मातंगी देवी (महाविद्या-9)
मातंगी देवी (संस्कृत: माताङगी) एक हिंदू देवी हैं। यह 10 महाविद्याओं और दस तांत्रिक देवीयों में से एक है। इन्हें संगीत की देवी ‘सरस्वती’ का तांत्रिक रूप माना जाता है।
Goddess Matangi Complete Info In Hindi
नाम | मातंगी (Matangi) |
अन्य नाम | सुमुखी, लघुश्यामा या श्यामला, राज-मातंगी, कर्ण-मातंगी, चंड-मातंगी, वश्य-मातंगी, मातंगेश्वरी |
संबंध | हिन्दू देवी, महाविद्या |
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अस्त्र | खंग, खेटक पाश और अंकुश |
सवारी | कमल, रत्नयुक्त आसन |
जयंती | वैशाख शुक्ल तृतीया |
बीज मंत्र | ऊँ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा। |
मातंगी देवी महाविद्या – 9
मतंग शिव का नाम है। इनकी शक्ति मातंगी है। यह श्याम वर्ण और चन्द्रमा को मस्तक पर धारण करती हैं। यह पूर्णतया वाग्देवी की ही पूर्ति हैं। इनकी चार भुजाएं चार वेद हैं।
ऐसा व्यक्ति जो मातंगी महाविद्या की सिद्धि कर लेता है वह अपने क्रीड़ा कौशल से या कला संगीत से दुनिया को अपने वश में कर लेता है। वशीकरण में भी यह महाविद्या कारगर होती है। हिन्दू धर्म के अनुसार मातंगी ही एक ऐसी देवी है जिन्हें जूठन का भोग लगा लगाया जाता है। मातंगी देवी समता का सूचक है ।
मातंगी देवी प्रकृति की देवी हैं। कला संगीत की देवी हैं। तंत्र की देवी हैं। वचन की देवी हैं। यह एकमात्र ऐसी देवी हैं जिनके लिए व्रत नहीं रखा जाता है। यह केवल मन और वचन से ही तृप्त हो जाती हैं।
मातंगी देवी को किसी भी प्रकार के इंद्रजाल और जादू को काटने की शक्ति प्रदत्त है। देवी मातंगी का स्वरूप मंगलकारी है। पशु, पक्षी, जंगल, आदि प्राकृतिक तत्वों में उनका वास होता है।
मातंगी दस महाविद्याओं में नौवें स्थान पर हैं। मातंगी देवी श्री लक्ष्मी का ही स्वरूप हैं। नवरात्रि में जहां नवां स्थान मां सिद्धिदात्री को प्राप्त है, वहां गुप्त नवरात्रि की नौवां स्थान देवी मातंगी को प्राप्त है।
मातंगी देवी उत्त्पति कथा
एक बार भगवान विष्णु और उनकी पत्नी लक्ष्मी, भगवान शिव तथा पार्वती से मिलने उनके निवास स्थान कैलाश पर्वत पर गए। भगवान विष्णु अपने साथ कुछ खाने की सामग्री भी ले गए और शिव जी को भेट किया।
भगवान शिव तथा पार्वती ने भेंट स्वीकार कर किया लेकिन कुछ अंश धरती पर गिर गया। उन गिरे हुए भोजन के भागों से एक श्याम वर्ण वाली दासी ने जन्म लिया, जो मातंगी नाम से विख्यात हुई।
यह भी कहा जाता है कि मुनि मातंग की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नाम मातंगी पड़ा। उनकी सर्वप्रथम आराधना भगवान विष्णु ने की। वह विष्णु की आद्य शक्ति भी मानी गई हैं।
मातंगी देवी का स्वरूप (Appearance of Maa Matangi)
देवी मातंगी गहरे नीले रंग या श्याम वर्ण की हैं। शीश पर अर्ध चन्द्र धारण करती हैं। देवी मातंगी के 4 हाथ और तीन नेत्र है। मां कमल के आसन में विराजित होती है। लाल वस्त्र-आभूषण और गले मे गुंजा की माला धारण करती है।
