Lord Surya: जानिए, सूर्य देव का रहस्य
Lord Surya: वैदिक और पौराणिक ग्रंथों में भगवान सूर्य देव को सृष्टि का आदि कारण कहा गया है। इस कारण जगत् की उत्पत्ति सूर्य देव से ही मानी जाती है और उन्हीं के अधीन सृष्टि का कार्य संपन्न होता है। नव-ग्रहों में ये सबसे प्रमुख देव-ग्रह हैं।
भगवान सूर्य देव का वर्ण लाल है। ये कमल-पुष्प पर आसीन होते हैं। भगवान सूर्य की दो भुजाएँ हैं। इनके हाथों में कमल-पुष्प, सिर पर स्वर्णमुकुट और गले में रत्नों की माला सुशोभित होती है। इनका वाहन रथ है, जिसे सात घोड़े खींचते हैं। इनके प्रमुख अस्त्र-शस्त्र – चक्र, शक्ति, पाश और अंकुश हैं। इनके रथ के आगे समस्त देवगण, ऋषि-मुनि, गंधर्व, नाग, यक्ष आदि इनकी स्तुति करते हुए चलते हैं। शास्त्रों और धार्मिक ग्रंथों में इनकी उत्पत्ति की कथा इस प्रकार वर्णित है-
महाप्रलय के बाद संपूर्ण ब्रह्मांड जल-मग्न होकर शून्य में लीन हो गया। उस समय केवल एक दिव्य प्रकाश-पुंज ब्रह्मांड में स्थित था। यह दिव्य प्रकाश-पुंज ही परब्रह्म भगवान सूर्य देव थे। बाद में भगवान सूर्य देव की प्रेरणा से जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि-रचना का विचार किया तो उन्होंने मनु, दक्ष और मरीचि नामक नरों की रचना की।
ब्रह्मा जी ने मरीचि का विवाह अदिति के साथ संपन्न करवाया। मरीचि बाद में कश्यप ऋषि के नाम से विख्यात हुए। महर्षि कश्यप और अदिति दोनों ही धार्मिक प्रवृत्ति के, सात्विक और लोकोपकारी थे। इनसे उत्पन्न होने वाली संतानें इनके सद्गुणों के कारण देवता कहलाईं। सत्ताधिकार के लिए दैत्यों और देवताओं में वैमनस्य उत्पन्न होने के कारण दैत्य सदा देवताओं पर आक्रमण करके युद्ध करते रहते थे।
एक बार इसी प्रकार दैत्य और देवताओं के मध्य भयंकर युद्ध आरंभ हो गया। यह युद्ध अनेक वर्षों तक चला। इस युद्ध के कारण देवताओं और सृष्टि का अस्तित्व संकट में पड़ गया। अंत में देवगण दैत्यों से पराजित हो गए और अपनी जान बचाकर वन-वन भटकने लगे। देवताओं की यह दुर्दशा देखकर देव-माता अदिति और महर्षि कश्यप दुःखी रहने लगे।
एक बार देवर्षि नारद घूमते-घूमते महर्षि कश्यप के आश्रम में आ निकले। वहाँ देव-माता अदिति और महर्षि कश्यप को व्याकुल देखकर वह बोले, ‘‘हे देव-माता! आप इस प्रकार चिंतित क्यों दिखाई दे रही हैं? महर्षि कश्यप भी इसी प्रकार व्याकुल और चिंतित है। आपको क्या कष्ट व्याकुल कर रहा है? कृपा करके बताएँ माता।’’
माता अदिति बोलीं, ‘‘हे देवर्षि! आप जानते हैं कि दैत्यों ने युद्ध में देवताओं को शक्तिहीन करके पराजित कर दिया है। इंद्र आदि सभी देवता अपने प्राणों की रक्षा हेतु वन-वन भटक रहे हैं। दैत्यों के शक्ति-संपन्न होने के कारण सृष्टि और देवताओं का अस्तित्व संकट में पड़ गया है। हमें इनकी रक्षा करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा। इसलिए हम चिंतित और व्याकुल हैं।’’
