त्रिपुर सुंदरी, षोडशी, ललिता (महाविद्या-3)
त्रिपुरसुंदरी (Tripur Sundari) दस महाविद्याओं (दस देवियों) में से एक हैं। इन्हें ‘महात्रिपुरसुन्दरी’, ललिता, लीलावती, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी, तथा राजराजेश्वरी भी कहते हैं।
काली, तारा महाविद्या, षोडशी भुवनेश्वरी ।
भैरवी, छिन्नमस्तिका च विद्या धूमावती तथा ॥
बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दश-महाविद्याः सिद्ध-विद्याः प्रकीर्तिता: ॥
त्रिपुर सुंदरी, षोडशी, ललिता (महाविद्या-3)
नाम | त्रिपुरसुंदरी |
अन्य नाम | महात्रिपुरसुन्दरी’, षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी, तथा राजराजेश्वरी। |
संबंध | हिन्दू देवी, महाविद्या |
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अस्त्र | पाश, अंकुश, धनुष और वाण |
जीवनसाथी | त्रिपुरेश (शिव) |
जयंती | मार्गशीर्ष (अगहन) मास की पूर्णिमा तिथि |
आसन | कमल |
बीज मंत्र | ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः |
माता का स्वरूप (Iconography of Goddess Tripur Sundari)
माता के तीन रूप हैं-
- आठ वर्षीय बालिका बाला, त्रिपुरसुंदरी
- षोडश वर्षीय, षोडशी
- युवा स्वरूप, ललिता
माहेश्वरी शक्ति की सबसे मनोहर श्री विग्रहवाली सिद्ध देवी है। महाविद्या में इनका तीसरा है। सोलह अक्षरों के मंत्र वाली इन देवीकी अंगकांटी उदीयमान सूर्य मंडल के आभा की भांति है। इनकी चार भुजाएं एवं तीन नेत्र है।
यह शांत मुद्रा में लेटे हुए सदाशिव पर स्थित कमल के आसान पर आसीन हैं। इनके चारों हाथों में क्रमशः पाश, अदंकुशधनुष और बाया सुशोभित है। वर देने के लिए सदा सर्वदा तत्पर भगवती का श्रीविग्रह सौम्य और हृदय दया से आपूरित है।
जो उनका आश्रय ग्रहण कर लेते हैं. उनमें और ईश्वर में कोई भेद नहीं रह जाता है। वस्तुतः इनकी महिमा अवर्णनीय है। संसार के समस्त मंत्र तंत्र इनकी आराधना करते है वेद भी इनका वर्णन करने में असमर्थ है। भक्तों को ये प्रसन्न होकर सब कुछ दे देती है अभीष्ट तो सीमित अर्थवाच्य हैं।
प्रशांत हिरण्यगर्भ ही शिव है और उन्हीं की शक्ति षोडशी है। तंत्र शास्त्र में षोडशी देवी को पाँच मुखो वाली बताया गया है। चार दिशाओं में चार और एक मुख उपर की ओर होने कर कारण इन्हे पंचवक्त्रा कहा गया है। देवी के पांचों मुख तत्पुरुष, साधोजत, वाम देव, अघोर और ईशान शिव के पांचों रूप का प्रतीक है।
पांचों दिशाओं के रंग क्रमशः हरित, रक्त, धूम्र, नील और पीत होने से यह मुख भी उन्हीं रंगो के है। देवी के दस हाथो में क्रमश अभय, टैंक, शूल,वज्र, पाश, खड़ग, अंकुश, घंटा, नाग और अग्नि है।
इनमे षोडश कलाएं पूर्ण रूप से विकसित है। अतेव यह शोदशो कहलाती है।
षोडश को श्री विद्या भी माना गया है। इनके ललिता, राज राजेश्वरी, महात्रिपुर सुंदरी, बालपंचदशी आदि अनेक नाम है। इन्हें अधाशक्ती माना गया है। अन्य विद्याएं भोग या मोक्ष में से एक ही देती है। ये अपने उपासकों को भुक्ती और मुक्ति दोनों दोनो प्रदान करती हैं। इनके स्थूल, सूक्ष्म,पर तथा तुरिय चार रूप है।
एक बार पार्वती जी ने शिव से पूछा आपके द्वारा प्रकाशित तंत्र शास्त्र की साधना से जीवन के आधि व्याधि, शोक संताप, दिन हीनता तो दूर हो जाएंगे। किन्तु गर्भवास और मरण के असहाय दुख की निवृति तो इससे नहीं होगी। कृपा करके इस दुख से निवृति और मोक्ष पद की प्राप्ति का कोई उपाय बताइए।
इस प्रकार मा पार्वती के अनुरोध पर भगवान शिव में षोडशी श्रोविद्या साधना प्रणाली को प्रकट किया। भगवान शंकराचार्य ने भी श्री विद्या रूप में शोधाशी देवी की उपासना की थी। भगवान शंकराचार्य ने सौंडेलाहरी में षोडशी श्रीविद्या की स्तुति करते हुए कहा है अमृत के समुन्द्र में एक मणिका द्वीप है, जिसमे कल्प वृक्षों की बारी है, नवरत्नों के नौ परकोटे है।
उस वन में चिंतामणि रत्नों से निर्मित महल में ब्रह्मा मय सिंहासन है, जिसमे पंचकृत्य के देवता ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र और ईश्वर आसान के पाये हैं और सदा शिव फलक है। सदा शिव के नाभी से निर्मित कमल पर विराजमान भगवती षोडशी त्रिपुरसुंदरी का जो ध्यान करते है, वे धन्य हैं। भगवती के प्रभाव से उन्हें भोग और मोक्ष दोनों सहज प्राप्त हो जाते हैं।
भैरवयामल तथा शक्तिलहरी में इनकी उपासना का विस्तृत परिचय मिलता है। दुर्वासा ऋषि इनके परमाराधक थे, इनकी उपासना श्री चक्र में होती है।
मंत्र:-
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः
ध्यान
विद्याक्ष माला सुकपाल मुद्रा राजत् करां,
कुंद समान कान्तिम्।
मुक्ता फलालंकृति शोभितांगी,
बालां स्मरेद् वाङ्गमय सिद्धि हेतो।।
भजेत् कल्प वृक्षाध उद्दीप्त रत्नसने,
सनिष्यण्णां मदाधू्णिताक्षीम्।
करैबीज पूरं कपालेषु चापं,
स पाशांकुशां रक्त वर्णं दधानाम्॥
व्याख्यान मुद्रामृत कुम्भ विद्यामक्ष,
चिद् रूपिणी शारद चन्द्र कान्तिं,
बालां स्मरेन्नौत्तिक भूषितांगीम् ॥
त्रिपुर सुंदरी मंदिर (Temple of Tripura Sundari)
भारतीय राज्य त्रिपुरा में स्थित त्रिपुर सुंदरी का शक्तिपीठ है माना जाता है कि यहां माता के धारण किए हुए वस्त्र गिरे थे। त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है।
दक्षिणी-त्रिपुरा उदयपुर शहर से तीन किलोमीटर दूर, राधा किशोर ग्राम में राज-राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का भव्य मंदिर स्थित है, जो उदयपुर शहर के दक्षिण-पश्चिम में पड़ता है। यहां सती के दक्षिण ‘पाद’ का निपात हुआ था। यहां की शक्ति त्रिपुर सुंदरी तथा शिव त्रिपुरेश हैं। इस पीठ स्थान को ‘कूर्भपीठ’ भी कहते हैं।