न 22 : नरक क्या है?
उत्तर:
 इन्द्रियों की दासता नरक है।

प्रश्न 23 : जागते हुए भी कौन सोया हुआ है?
उत्तर: जो आत्मा को नहीं जानता वह जागते हुए भी सोया है।

प्रश्न 24: कमल के पत्ते में पड़े जल की तरह अस्थायी क्या है?
उत्तर: यौवन, धन और जीवन।

प्रश्न 25 : दुर्भाग्य का कारण क्या है?
उत्तर: मद और अहंकार।

प्रश्न 26 : सारे दुःखों का नाश कौन कर सकता है?
उत्तर: सब छोड़ने को तैयार हो।

प्रश्न 27 : मृत्यु पर्यंत यातना कौन देता है?
उत्तर:
 गुप्त रूप से किया गया अपराध।

प्रश्न 28: दिन-रात किस बात का विचार करना चाहिए?
उत्तर: सांसारिक सुखों की क्षण-भंगुरता का।

प्रश्न 29: संसार को कौन जीतता है?
उत्तर: जिसमें सत्य और श्रद्धा है।

प्रश्न 30: भय से मुक्ति कैसे संभव है?
उत्तर:
  वैराग्य से।

प्रश्न 31: मुक्त कौन है?
उत्तर: जो अज्ञान से परे है।

प्रश्न 32: अज्ञान क्या है?
उत्तर: आत्मज्ञान का अभाव अज्ञान है।

प्रश्न 33: दुःखों से मुक्त कौन है?
उत्तर: जो कभी क्रोध नहीं करता।

प्रश्न 34: वह क्या है जो अस्तित्व में है और नहीं भी?
उत्तर: माया।

प्रश्न 35: माया क्या है?
उत्तर: नाम और रूपधारी नाशवान जगत।

प्रश्न 36: परम सत्य क्या है?
युधिष्ठिर उत्तर: ब्रह्म।…!

प्रश्न 37: सूर्य किसकी आज्ञा से उदय होता है?
उत्तर: परमात्मा यानी ब्रह्म की आज्ञा से।

टिप्पणी : हिन्दू धर्म में ईश्वर को ‘ब्रह्म’ (ब्रह्मा नहीं) कहा गया है। ब्रह्म ही सत्य है ऐसा वेद, उपनिषद और गीता में लिखा है। सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा माना गया है। अरबों सूर्य है। ब्रह्मांड में जितने भी तारे हैं वे सभी सूर्य ही हैं। सूर्य के बगैर जगत में जीवन नहीं हो सकता।

प्रश्न 38: किसी का ब्राह्मण होना किस बात पर निर्भर करता है? उसके जन्म पर या शील स्वभाव पर?
उत्तरः कुल या विद्या के कारण ब्राह्मणत्व प्राप्त नहीं हो जाता। ब्राह्मणत्व शील और स्वभाव पर ही निर्भर है। जिसमें शील न हो ब्राह्मण नहीं हो सकता। जिसमें बुरे व्यसन हों वह चाहे कितना ही पढ़ा लिखा क्यों न हो, ब्राह्मण नहीं होता।

प्रश्न 39: मनुष्य का साथ कौन देता है?
उत्तर : धैर्य ही मनुष्य का साथी होता है।

टिप्पणी : अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना ही धैर्य है। कुछ लोग बगैर विचार किए हुए बोलते, सोचते, कार्य करते, भोजन करते या व्यवहार करते हैं। उतावलापन यह दर्शाता है कि आप बुद्धि नहीं भावना और भावुकता के अधिन हैं। ऐसे लोग ‍जीवन में नुकसान ही उठाते हैं। किसी भी मामले में तुरंत प्रतिक्रिया देने के बदले में धैर्यपूर्वक उसे समझना जरूरी है।

प्रश्न 40: यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा कि स्थायित्व किसे कहते हैं? धैर्य क्या है? स्नान किसे कहते हैं? और दान का वास्तविक अर्थ क्या है? युधिष्ठिर उत्तर: ‘अपने धर्म में स्थिर रहना ही स्थायित्व है। अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना ही धैर्य है। मनोमालिन्य का त्याग करना ही स्नान है और प्राणीमात्र की रक्षा का भाव ही वास्तव में दान है।’

प्रश्न 41: कौन सा शास्त्र है, जिसका अध्ययन करके मनुष्य बुद्धिमान बनता है? युधिष्ठिर उत्तर कोई भी ऐसा शास्त्र नहीं है। महान लोगों की संगति से ही मनुष्य बुद्धिमान बनता है।

