1st house: कुंडली में प्रथम भाव
First House in Horoscope: कुंडली में प्रथम भाव यानी लग्न का विशेष महत्व होता है। अगर आप अपनी कुंडली के प्रथम भाव के बारे में जानना चाहते हैं तो आपको इस लेख को अंत तक पढ़ना चाहिए।
The 1st House Astrology Summary
- What is the 1st house in Vedic Astrology?
- The First House Rules Identity
- The First House Rules the Conscious Self
- Transits in the First House
- Planetary Influences in the First House
- Yogas Relates To First House
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में कुल 12 भाव होते हैं और हर भाव की अपनी विशेषताएँ होती है। इनमें प्रथम भाव को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे “लग्न” (Ascendant) भी कहते है। लग्न इसलिए भी महत्ता है क्योंकि यह मनुष्य के आयु, स्वास्थ्य, स्वभाव, मान-सम्मान आदि बातों का बोध कराता है।
ज्योतिष में प्रथम भाव से क्या देखा जाता है?
प्रथम भाव का कारक ग्रह “सूर्य ग्रह” है। प्रथम भाव को लग्न और इसके स्वामी को “लग्नेश” कहा जाता है। काल पुरूष की कुंडली में पहले घर पर मेष राशि का शासन है, जिसका स्वामी मंगल है। लग्न भाव का स्वामी अगर नैसर्गिक क्रूर (सूर्य, शनि, मंगल,) ग्रह भी हो तो, वह अच्छा फल ही देता है। प्रथम भाव से प्रधानतः निम्न बातों का विचार किया जाता है।
- शारीरिक संरचना
- स्वभाव
- बाल्यकाल
- आयु और स्वास्थ्य
।। अथ लग्नभावाध्यायः ।।
अब हम वृहद पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार प्रथम भाव के फल कथन को कहते है।
तनुपः पापसंयुक्तस्त्रिको देहसौख्यइत्
केन्द्रकोणगतश्चासौ सदा देहसुखं दिशेत् ।।
लग्नपऽस्तंगतो नीचे शत्रुभे रोगकृद् भवेत्
शुभाः केन्द्रत्रिकोणस्थाः देहं सौख्यप्रदाः स्मृताः ।।
यदि लग्नेश पाप ग्रह से युक्त होकर 6, 8,12 भावों में गया हो तो ऐसे जातक को शरीर का सुख कम करता है। वही लग्नेश यदि केन्द्र त्रिकोण में हो तो शरीर सुख देता है।
यदि लग्नेश अस्तं, नीच और शत्रुक्षेत्री हो तो रोगकारक कहलाता है। यदि शुभ ग्रह केन्द्र कोण में हो तो लग्नेश का अग्रलिखित योग रहने पर भी स्वास्थ्य उत्तम रहता है। READ | 12 भाव में विभिन्न ग्रहों का फल
लग्नेचन्द्रेऽथवाक्रूर ग्रहैर्युक्तेऽथवेक्षिते ।
सौम्यदृष्टिविहीने तु जन्तोर्देहसुखं न हि ।
लग्ने सशुभे सुभगः पापे रूपविवर्जितः
सौम्यखेटैर्युते दृष्टे देहसौख्यं भवेद्ध्रुवम् ।।
लग्न या चन्द्रमा पर क्रूर ग्रह की दृष्टि या योग हो तथा शुभ ग्रह उसे न देखे तो शरीर सुख की अल्पता रहती है। लग्न में शुभ ग्रह हो तो मनुष्य सुन्दर व आकर्षक तथा पाप ग्रह हो तो रूपहीन या अनाकर्षक होता है। लग्न पर शुभ ग्रह की दृष्टि या योग हो तो अवश्य ही शरीर सुखी होता है।
लग्नेशो झोगुरुर्वापि शुक्रो वा केन्द्रकोणगः
दीर्घायुर्धनवान् जातो बुद्धिमान् राजवल्लभः ।।
लग्नेशे चरराशिस्थे शुभग्रहनिरीक्षिते
कीर्तिश्रीमान् महाभोगी देहसौख्यसमन्वितः ।।
बुधीजीवऽथवा शुक्रो लग्ने चन्द्र समन्वितः
लग्नात्केन्द्रगतश्चापि राजलक्षणसंयुतः ।।
लग्नेश, बुध, गुरु, शुक्र इनमें से कोई भी केन्द्र या त्रिकोण में हो तो जातक दीर्घायु, धनवान, बुद्धिमान् व राजप्रिय होता है।
लग्नेश यदि चरराशि में हो तथा शुभ ग्रह लग्नेश को देखता होतो जातक यशस्वी, श्रीमान्, भोगवान् व शरीर सुख पाने वाला होता है।
यदि लग्न में चन्द्रमा के साथ बुध या गुरु या शुक्र हो या लग्न से केन्द्र में इसी तरह से चन्द्र बुध, चन्द्र शुक्र या चन्द्र गुरु योग हो तो जातक राजसी चिन्हों से युक्त होता है।
निष्कर्ष: लग्न 12 भावों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है। इसलिए इस भाव का सर्वप्रथम और सावधानी पूर्वक अध्यन करना चाहिए।