11th House: कुंडली में एकादश भाव (लाभ भाव)
11th House in Horoscope: कुंडली में एकादश भाव (लाभ भाव) का विशेष महत्व होता है। इस भाव से प्रधानताः व्यक्ति के आय (इनकम) का विचार किया जाता है। अगर आप कुंडली के नवम भाव के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आपको यह लेख शुरू से अंत तक पढ़ना चाहिए..
ज्योतिष में नवम भाव से क्या देखा जाता है?
इस भाव से धन लाभ, व्यापार, विशिष्ट पदवी, भूषण, विद्या, प्रेमिका के लिए आभूषण बनाना, मंत्र पद, साला, माता की आयु, कान जंघा, अभीष्ट वस्तु की प्राप्ति आदि के विष में जानकारी प्राप्त की जाती है।
।। अथ लाभभावफलाध्यायः ।।
बहुलाभ योग
लाभाधिपो यदा लाभे तिष्ठेत् केन्द्रत्रिकोणयोः
बहुलाभ तदा कुर्यात् उच्चे सूर्यांशगऽपि वा ।।
लाभेशे धनराशिस्थे धनेशे केन्द्रसंस्थिते
गुरुणा सहिते भावे गुरुलाभं विनिर्दिशेत् ।।
लाभेशे विक्रमे भावे शुभग्रहसमन्वितेष
ट्त्रिंशे वत्सरे प्राप्ते सहस्रद्वय निष्कभाक् ।।
केन्द्रत्रिकोणगे लाभनाथे शुभसमन्विते
चत्वारिंशे तु सम्प्राप्ते सहस्रार्धसुनिष्कभाक्र ।।
लाभस्थाने गुरुयुते धने चन्द्रसमन्विते ।
भाग्यस्थानगे शुक्रे षट्सहस्राधिपो भवेत् ।।
यदि एकादशेश स्वग्रही हो, केन्द्र त्रिकोण में, उच्च में या सूर्यनवांश में हो तो बहु लाभ योग होता है। यदि एकादशेश द्वितीय में व द्वितीयेश केन्द्र में एवं गुरु केन्द्र में धनेशके साथ हो तो बहुत लाभदायक योग होता है।
- यदि एकादशेश तृतीय भाव में हो तथा शुभ ग्रह से युक्त हो तो 36 वर्ष तक दो हजार सुवर्णमुद्रा प्राप्त कर लेता है।
- यदि लाभेश केन्द्र या त्रिकोण में और शुभ ग्रह से युक्त हो तो 40 वर्ष में 500 स्वर्ण मुद्राएँ मिलती हैं।
- यदि एकादश स्थान में बृहस्पति व घनस्थान में चन्द्रमा हो एवं शुक्र नवम में रहे तो 6000 सुवर्ण मुद्राएँ प्राप्त होती हैं।
टिप्पणी: यहां स्वर्ण मुद्रा का अर्थ वर्तमान काल अनुसार धन से समझना चाहिए।
अन्य लाभ योग
लाभाच्च लाभगे जीवे बुधचन्द्रसमन्विते
धनधान्याधिपः श्रीमान् रत्नाद्याभरणैर्युतः ।।
लाभेशे लग्नभावस्थे लग्नेशे लाभसंयुते
त्रयस्त्रिंशे तु सम्प्राप्ते सहस्रनिष्क भाग्भवेत् ।।
धनेशे लाभराशिस्थे लाभेशे धनराशिगे
विवाहात्परतश्चैव बहुभाग्यं समादिशेत्।।
यदि एकादश से एकादश भाव (नवम भाव में) में गुरु, बुध, चन्द्र हो तो मनुष्य धन युक्त, बहुमूल्य रत्नों का स्वामी होता है।
एकादशेश यदि लग्न में बैठा हो, लग्नेश लाभ भवन में हो तो 33 वर्ष की अवस्था तक 1000 स्वर्ण मुद्रा प्राप्त करता है।
घनेश लाभ भवन में व लाभेश धन में गया हो तो मनुष्य का भाग्य विवाह के बाद चमकता है।
लाभ हीन योग
लाभेशे नीचस्ते वा त्रिके पापसमन्विते ।
कृतेभूरिप्रयत्पि नैव लाभः कदाचन् ।।
यदि लाभेश नीचगत, अस्त या 6, 8, 12 में पापयुक्त हो तो खूब परिश्रम करने पर भी प्रयाप्त लाभ नहीं होता है।
निष्कर्ष: कुंडली में नवम भाव एक महत्वपूर्ण भाव है। इसलिए इस भाव का सावधानी पूर्वक अध्यन करना चाहिए।