टिप्पणी : ज्ञान शास्त्रों में नहीं होता- योगी, ध्यानी और गुरु के सानिध्य में होता है। शास्त्र पढ़ने वाले बहुत है, लेकिन समझने वाले बहुत कम। शास्त्रों को अनुभव से या अनुभवी से ही समझा जा सकता है। इसीलिए हमेशा आचार्यों, शिक्षकों, संतों की संगत या सत्संग में रहना चाहिए।

प्रश्न 42: भूमि से भारी चीज क्या है? युधिष्ठिर उत्तर संतान को कोख़ में धरने वाली मां, भूमि से भी भारी होती है।

टिप्पणी : मां का कर्ज कभी ‍चुकाया नहीं जा सकता। हमें इस संसार में लाने वाली माता ही होती है। माता के प्रति किसी भी प्रकार से कटु वचन बोलने वाला कभी सुखी नहीं रहता। माता को हिन्दू धर्म में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 43: आकाश से भी ऊंचा कौन है?
उत्तर: पिता।

टिप्पणी : आकाश से भी ऊंचा पिता इसलिए होता है। क्योंकि वह आपके लिए एक छत्र की भूमिका निभाता है। उसकी देखरेख और उसके होने के अहसास से ही आप खिलते हैं। आपके आकाश में खिलने में पिता की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

पिता क्या होता है और पिता क्या सोचता है यह पिता बनकर ही ज्ञात होता है। जो व्यक्ति अपने पिता की भावना को नहीं समझता है उसका पुत्र भी इसका अनुसरण करता है। पिता के वचनों की सत्यता और उनके प्रेम को व्यक्ति पिता बनने के बाद ही जान पाता है। वह पिता महान है जो अपने पुत्र-पुत्री के समक्ष आदर्श प्रस्तुत करता हो और उनके भीतर अपना संपूर्ण अनुभव डालता हो। पिता की सीख जिंदगी में हमेशा काम आती है लेकिन पिता सीख देने वाला भी होना चाहिए। आपकी जिंदगी में यदि पिता का कोई महत्व नहीं है तो आप ऊंचाइयों के सपने देखना छोड़ दें।

प्रश्न 44: हवा से भी तेज चलने वाला कौन है?
उत्तरः मन।

टिप्पणी : मन की गति निरंतर जारी है। इसकी गति को समझ पाना मुश्किल है। मन की गति से कहीं भी पहुंचे वाले देवी और देवताओं के बारे में हमने पढ़ा है। सिर्फ किसी स्थान के बारे में सोचकर ही वहां पहुंच जाते थे। हमारा मन भी यहां बैठे बैठे संपूर्ण धरती का एक क्षण में चक्कर लगा सकता है। मानव मन में 24 घंटे में लगभग साठ हजार विचार आते हैं।

प्रश्न 45: घास से भी तुच्छ चीज क्या है?
उत्तरः चिंता।

प्रश्न 46: विदेश जाने वाले का साथी कौन होता है?
उत्तरः विद्या।

प्रश्न 47 : घर में रहने वाले का साथी कौन होता है?
उत्तरः पत्नी।

प्रश्न 48 : मरणासन्न वृद्ध का मित्र कौन होता है?
उत्तरः दान, क्योंकि वही मृत्यु के बाद अकेले चलने वाले जीव के साथ-साथ चलता है।

प्रश्न 49 : बर्तनों में सबसे बड़ा कौन-सा है?
उत्तरः भूमि ही सबसे बड़ा बर्तन है जिसमें सब कुछ समा सकता है।

प्रश्न 50: सुख क्या है?
उत्तरः सुख वह चीज है जो शील और सच्चरित्रता पर आधारित है।

प्रश्न 50 : किसके छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है ?
उत्तरः अहंभाव के छूट जाने पर मनुष्य सर्वप्रिय बनता है।

प्रश्न 51 : किस चीज के खो जाने पर दुःख नही होता ?
उत्तरः क्रोध।

प्रश्न 52: किस चीज को गंवाकर मनुष्य धनी बनता है?
उत्तरः लालच को खोकर।

प्रश्न 53: संसार में सबसे बड़े आश्चर्य की बात क्या है?
उत्तरः हर रोज आंखों के सामने कितने ही प्राणियों की मृत्यु हो जाती है यह देखते हुए भी इंसान अमरता के सपने देखता है। यही महान आश्चर्य है।

प्रश्नों के सही उत्तर देने के बाद कर दिया पांडवों को जिंदा

प्रश्न: जब युद्धिष्ठिर ने सारे प्रश्नों के उत्तर सही दिए तो फिर यक्ष ने क्या कहां?

