Yakshni Rahasya: जानें, यक्षिणी का रहस्य
Yakshni Rahasya: यक्षिणी (या यक्षी), हिंदू, बौद्ध और जैन धार्मिक गंथो में वर्णित एक वर्ग है। जिसके बारे में कम ही लोग जानते है इसलिए आजके इस लेख में यक्षिणि के बारे में बता रहे है..
देवताओं के कोषागार के मुखिया धनाधिपति महाराज कुबेर हैं। उन्हीं की सेवा करने वालों का नाम यक्ष है। रावण संहिता1 में भी धनपति कुबेर की महत्वपूर्ण भूमिका बतलाई गई है।
यक्षों को राक्षसों के निकट माना गया है। प्रारंभ में दो तरह के राक्षस होते थे। एक रक्षा करने वाले और दूसरे बाधा उत्पन्न करने वाले होते थे। रक्षा करने वाले को यक्ष कहा गया और बाधा उत्पन्न करने वाले को राक्षस कहा गया। महाराज कुबेर उत्तर दिशा के दिक्पाल तथा स्वर्ग के कोषाध्यक्ष अथवा कोषालय अधिकारी हैं।
यक्षिणि कौन है? (Who are Yakshinis?)
The symbolism and significance of Yakshinis: यक्षिणी देवों (देवताओं), असुरों (राक्षसों), और गन्धर्वों या अप्सराओं से भिन्न हैं। यक्ष वर्ग की शक्तियाँ यक्षिणी कहे गये हैं। ये भगवती जगदम्बा की सेविका कहलाती हैं। यक्षिणीयों की दस महाविधा से भी संबंध हैं।
महाविधा | यक्षिणी |
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काली | महामधुमति |
तारा | त्रैलोक्य मोहिनी |
षोडसी | भ्रमराम्या |
भुवनेश्वरी | चन्द्ररेवा |
भैरवी | लम्पटा |
घुमावती | भीषणी |
बगला | विडालिका |
मातंगी | मनोहारिणी |
कमला | धनदा |
यक्षिणी की कुल संख्या (36 Yakshini Name in Hindi)
तंत्र के प्रमुख ग्रंथ मन्त्र महार्णव 2 में 36 यक्षिणियों के नाम प्रमुखता से उल्लेखित हैं। जिसे प्रस्तुत किया जा रहा है।
क्रम | यक्षिणी |
---|---|
1 | विचित्रा |
2 | विभ्रमा |
3 | हंसी |
4 | भिक्षिणी |
5 | जन रज्जिका |
6 | विशाला |
7 | मदना |
8 | घण्टा |
9 | कालकर्णी |
10 | महामाया |
11 | महाहेंद्री |
12 | शंखनी |
13 | चांद्री |
14 | शामशानी |
15 | बदरयक्षणी |
16 | मेखला |
17 | विकला |
18 | लक्ष्मी |
19 | मानिनि |
20 | शत पविका |
21 | सुलोचना |
22 | शुशोभना |
23 | कपालिनी |
24 | विलक्षणी |
25 | नटी |
26 | कामेश्वरी |
27 | स्वर्ण रेखा |
28 | सुर सुंदरी |
29 | मनोहरी |
30 | प्रमदा – प्रमोदा |
31 | अनुरागिनी |
32 | नख केशिका |
33 | नेमिनी |
34 | मधमावती |
35 | धूमावती |
36 | स्वर्णवती |
यह टेबल 36 यक्षिणियों के नाम को क्रमबद्ध करके दिखाती है। इस टेबल से यह भी पता चलता है कि कुछ यक्षिणियों के दो नाम हैं। इनमें से कुछ यक्षिणियों के दो नाम उनके महाविधा के आधार पर दिए गए हैं, जबकि अन्य यक्षिणियों के दो नाम उनके अलग-अलग रूपों के आधार पर दिए गए हैं।
जैन और बौद्ध धर्म में यक्षिणि (Yakshinis in Various Religions)
यक्षिणियों को प्राचीन और समकालीन दोनों तरह के साहित्य और कला में चित्रित किया गया है। उन्हें अक्सर आकर्षक और शक्तिशाली प्राणियों के रूप में चित्रित किया जाता है जो प्रकृति, धन और आध्यात्मिकता से जुड़े होते हैं।
जैन धर्म में, पंचांगुली, चक्रेश्वरी, अंबिका और पद्मावती सहित पच्चीस यक्षियाँ हैं , जिन्हें अक्सर जैन मंदिरों में दर्शाया जाता है। बौद्ध धर्म स्थलों से बड़ी संख्या में यक्षी आकृतियाँ मिली हैं, जो आमतौर पर स्तूपों के रेलिंग स्तंभों पर हैं ।
यक्षिणी का तंत्र साधना में महत्व (Importance of Yakshini in Tantra)
शक्ति हमेशा पूज्य है। शक्ति का ही एक रूप है यक्षिणी। ब्रह्माण्ड में अनेकों लोक हैं, सबसे निकट का लोक यक्ष और यक्षिणियों का है। पृथ्वी के निकट होने के कारण मन्त्र तरंगे इस लोक में शीघ्र पहुँचती हैं। साधक यदि विधि-विधान से यक्षिणी साधना करे तो मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। यक्षिणी साधना सात्विक और सुरक्षित है। सिद्ध होने पर यक्षिणी साधक को मार्गदर्शन प्रदान करती है। (और पढ़ें: यक्ष और युधिष्ठिर संवाद
आप सभी ने 64 योगिनियों3 के विषय में अवश्य पढ़ा होगा। ये सभी तन्त्र एवं योग से घनिष्ट सम्बन्ध रखती हैं। सभी 64 योगिनियां समस्त अलौकिक शक्तियों से सम्पन्न हैं। इनकी साधना से वशीकरण, मारण, स्तम्भन आदि कर्म सरलता से सम्पन्न हो जाते हैं।
उपसंहार: यह देवी विशेष रूप से धन प्राप्ति, व्यापार में लाभ, शत्रुओं पर विजय, और सभी कार्यों में सफलता के लिए उपयोगी है।