Gangotri Temple: गंगोत्री धाम यात्रा की सम्पूर्ण जानकारी
गंगोत्री, गंगा नदी का उद्गम स्थान है। यहां स्थित गंगाजी का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह उत्तराखंड के 4 प्रमुख धामों में से एक है। प्रत्येक वर्ष लाखों, श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते है।
गंगा कौन हैं? (Who is Gannga)
गंगाजी को तीथों का प्राण माना गया है। गंगाजी हिमालय से उत्पन्न हुई है। जिस स्थान से गंगाजी का प्रादुर्भाव हुआ है, उसे गंगोत्री कहते हैं। माम्यता अनुसार गंगाजी भगवान नारायण के चरणों से निकलकर भगवान शंकर के मस्तक पर गिरी और वहां से पृथ्वी पर आई हैं।
गंगोत्री मन्दिर कब खुलता है (When does gangotri temple open)
प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के महीनो के बीच पतित पावनी गंगा मैंया के दर्शन करने के लिए लाखो श्रद्धालु तीर्थयात्री यहां आते है। यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते है।
गंगोत्री दर्शन (Gangotri Temple & complex)
गंगा मैया के मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18 वी शताब्दी के शुरूआत में किया गया था वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर के राजघराने द्वारा किया गया था।
गंगोत्री का मुख्य मंदिर यही है। इस मंदिर में आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा प्रतिष्ठित गंगाजी की मूर्ति है। राजा भगीरथ, यमुना, सरस्वती एवं शंकराचार्यजी की मूर्तियां भी हैं। मंदिर में गंगाजी की मूर्ति व छत्र इत्यादि सब सोने के हैं। गंगाजी के मंदिर के पास एक भैरव मंदिर है। गंगोत्री में सूर्यकुंड, विष्णुकुंड, ब्रह्मकुंड आदि तीर्थ हैं।
ऐसी भी मान्यता है कि पांडवो ने भी महाभारत के युद्ध में मारे गये अपने परिजनो की आत्मिक शांति के निमित इसी स्थान पर आकर एक महान देव यज्ञ का अनुष्ठान किया था। और पढें: महाभारत के पात्र
भगीरथ शिला (Bhagirath Shila)
पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान श्री रामचंद्र के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां इसी पवित्र शिलाखंड पर बैठकर तप किया था। इस शिला पर पिंडदान किया जाता है। यहां गंगाजी को विष्णु तुलसी चढ़ाई जाती है। और पढें: रामायण के पात्र
मार्कण्डेय क्षेत्र (Markandeya Kshetra)
शीतकाल में यह स्थान बर्फ से ढक जाता है, इसलिए पंडे चल-मूर्तियों को ‘मुखचा गांव से एक मील दूर मार्कण्डेय क्षेत्र में ने जाते हैं। वहीं शीतकाल में उनकी पूजा होती है। कहा जाता है कि मार्कण्डेय क्षेत्र मार्कण्डेय ऋषि की तपस्थली है।
गंगोत्री कैसे पहुंचे ( How to Reach gangotri)
गंगोत्री स्थान समुद्र-स्तर से लगभग दस हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह गंगाजी के दक्षिण तट पर है। यहां कई धर्मशालाएं है।
गंगोत्री से लगभग दो किलोमीटर नीचे गौरीकुंड है। वहां जाने के लिए गंगाजी को पुल से पार करना पड़ता है। इस कुंड में होती हुई केदारगंगा भागीरथी में मिलती है। गंगाजी मिलने वाली यह पहली नदी है। केदार गंगा के पानी का रंग भूरा है।
गोमुख (origin of the Ganges)
गंगोत्री से आगे का मार्ग अत्यंत कठिन है। यदि जाने का साहस हो तो पूरी तैयारी से ही जाएं। गंगोत्री से लगभग दस मील देवगढ़ नामक एक नदी गंगाजी में मिलती है। यहां से साढ़े चार मील पर चीड़ोवास (चीड़ के वृक्षों का वन) है। यात्री को यहीं वन के अंत में रात्रि विश्राम करके प्रातः बड़े सवेरे गोमुख जाना चाहिए। चीड़ोवास से लगभग चार मील दूर गोमुख स्थान है।
हिमधारा (ग्लेशियर)
गोमुख से हिमधारा (ग्लेशियर) के नीचे से गंगाजी की धारा प्रकट होती है। इस स्थान की शोभा अतुलनीय है। यहां भगवती भागीरथी के दर्शन करके ऐसा लगता है कि जीवन धन्य हो गया। यात्रा की थकान मिट जाती है। भुवन पावनी गंगा के इस उद्गम में स्नान कर पाना मनुष्य का अहोभाग्य है।
गोमुख में इतनी शीत है कि जल में हाथ डालते ही वह हाथ सुन्न हो जाता है। अग्नि जलाकर तब पानी से स्नान करते है। गोमुख से लौटने में शीघ्रता करनी चाहिए। धूप चढ़ने पर हिमशिखरों से भारी हिम चट्टानें टूट टूटकर गिरने रहते है। इस प्रकार गंगोत्री से गोमुख की यात्रा में तीन दिन लगते हैं।