5th House: कुंडली में पंचम भाव (संतान भाव)
Fifth House in Horoscope: कुंडली में पंचम भाव (संतान भाव) का विशेष महत्व होता है। इस भाव से प्रधानताः संतान और शिक्षा का विचार किया जाता है। अगर आप कुंडली के सातवे भाव के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो आपको यह लेख शुरू से अंत तक पढ़ना चाहिए..
ज्योतिष में पांचवे भाव से क्या देखा जाता है?
पांचवे भाव से सन्तान, विद्या, राजा, मन्त्री, धार्मिक कथा, पिता का धन दरबारी स्त्रियों से संग, समाचार लिखना, पेट, मंत्र, जप, धन कमाने का ढंग, आदि की जानकारी प्राप्त की जाती है।
।। अथ पंचमभावफलाध्यायः ।।
संतान योग
लग्नये सुतभावस्थेत ते स्थिते
केन्द्रत्रिकोण संस्थे वा पूर्ण पुत्रसुखं वदेत् ।।
षष्ठाष्टमव्यवस्थे तु सुताधीशे त्वपुत्रता
सुतेऽस्तंगते वापि पापाक्रान्ते च निर्बले
तदा न जायते पुत्रो जातो वा म्रियते ध्रुवम् ।।
अर्थात: लग्नेश पंचम में हो या पंचमेश स्वग्रही (पंचम भाव में) हो। अथवा पंचमेश केन्द्रत्रिकोण में गया हो तो पुत्र सुख होता है।यदि पंचमेश 6.8.12 भावों में हो तो पुत्र नहीं होता है। यदि पंचमेश अस्त हो, निर्बल या पापग्रहों से आक्रान्त हो तो पुत्र नहीं होता या पुत्र होकर भी जीवित नहीं रहता ।
काकबन्ध्यायोग
षष्ठस्थाने सुताधीशे लग्नेशे कुजसंयुते
म्रियते प्रथमापत्यं काकवन्ध्या च गेहिनी ।।
सुताधीशो हि नीचस्थो षडादिभाव संस्थितः
काकवन्ध्या भवेन्नारी सुते केतुबुधौ यदि ।।
सुतेशे नीचगो यत्र सुतस्थानं न पश्यति ।
तत्र सौरिबुधौ स्यातां काकवन्ध्यात्वमाप्नुयात् ।।
अर्थात: यदि पंचमेश षष्ठ स्थान में हो, लग्नेश किसी भी भाव में मंगल से युक्त हो तो जातक की पहली सन्तान मर जाती है तथा बाद में जातक पुरुष हो तो उसकी पत्नी तथा स्त्री हो तो स्वयं आगे गर्भ धारण नहीं करती।
यदि पंचमेश नीच स्थान में गया हो और 6, 8,12 भाव में स्थित हो और पंचम में केतु बुध हो तो काकवन्ध्या योग होता है। पंचमेश नीच राशि में हो और पंचम को न देखे एवं पंचम भाव में बुध शनि हो तो काकवन्ध्या योग होता है।
विशेष: जिसे एक बार ही गर्भधारण हो वह काकबन्ध्या तथा कभी गर्भ न हो तो वन्ध्या होती है।
पुत्र पुत्री योग
सुते झजीवशुक्राश्च सबलैरवलोकिते ।
भवन्ति बहवः पुत्राः सुतेशेहि बलान्विते ।।
सुरेशे चन्द्रसंयुक्ते तद् कालेपिवा
तदा हि कन्यकोत्पत्तिः प्रवदेद् दैवचिन्तकः ।।
अर्थात: यदि पंचम भाव में बुध, गुरु, शुक्र हो तथा बलवान् ग्रह (पुरुष ग्रह) से देखे जाते हों और पंचमेश भी बलवान् हो तो बहुत से पुत्र होते हैं।
यदि पंचमेश चन्द्रमा के साथ हो अथवा पंचमेश कर्क राशि के द्रेष्काण में हो तो दैवज्ञ को कन्याओं का जन्म कहना चाहिए।
पुत्र जन्म से भाग्य वृधि
पुत्रस्थानाधिषे स्वोच्चे लग्नादवा द्वित्रिकोणगे
गुरुणासंयुते दृष्टे पुत्रभाग्यमुपैति सः ।।
त्रिचतुःसंयुक्ते सुते सौम्यविवर्जिते।
सुतेशे नीचराशिस्थे नीचसंस्थो भवेच्छिशुः ।।
अर्थात: यदि पंचमेश अपने उच्च में हो (मूल त्रिकोण, स्वक्षेत्र में भी) अर्थात् राशि बली हो तथा लग्न से 1, 2, 5, 9 में हो और गुरु से दृष्ट रहे तो पुत्र जन्म के बाद जातक का भाग्य चमकता है।
यदि पंचम में कोई शुभ ग्रह न हो तथा तीन-चार पाप ग्रह पंचम में हों, पंचमेश नीच राशि में हो तो जातक का पुत्र नीच कर्म करने वाला होता है।
निष्कर्ष: कुंडली में पांचवा भाव एक महत्वपूर्ण भाव है। इसलिए इस भाव का सावधानी पूर्वक अध्यन करना चाहिए।