Thrissur (Kerala): History & Places To Visit in Hindi
त्रिस्सूर (Trissur) भारत कर केरल राज्य में स्थित एक नगर है। यह जिले का मुख्यालय भी है। इसे पहले ‘त्रिचूर’ के नाम से जाना जाता था।
Thrissur: History, Facts & Tourist Places | wiki
राज्य | केरल |
क्षेत्रफल | 3,032 वर्ग किमी |
भाषा | मलयालम, हिंदी, इंग्लिश |
औसत वर्षा | 550 मि.मी. |
ऊंचाई | समुन्द्र तल से 5 मीटर |
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कब जाएं | अक्टूबर से मार्च। |
त्रिसूर केरल का केंद्रीय जिला है। यह जिला केरल की सांस्कृतिक राजधानी कहलाता है। त्रिसूर उत्तर में पलक्कड़ से, पूर्व में पलक्कड़ और कोयंबटूर से, दक्षिण में एर्नाकुलम और इदुकी जिलों से तथा पश्चिम में अरब सागर से जुड़ा हुआ है। त्रिसूर का नाम मलयालम शब्द त्रिस्सिवपेरुर से निकला है जिसका अर्थ होता है शिव का पवित्र घर।
प्राचीन काल में इसे वृषभद्रीपुरम और तेन कैलाशम कहा जाता था। त्रिसूर जिले ने दक्षिण भारत के राजनैतिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इस जिले का प्रारंभिक राजनैतिक इतिहास संगम काल के चेर वंश से जुड़ा हुआ है जिन्होंने केरल के बड़े हिस्से पर शासन किया था।
वर्तमान त्रिसूर जिले का संपूर्ण भाग चेरा साम्राज्य का हिस्सा था। त्रिसूर की सांस्कृतिक परंपराएं काफी पुरानी हैं। प्राचीन का से ही यह अध्ययन और संस्कृति का केंद्र रहा है। केरल का सबसे रंगबिरंगा मंदिर उत्सव त्रिसूर पूरम राज्य और राज्य के बाहर के लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां के चर्च, मंदिर, समुद्री तट आदि सभी कुछ पर्यटकों को लुभाते हैं। इसे देखते हुए यहां पर्यटन की अपार संभावनाएं देखी जा रही हैं।
द बेसिलिका ऑफ आवर लेडी ऑफ डलर्स (Basilica of Our Lady of Graces)
भारत के सबसे बड़े और ऊंचे चर्चों में से एक द बेसिलिका ऑफ आवर लेडी ऑफ डलस त्रिसूर के बीचों बीच स्थित है। 25000 वर्ग फीट में फैले इस चर्च का निर्माण 1940 में कोचीन के महाराजा राम वर्मा की सहायता से किया गया था। चर्च की दो इमारतें सामने की ओर और एक इमारत पीछे की तरफ है जिसे बाइबल टावर कहा जाता है। सामने की दो इमारतें 146 फीट और पीछे की इमारत 260 फीट ऊंची है।
ये सभी इमारतें गोथिक शैली में बनी हुई हैं।
इन इमारतों से त्रिसूर का खूबसूरत नजारा देखा जा सकता है। चर्च में जर्मनी से मंगाई गई आठ संगीतमय घंटियां हैं जिनसे संगीत के सात सुर सुनाई देते हैं। यहां की सेप्टिक-सेल मॉडल सिमेटरी भारत में अपनी तरह का सबसे बड़ा कब्रिस्तान है। हजारों श्रद्धालु चर्च में आते हैं और परपेचुअल एडोरशन सेंटर में प्रार्थना करते हैं।
पालयुर चर्च (St. Thomas Syro-Malabar Church, Palayoor)
पलयुर चर्च त्रिसूर से 28 किमी. दूर त्रिसूर-गुरुवयुर मार्ग पर स्थित है। इसका निर्माण सेंट थॉमस ने करवाया था। चर्च के प्रवेश द्वार पर ग्रेनाइट से बनी 14 प्रतिमाएं रखी गई हैं जो सेंट थॉमस के जीवन का दर्शाती हैं। मुख्य कक्ष के सामने बने जुबिली द्वार पर बाइबल की घटनाओं को बर्मी टीक पर खुदे हुए देखा जा सकता है। पास ही ऐतिहासिक संग्रहालय, बोट जेट्टी और तलियाकुलम हैं।
पेरिंगलकतु बांध (Peringalkuthu Dam)