माता के अस्त्र खंग, खेटक पाश और अंकुश है। तोता हर समय साथ रहता हैं जो वाणी और वचन का प्रतीक हैं।
मातंगी को लगता है जूठन का भोग
इनके बारें में विशेष बात यह है कि मातंगी को जूठन भोग लगाया जाता है। ऐसा कहते हैं, जब माता पार्वती को चंडाल स्त्रीऔ द्वारा अपने झूठन का भोग लगाया तब सभी देवगण और शिव जी के भूतादिकगण इसका विरोध करने लग गए।
लेकिन माता पार्वती ने चंडालिया की श्रद्धा को देख कर मातंगी का रूप लेकर उनके द्वारा चढ़ाए गए जूठन को ग्रहण किया। तभी से माता का जूठा भोग चढ़ाने की प्रथा प्रारम्भ हो गयी।
मातंगी मंत्र
ऊँ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।
मातंगी ध्यान
श्यामांगीं शशिशेखरां त्रिनयनां रत्नसिंहासनस्थिताम् वेदैः
बाहुदण्डैरसिखेटकपाशांकुशधराम्॥
अर्थ:- मातंगी देवी श्याम वर्ण, अर्द्ध चन्द्रधारिणी और त्रिनयन हैं, यह चार हाथ में खंग, खेटक पाश और अंकुश यह चारों अस्त्र धारण करके रत्न निर्मित सिंहासन पर विराजमान हैं।
मातंगी जयंती और पूजन विधि
मातंगी जयंती वैसाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि (तीसरा दिन) को मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह दिन मई या अप्रैल के महीने में पड़ता है। इस दिन माता के उपासक मातंगी पूजन और कन्या को भोजन करवाते है। मंदिरों में कीर्तन, जागरण आयोजित किया जाता है।
मातंगी जयंती पूजन विधि
सर्वप्रथम मातंगी की प्रतिमा केे आगेे धूप, द्वीप प्रज्वलित करें। देवी को माला, पुष्प, नारियल अर्पित करे। प्रसाद पकवान आदि बनाकर माता को भोग लगाएं। फिर मातंगी माता का ध्यान कर उनके मंत्र की सामर्थ्य अनुसार 1, 11, 21 माला जाप करें। अंत मे देवी की आरती करें। पूजा समाप्ति के पश्चात परिवार और आमंत्रित सदस्यों को प्रसाद वितरित करे। यदि आपने कन्या को भोजन में बुलाया है तो भोजन करवाये।
मातंगिनी देवी कवच
शिरोमातंगिनी पातु भुवनेशी तु चक्षुषी।
तोतला कर्णयुगलं त्रिपुरा वदनं मम।।
पातु कण्ठे महामाया हृदि माहेश्वरी तथा।
त्रिपुरा पार्श्वयोः पातु गुह्ये कामेश्वरी मम॥
ऊरुद्वये तथा चण्डी जंघायाञ्च रतिप्रिया।
महामाया पदे पायात्सर्वांगेषु कुलेश्वरी॥
य इदं धारयेन्नित्यं जायते सर्वदानवित्।
परमैश्वर्य्यमतुलं प्राप्नोति नात्र संशयः॥
अर्थ:- मातंगी मेरे मस्तक की, भुवनेशी मेरे चक्षु की, तोतला मेरे कर्ण मम और त्रिपुरा मेरे मुख की रक्षा करें। महामाया मेरे कण्ठ की, माहेश्वरी मेरे हृदय की, त्रिपुरा मेरे पार्श्व की और कामेश्वरी मेरे गुह्य की रक्षा करें।
चण्डी दोनों ऊरू की, रतिप्रिया मेरी जंघा की, महामाया मेरे पाँवों की और कुलेश्वरी सर्वांग की रक्षा करें। जो पुरुष इस कवच को धारण करते हैं, वह सर्वदानज्ञ होते हैं और अतुल ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं। इसमें कोई संदेह नही।