उत्तर: युधिष्ठिर ने सारे प्रश्नों के उत्तर सही दिए अंत में यक्ष बोला, ‘युधिष्ठिर में तुम्हारे एक भाई को जीवित करूंगा। तब युधिष्ठिर ने अपने छोटे भाई नकुल को जिंदा करने के लिए कहा। लेकिन यक्ष हैरान था उसने कहा तुमने भीम और अर्जुन जैसे वीरों को जिंदा करने के बारे में क्यों नहीं सोचा।’

युधिष्ठिर बोले, मनुष्य की रक्षा धर्म से होती है। मेरे पिता की दो पत्नियां थीं। कुंती का एक पुत्र मैं तो बचा हूं। मैं चाहता हूं कि माता माद्री का भी एक पुत्र जीवित रहे। यक्ष उत्तर सुनकर काफी खुश हुए और सभी को पांडवों को जिंदा कर महाभारत की जीत का वरदान देकर वह अपने धाम लौट गए।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

यक्ष कौन होते है?

हिन्दू मान्यता में यक्षों को शक्ति में राक्षसों के निकट माना जाता है, यद्यपि वे मनुष्यों के विरोधी नहीं होते, जैसे राक्षस होते है। यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है ‘जादू की शक्ति’। हिन्दू धर्मग्रन्थो में अच्छे यक्ष का उदाहरण भी मिलता है जिनमे से एक कुबेर है। शिव ने कुबेर की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें धन के देवता बना दिया था।

यक्ष युधिष्ठिर संवाद का वर्णन कहाँ मिलता है

यक्ष युधिष्ठिर संवाद का महाभारत के वनपर्व के आरणेय पर्व के अंतर्गत अध्याय 313 में वर्णन हुआ है। यहाँ वैशम्पायन जी ने जनमेजय से यक्ष और युधिष्ठिर संवाद के वर्णन की कथा कही है।

यक्ष ने कुल कितने प्रश्न पूछे थे?

यक्ष ने युधिष्ठिर से 100 सवाल पूछे थे और युधिष्ठिर ने सभी सवालों के सही जवाब दिया था। जिससे प्रसन्न होकर यक्ष ने युधिष्ठिर से सभी भाइयों को जिंदा कर दिया और पीने के लिए पानी भी दिया।

यक्ष युधिष्ठिर संवाद कहा हुआ था?

सहारनपुर के देवबंद के जखवाला गांव में एक तालाब है जनश्रुति के अनुसार यह वही तालाब माना है जिसके निकट यक्ष ने युधिष्ठिर से प्रश्न पूछे थे। 
अन्य मत अनुसार, पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के जिला चकवाल में पड़ता है. यहाँ पर प्राचीन और प्रसिद्ध कटासराज मंदिर स्थित है. इस मंदिर के परिसर में एक कुंड बना हुआ है. माना जाता है कि ये वहीं कुंड है जहां युधिष्ठिर यक्ष संवाद हुआ था।

यक्ष के रूप में कौन परीक्षा लेने आये थे?

युधिष्ठिर की परीक्षा लेने के लिए “धर्मराज” यक्ष के रूप में आएं थे। युधिष्ठिर ने हर प्रशं का सही जवाब दिया, जिससे वह अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने सभी पांडवों को जिंदा कर दिया और विजय आशीर्वाद देकर चले गए।

आभार: Upnishad Ganga में यक्ष-युधिष्ठिर संवाद नाम से एपिसोड प्रसारित किया गया था। इसमें यक्ष-युधिष्ठिर संवाद में पूछे गए प्रश्नों के अतिरिक्त भी कुछ प्रश्न जोड़ दिए गए थे। जिसे उपयोगी जानकार हमने भी यहां सम्मलित कर दिया है। आशा करते है आपको यह लेख पसंद आया होगा..🙏

Editor: Lilita Jangra

Related Posts

  • रुद्राष्टाध्यायी : Rudra Ashtadhyayi Book PDF [Hindi]

  • Govardhan Puja: गोवर्धन पूजा मुहूर्त और विधि

  • Ekadashi Tithi: एकादशी में चावल क्यों नही खाना चाहिए?

  • Yakshni Rahasya: जानें, यक्षिणी का रहस्य

  • जानिए, भगवान को भोग लगाने का सही तरीका

Post Tags: #Hinduism#Pauranik katha

All Rights Reserved © By Imvashi.com

  • Home
  • Privacy Policy
  • Contact
Twitter Instagram Telegram YouTube
  • Home
  • Vrat Tyohar
  • Hinduism
    • Devi Devta
    • 10 Maha Vidhya
    • Hindu Manyata
    • Pauranik Katha
  • Temple
    • 12 Jyotirlinga
    • Shakti Peetha
  • Astrology
    • Astrologer
    • jyotish
    • Hast Rekha
    • Shakun Apshakun
    • Dream meaning (A To Z)
    • Free Astrology Class
  • Books PDF
    • Astrology
    • Karmkand
    • Tantra Mantra
  • Biography
    • Freedom Fighter
    • 10 Sikh Guru
  • Astrology Services
  • Travel
  • Free Course
  • Donate
Search