पेरिंगलकतु बांध चलक्कुडी नदी पर बना है। यह बांध वलपरई जाने वाले मार्ग पर घने जंगल में स्थित है। 290.25 मीटर लंबे इस बांध से चलक्कुडी नदी की सहायक नदी कन्नमकुजिताडु को पानी दिया जाता है। इस बांध को करीब से देखने के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता होती है। यहां से 8 किमी. की दूरी पर एक खूबसूरत स्थान है जहां तीन नदियों- कुरियरकुट्टी, करपरा और परंबिकुलम- का संगम होता है। पहले यहां पर एक पक्षी अभ्यारण्य था।
चेरामन जुमा मस्जिद (Cheraman Juma Masjid)
कोडंगलूर तालुक के मेथला गांव में स्थित चेरामन जुमा मस्जिद भारत की पहली जुमा मस्जिद है। मान्यताओं के अनुसार चेरामन पेरुमल एक बार अरब की तीर्थ यात्रा पर गए जहां जेद्दा में उनकी मुलाकात संत मोहम्मद से हुई।
उसके बाद चेरामन ने इस्लाम धर्म अपना लिया और अपना नाम तजुद्दीन रख लिया। उनकी शादी जेद्दा के तत्कालीन राजा की बहन से हुई और वे यहां बस गए। अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने जेद्दा के राजा को केरल के शासकों के नाम कुछ पत्र दिए जिसमें केरल में इस्लाम के प्रचार में सहायता करने का अनुरोध किया गया था। जेद्दा के राजा केरल आए और कोडुंगलूर के राजा से मिले जिन्होंने अरतली मंदिर को जुमा मस्जिद में बदलने में सहायता की।
इस मंदिर का आकार और निर्माण हिंदुओं ने हिंदू कला और वास्तुशिल्प के आधार पर किया था। मस्जिद के साथ तीन महान अनुयायियों की कब्रें हैं जो भारत की पहली और विश्व की दूसरी ऐसी जगह है जहां जुमा नमाज शुरु हुई थी।
पुनरजननी (Punarjani)
पुनरजनी एक प्राचीन गुफा है जो तिरुविलवमल मंदिर से तीन किमी. की दूरी पर स्थित है। माना जाता है कि इस गुफा का निर्माण भगवान विश्वकर्मा ने परशुराम के आदेश पर किया था। भक्तों का विश्वास है कि पुनरजननी को पार कर लेने पर मोक्ष प्राप्त होता है। यूं तो पूरे वर्ष ही यहां भक्तों का तांता लगा रहता है फिर भी नवंबर-दिसंबर में गुरुवयूर एकादशी के दिन यहां हजारों की संख्या में लोग आते हैं। लेकिन गुफा का रास्ता आसान नहीं है।
कई स्थान तो ऐसे हैं जहां वायु की कमी है और कभी-कभी दम घुटने लगता है। फिर भी लोग हंसते हुए और भगवान का ध्यान करते हुए इसे पार कर जाते हैं। पुरनजननी से बाहर निकल कर श्रद्धालु कई पवित्र तीर्थो में डुबकी लगाते हैं।पुनरजननी का संबंध पांडवों से भी जोड़ा जाता है। अनुश्रुतियों के अनुसार मंदिर में पूजा करने के बाद पांडव भाई इस गुफा से होकर गए थे। पास ही भरतपुजा बहती है जो लोगों को लुभाती है। इसके आसपास कई छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं।
गुरुवयूर श्री कृष्ण मंदिर (Guruvayur Shri krishna Temple)
भगवान श्री कृष्ण को समर्पित गुरुवायूरप्पन मंदिर दक्षिण भारत का अनोख तीर्थस्थल है। गुरुवायूर में स्थित यह मंदिर दक्षिण का द्वारका कहलाता है। मंदिर में स्थापित भगवान की मुद्रा वैकुंठधाम के समकक्ष है और इसलिए इस मंदिर को भूलोक वैकुंठ कहा जाता है। कहा जाता है कि यहां प्रतिमा की स्थापना गुरु बृहस्पति और वायु देव ने की थी इसलिए इस स्थान का नाम गुरुवायुपुर पड़ा जो बाद में गुरुवायूर कहलाया।
यहां भगवान को गुरुवायुरप्पन कहा आता है जिसका अर्थ है गुरुवायूर का देवता। देवी दुर्गा, भगवान गणेश और भगवान अय्यप्पा के मंदिर भी इस मंदिर परिसर का हिस्सा हैं। यहां एक पवित्र सरोवर है जिसे रुद्रतीर्थ कहा जाता है।तुलाभरम यहां का महत्वपूर्ण प्रसाद है जिसमें केले, चीनी, नारियल और सिक्के चढ़ाए जाते हैं। फरवरी-मार्च में 10 दिनों का उत्सव मनाया जाता है जिसमें हाथी दौड़ का आयोजन होता है।
