Sri Jagannatha Temple: श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी (उड़ीसा)
श्री जगन्नाथ मंदिर एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है, जो भारत के ओडिशा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है। यह मंदिर भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है।
जगन्नाथ शब्द का अर्थ- “जगत के स्वामी होता है।” इनकी नगरी ही जगन्नाथपुरी या पुरी कहलाती है। इस मंदिर को हिंदुओं के पवित्र चार धाम में से एक गिना जाता है। अन्य तीन धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ औऱ रामेश्वर हैं।
जगन्नाथ मंदिर, पूरी (Sri Jagannatha Temple)
भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण को समर्पित इस मंदिर के मुख्य देवता भगवान जगन्नाथ (कृष्ण), उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा हैं। और पढें: भगवान विष्णु के दशावतार
मंदिर का क्षेत्रफल 400,000 वर्ग फुट (37,000 मी2) में फैला है।मंदिर का मुख्य ढांचा एक 214 फीट (65 मी॰) ऊंचे पाषाण चबूतरे पर बना है। इसके भीतर आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।
मंदिर के शिखर पर विष्णु का सुदर्शन चक्र (आठ आरों का चक्र) मंडित है। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है। इसे ‘नीलचक्र’ भी कहते हैं।
इस चक्र की स्थापना का इतिहास 200 साल पुराना है, जो कि आज भी सभी के लिए एक अनसुलझी पहेली की तरह है। इसे किसी भी दिशा से देखने पर अपने सामने ही दिखाई देता है। यह मंदिर वार्षिक रथ यात्रा उत्सव के लिए भी जग प्रसिद्ध है।
जगन्नाथ रथ यात्रा (Sri Jagannatha Temple Ratha Yatra)
जगन्नाथ रथ यात्रा आषाढ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को, तदनुसार लगभग जून या जुलाई माह में आयोजित होता है। रथ यात्रा में मंदिर के तीनों मुख्य देवता भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों अलग-अलग भव्य और सुसन्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं।
रथयात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद बीच में देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। यह यात्रा 5 किलोमीटर लम्बी होती है। इसमें लाखो लोग शरीक होते है।
दारु (नीम) से बनाए जाते हैं रथ
पुरी रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण और देवी सुभद्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ निर्मित किए जाते हैं। रथ नीम की पवित्र और परिपक्व काष्ठ (लकड़ियों) से बनाए जाते हैं, जिसे ‘दारु’ कहते हैं। इन रथों के निर्माण में किसी भी प्रकार के कील या कांटे या अन्य किसी धातु का प्रयोग नहीं होता है।
बलराम का रथ: बलरामजी के रथ को ‘तालध्वज’ कहते हैं। रथ का रंग लाल-हरा तथा ऊंचाई 45 फिट होती है।
सुभद्रा देवी का रथ: देवी सुभद्रा के रथ को ‘दुर्पदलन’ के या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है। सुभद्रा रथ 44.6 फीट ऊंचा होता है। यह काले, नीले और लाल रंग का बना होता है।
कृष्ण का रथ: जबकि भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ या ‘गरुड़ध्वज’ कहते हैं। यह रथ 45.6 फीट ऊंचा, लाल और पीले रंग का बना होता है।
जगन्नाथ मंदिर से जुड़े 13 आश्चर्य जनक तथ्य (Interesting Facts About Jagannatha Temple)
- मंदिर का क्षेत्रफल 4 लाख वर्गफुट और ऊंचाई 214 फुट है।
- मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।
- मंदिरों के शिखर पर कभी पक्षी नही बैठते। आप पक्षी या विमानों को मंदिर के ऊपर से उड़ते हुए नहीं पाएंगे।
- मंदिर का एक पुजारी मंदिर के 65 मीटर शिखर पर स्थित झेंडे को हर रोज बदलता है। झंडा बदलने की रीति 1800 सालों से चली आ रही है।
- ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो सकता है।
- प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है।
- मुख्य गुंबद की छाया दिन के समय भी अदृश्य रहती है।
- किसी भी स्थान से मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा।
- मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते।
- मंदिर का रसोई घर दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर है।
- महाप्रसाद का निर्माण करने हेतु 500 रसोइए एवं उनके 300 सहायक सहयोगी एकसाथ काम करते हैं।
- मंदिर का प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक दूसरे पर रखे जाते हैं।
- प्रसाद का सारा खाना मिट्टी और लकड़ी के बर्तन पर पकाया जाता है।
- इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमशः नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है।
- मंदिर का प्रसाद कभी भी व्यर्थ नहीं जाता है औऱ न ही कम पड़ता है।
जगन्नाथ पूरी कैसे पहुँचे (How to Reach in Jagannatha Puri)
हवाई मार्ग: जहाज से निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर में बीजू पटनायक अंतर्राष्ट्रीय हवाई बंदरगाह है 60 किमी ट्रेन से निकटतम रेलवे स्टेशन पुरी मंदिर से 3 किमी दूर है।
रेल मार्ग: पुरी एक प्रमुख रेलवे जंक्शन है। पुरी से भारत के कई शहरों के लिए नियमित सीधी ट्रेन सेवाएं उपलब्ध हैं, जिनमें भुवनेश्वर, नई दिल्ली, चेन्नई, कोलकाता, पटना आदि शामिल हैं।
सड़क मार्ग: भुवनेश्वर और पुरी के रेलवे स्टेशन से मंदिर के लिए नियमित बस, टैक्सी और ऑटो सेवाएं उपलब्ध हैं।