कूर्म पुराण
कूर्म पुराण (Kurma Purana) हिंदुओं के पवित्र 18 पुराणों में से एक है, यह पुराण सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार (Kurma Avatar) धारण करके राजा इन्द्रद्युम्न को सुनाया था। भगवान कूर्म द्वारा कथित होने के कारण ही इस पुराण का नाम ‘कूर्म पुराण’ पड़ा।
कूर्म पुराण क्या है? (What is kurma Purana in Hindi)
कूर्म पुराण (Kurma Purana) हिंदुओं के पवित्र 18 पुराणों में से एक पुराण है, पुराणो की सूची में इसका स्थान पंद्रहवा है। कूर्म पुराण यद्यपि एक वैष्णव प्रधान पुराण है, तथापि इसमें शैव तथा शाक्त मत की भी विस्तृत चर्चा की गई है। यह पुराण सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार (kurma Avatar) धारण करके राजा इन्द्रद्युम्न को सुनाया था।
इस पुराण में पुराणों में पांचों प्रमुख लक्षणों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर एवं वंशानुचरित का क्रमबद्ध तथा विस्तृत विवेचन किया गया है। सत्रह हज़ार श्लोकों के इस पुराण में विष्णु और शिव की अभिन्नता कही गयी है। पार्वती के आठ सहस्र नाम भी कहे गये हैं। काशी व प्रयाग क्षेत्र का महात्म्य, ईश्वर गीता, व्यास गीता आदि भी इसमें समाविष्ट हैं।
कूर्म पुराण इतिहास और कथा (History & Story of Kurma Purana in Hindi)
पवित्र ‘कूर्म पुराण’ ब्रह्म वर्ग के अंतर्गत आता है। इस पुराण में चारों वेदों का श्रेष्ठ सार निहित है। समुद्र-मंथन के समय मंदराचलगिरि को समुद्र में स्थिर रखने के लिए देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार (Kurma Avtar) धारण किया था।
तत्पश्चात् उन्होंने अपने कूर्मावतार में राजा इन्द्रद्युम्न को ज्ञान, भक्ति और मोक्ष का गूढ रहस्य प्रदान किया था। उनके ज्ञानयुक्त उपदेश को इस पुराण में संकलित किया है। इसलिए इस पुराण को ‘कूर्म पुराण’ कहा गया है ।
इस पुराण का ज्ञान महार्षि व्यास ने अपने शिष्य रोमहर्षण (लोमहर्षण) सूतजी को प्रदान किया था। तत्पश्चात नैमिषारण्य के द्वादशवर्षीय महासत्र के अवसर पर रोमहर्षण सूत के द्वारा इस पवित्र पुराण को सुनने का सौभाग्य शौनकादि सहित अट्ठासी हजार ऋषियों को प्राप्त हुआ। इस पुराण का आरंभ रोमहर्षण सूत तथा शौनकादि ऋषियों के संवाद के रूप में होती है।
कूर्म पुराण में क्या है? (What is kurma Purana About in Hindi)
कूर्म पुराण के कुल में चार संहिताएं हैं-
- ब्राह्मी संहिता
- भागवती संहिता
- शौरी संहिता और
- वैष्णवी संहिता
वर्तमान में इन चारों संहिताओं में केवल ब्राह्मी संहिता ही प्राप्य उपलब्ध है। शेष संहिताएं उपलब्ध नहीं हैं।
कूर्म पुराण में 17,000 श्लोक है, इस पुराण में पुराणों के पांचों प्रमुख लक्षणों (सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर एवं वंशानुचरित) का क्रमबद्ध तथा विस्तृत विवेचन किया गया है एवं सभी विषयों का सानुपातिक उल्लेख किया गया है। बीच-बीच में अध्यात्म-विवेचन, कलिकर्म और सदाचार आदि पर भी प्रकाश डाला गया है।
कूर्मावतार के ही प्रसंग में लक्ष्मी की उत्पत्ति और महात्म्य, लक्ष्मी तथा इन्द्रद्युम्न का वृत्तान्त, इन्द्रद्युम्न के द्वारा भगवान विष्णु की स्तुति, वर्ण, आश्रम और उनके कर्तव्य वर्णन तथा परब्रह्म के रूप में शिवतत्त्व का प्रतिपादन किया गया है।
तदनन्तर सृष्टिवर्णन, कल्प, मन्वन्तर तथा युगों की काल-गणना, वराहावतारकी कथा, शिवपार्वती-चरित्र, योगशास्त्र, वामनवतार की कथा, सूर्य-चन्द्रवंशवर्णन, अनुसूया की संतति-वर्णन तथा यदुवंश के वर्णन में भगवान श्रीकृष्ण के मंगल मय चरित्र का सुन्दर निरूपण किया गया है।
इसके अतिरिक्त इसमें श्रीकृष्ण द्वारा शिव की तपस्या तथा उनकी कृपा से साम्बनामक पुत्र की प्राप्ति, लिंगमाहात्म्य, चारों युगों का स्वभाव तथा युगधर्म-वर्णन, मोक्षके साधन, ग्रह-नक्षत्रों का वर्णन, तीर्थ-महात्म्य, विष्णु-महात्म्य, वैवस्तव मन्वतरके २८ द्वापरयुगों के २८ व्यासों का उल्लेख, शिव के अवतारों का वर्णन, भावी मन्वन्तरों के नाम, ईश्वरगीता तथा कूर्मपुराण के फलश्रुति की सरस प्रस्तुति है।
हिन्दुधर्म के तीन मुख्य सम्प्रदायों—वैष्णव, शैव, एवं शाक्त के अद्भुत समन्वय के साथ इस पुराण में त्रिदेवोंकी एकता, शक्ति-शक्तिमानमें अभेद तथा विष्णु एवं शिवमें परमैक्यका सुन्दर प्रतिपादन किया गया है।
कूर्म पुराण का महत्व (Importance of kurma Purana in Hindi)
कूर्म पुराण (Kurma Purana) में चारों वेदों का श्रेष्ठ सार निहित है। यद्यपि कूर्म पुराण एक वैष्णव प्रधान पुराण है, तथापि इसमें शैव तथा शाक्त मत की भी विस्तृत चर्चा की गई है। इसलिए यह सभी संप्रदाय के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। इस पुराण में पुराणों के पांचों प्रमुख लक्षणों (सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर एवं वंशानुचरित) का क्रमबद्ध तथा विस्तृत विवेचन किया गया है।
हम आज के दिन की विडंबनापूर्ण स्थिति के बीच से गुजर रहे हैं। हमारे बहुत मारे मूल्य खंडित हो गए हैं। आधुनिक ज्ञान के नाम पर विदेशी चिंतन का प्रभाव हमारे ऊपर बहुत अधिक ही हो रहा है इसलिए एक संघर्ष हमें अपनी मानसिकता से करना होगा कि अपनी परंपरा जो ग्रहणीय है, मूल्य परक है उस पर फिर से लौटना होगा।