मंदिर विवाह समारोह और अन्नप्रसनम के आयोजनों के लिए प्रसिद्ध है जिसमें नवजात शिशु को पहली बार अन्न चखाया जाता है। समय: सुबह 3 बजे-दोपहर 1 बजे तक, शाम 4.30 बजे-रात 8.10 बजे तक। केवल हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति।
वदक्कुनाथन मंदिर (Sri Vadakkunnathan Temple, Thrissur)
त्रिसूर के वदक्कुनाथन मंदिर का निर्माण केरल शैली में किया गया है। यहां पर भगवान शिव, देवी पार्वती, शंकरनारायण, भगवान गणेश, भगवान राम और भगवान श्रीकृष्ण की अराधना की जाती है। मुख्य मंदिर में और कूथंबलम में लकड़ी पर की गई खूबसूरत नक्काशी देखी जा सकती है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना भगवान विष्णु के अवतार परशुराम ने की थी। हर साल अप्रैल और मई के दौरान मंदिर परिसर में त्रिसूर पूरम का आयोजन किया जाता है। हजारों लोग इस कार्यक्रम को देखने के लिए एकत्रित होते हैं।
त्रिसूर चिड़ियाघर (Trissur Zoo)
त्रिसूर चिड़ियाघर कला और पुरातत्व संग्रहालय के पास स्थित है। त्रिसूर शहर से 2 किमी. दूर 10 एकड़ से ज्यादा क्षेत्रफल में फैला यह इलाका पूरी तरह हरियाली से भरा है। करीब एक शताब्दी पुराना यह चिड़ियाघर लुप्तप्राय और संकटग्रस्त जीव-जंतुओं को संरक्षण प्रदान करता है। यहां पर एशियाई शेरों, बाघों और शेर जैसे पूछ वाले दुर्लभ बंदरों को देखा जा सकता है। यहां के सरीसृप गृह में किंग कोबरा, नाग और करैत को करीब से देखने का मौका मिलता है। यह चिड़ियाघर सोमवार को बंद रहता है।
चूलनूर मोर अभ्यारण्य (Chulanur Peafowl Sanctuary)
पलक्कड़ और त्रिसूर जिलों में फैला यह मोर अभ्यारण्य केरल में अपनी तरह का एकमात्र अभ्यारण्य है। यहां केवल घने जंगल ही नहीं हैं बल्कि कुछ चट्टानें, झाड़ियां और इस क्षेत्र को नमी प्रदान करती नहरें भी हैं। 300 हैक्टेयर में फैले इस अभ्यारण्य में कुल 200 मोर हैं। इनके अलावा करीब 100 अन्य प्रकार के पक्षी भी यहां पाए जाते हैं।
मानसून के फौरन बाद यहां सैकड़ों की संख्या में तितलियां देखी जा सकती हैं। 200 हैक्टैयर में फैला कुंचन स्मृतिवनम, जिसका नाम महान मलयालम कवि कुंचन नांबियार के नाम पर रखा गया था, इस अभ्यारण्य का एक हिस्सा है। यहां से कुछ किमी. की दूरी पर कुंचन नांबियार का जन्मस्थान किलिक्कुरिस्सीमंगलम स्थित है
नट्टिका बीच (Nattika Beach)
त्रिसूर से 30 किमी. दूर स्थित नट्टिका बीच सुनहरी रेत और खजूर के पेड़ों से सजा शांत बीच है। यह खूबसूरत स्थान पैकेज टूर के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। यहां स्थित रिजॉर्ट केरल के ग्रामीण वातावरण में सभी आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं। यहां के मुख्य आकर्षणों में बैकवॉटर क्रूज, हाथी की सवारी, गहरे समुद्र में मछली पकड़ना, समुद्र के किनार वॉलीबॉल, बैडमिंटन आदि खेल शामिल हैं।
त्रिसूर कैंसे पहुंचे (How To Reach Thrissur),
वायु मार्ग: नजदीकी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा नेदुंबस्सरी है जो यहां से 58 किमी. दूर है।
रेल मार्ग: त्रिसूर रेलवे स्टेशन केरल के दक्षिणी हिस्से को भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली रेलवे लाइन पर स्थित है।
सड़क मार्ग: त्रिसूर, केरल और देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों से सड़कों के जरिए जुड़ा हुआ है।