नारद जी बोले, ‘‘हे देवताओ की माता! आप इस तरह व्याकुल न हों। विधि के विधान में जो लिखा है, वह अवश्य होगा। इसे न तो आप बदल सकते हैं और न ही कोई अन्य। किंतु इस संकट से बचने का एक उपाय है। आप भगवान सूर्यनारायण की उपासना करके उन्हें प्रसन्न करें और उनसे पुत्र-रूप में प्रकट होने का वरदान प्राप्त करें। भगवान सूर्यनारायण के तेज के समक्ष ही दैत्य पराजित हो सकते हैं और देवताओं की रक्षा की जा सकती है।’’
नारद जी के उपदेशानुसार अदिति भगवान सूर्यनारायण को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करने लगीं। उसकी तपस्या अनेक वर्षों तक चली। अंत में उसके तप से प्रसन्न होकर भगवान सूर्यनारायण प्रकट हुए और बोले, ‘‘हे पुत्री! तुम्हारी तपस्या से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुमने सच्ची भक्ति और लगन के बल से वर प्राप्त करने का अधिकार पा लिया है। माँगो! तुम वरदान में क्या चाहती हो? मैं तुम्हारी समस्त मनोकामनाएँ पूर्ण करूँगा।’’
अदिति भाव-विभोर होकर बोलीं, ‘‘हे परब्रह्म सूर्य देव! आप सभी की इच्छाएँ पूर्ण करने वाले हैं। आपकी पूजा-आराधना करनेवाला कभी निराशा नहीं होता। मेरी केवल यह विनती है कि आप मेरे पुत्र के रूप में उत्पन्न होकर देवताओं की रक्षा करें।’’
अदिति के वर माँगने पर सूर्यनारायण बोले, ‘‘तथास्तु! मैं तुम्हारे पुत्र के रूप में जन्म लेकर दैत्यों का नाश करूँगा। तुम्हारे गर्भ से उत्पन्न होने के कारण मेरा वह रूप आदित्य नाम से विख्यात होगा और सृष्टि के अंत तक ब्रह्मांड में विद्यमान रहेगा।’’
अदिति को मन-वांछित वर देकर भगवान सूर्य वहाँ से अंतर्धान हो गए। वर-प्राप्ति के बाद अदिति महर्षि कश्यप के साथ प्रतिदिन सूर्य-उपासना करने लगीं। कुछ दिनों के बाद भगवान सूर्यनारायण का तेज अदिति के गर्भ में स्थापित हो गया।
एक बार महर्षि कश्यप और अदिति में किसी बात को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। यह विवाद बढ़ता चला गया। तब क्रोध में आकर महर्षि कश्यप ने अदिति को अपशब्द कहते हुए उत्पन्न होने वाले पुत्र के लिए ‘मृत’’ शब्द का उच्चारण कर दिया।
महर्षि कश्यप ने जैसे ही ‘मृत’ शब्द का उच्चारण किया, तभी अदिति के शरीर से एक तेजयुक्त दिव्य प्रकाश-पुंज निकलकर कमल के पुष्प के ऊपर स्थित हो गया। इस दिव्य प्रकाश-पुंज में से निकलनेवाली भयंकर अग्नि की लपटों से संपूर्ण ब्रह्मांड में हाहाकार मच गया। दिव्य पिंड को देखकर महर्षि कश्यप अत्यंत भयभीत हो गए और वे भगवान सूर्य देव से क्षमा-याचना करने लगे।
कश्यप की क्षमा-याचना से द्रवित होकर अंत में भगवान सूर्य देव प्रकट होकर बोले, ‘‘हे कश्यप! तुमने क्रोध के अधीन होकर अपने पुत्र के लिए ‘मृत’ शब्द का उच्चारण कर दिया। ऋषि के मुख से निकले वचन को सत्य होना ही चाहिए।’’ सूर्यनारायण की बात सुनकर कश्यप लज्जित होते हुए बोले, ‘‘हे प्रभु! क्रोधित होने के कारण मुझसे यह पाप अनजाने में हो गया। हे दयानिधान! आप क्षमाशील हैं। कृपया मुझे क्षमा प्रदान करें।’’
तब भगवान सूर्यनारायण कश्यप को क्षमा करते हुए बोले, ‘‘हे महर्षि! मैं तुम्हारे पाप को क्षमा करता हूँ। अब तुम इस प्रकाश-पुंज की नियमित आराधना करो। उचित समय पर इसमें से एक दिव्य बालक जन्म लेगा और तुम्हारी समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने के बाद ब्रह्मांड के मध्य में स्थित हो जाएगा।’’ यह कहकर सूर्य भगवान वहाँ से अंतर्धान हो गए। कश्यप और अदिति ने प्रकाश-पुंज को भगवान सूर्य का अंश मानकर वेद-मंत्रों द्वारा उसकी स्तुति आरंभ कर दी। उचित समय पर उसमें से एक कांतियुक्त, तेजस्वी और दिव्य बालक उत्पन्न हुआ। इसके शरीर से दिव्य तेज निकल रहा था। इसके आलोक से संपूर्ण पृथ्वी, दसों दिशाएँ और ब्रह्मांड आलोकित हो उठा।
यही बालक सूर्य देवता, आदित्य और मार्तण्ड आदि नामों से प्रसिद्ध हुआ। जन्म लेने के बाद बालक ने अपने माता-पिता, कश्यप और अदिति को प्रणाम किया और उनसे अपने जन्म का उद्देश्य पूछा।
तब देव-माता अदिति बोलीं, ‘‘हे पुत्र! तुम्हारा जन्म सृष्टि की रक्षा के लिए हुआ है। दैत्यों ने देवताओं को पराजित करके तीनों-लोकों में अपना राज्य स्थापित कर लिया है। उनके अत्याचारों से मनुष्य, ऋषि-मुनि, देवताओं में हाहाकार मच गया है। तुम्हारा कर्तव्य और धर्म उनकी रक्षा करना और उनका पालन करना है।’’ माता से अपने जीवन का उद्देश्य जानकर आदित्य ने भगवान सूर्यनारायण का स्मरण किया। सूर्य देव का स्मरण करते ही उसके हाथों में अंकुश, चक्र, पाश आदि अस्त्र-शस्त्र प्रकट हो गए। तत्पश्चात् माता-पिता से युद्ध में जाने की अनुमति लेकर आदित्य देवताओं को एकत्रित करने के लिए चल पड़ा।
आदित्य वन-वन जाकर देवताओं को एकत्रित करने लगा। आदित्य के तेजस्वी और बलशाली स्वरूप को देखकर इंद्र आदि देवता अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्हें विश्वास हो गया कि ‘आदित्य उन्हें दैत्यों के अत्याचारों से अवश्य मुक्ति दिलाएगा।’’ उन्होंने सहर्ष आदित्य को अपना राजा स्वीकार कर लिया।
आदित्य के नेतृत्त्व में सभी देवताओं ने दैत्यों पर आक्रमण कर दिया। दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध छिड़ गया। आदित्य के तेज के समक्ष दैत्य अधिक समय तक नहीं टिक पाए। शीघ्र ही दैत्यों के पाँव उखड़ गए। वह अपनी जान बचाकर पाताललोक में भाग गए। सूर्य देव के आशीर्वाद से स्वर्गलोक पर पुनः देवताओं का अधिकार हो गया। सभी देवताओं ने आदित्य को जगत-पालक और ग्रहों के राजा के रूप में स्वीकार किया।
सृष्टि को दैत्यों के अत्याचारों से मुक्त करके भगवान आदित्य सूर्य के रूप में ब्रह्मांड के मध्य में स्थित हो गए और वहीं से संपूर्ण ब्रह्मांड का कार्य-संचालन करने लगे।
हिंदू धर्म के प्रमुख देवी-देवता