विष्णु पुराण
विष्णुपुराण (Vishnu Puran) हिन्दुओ के पवित्र 18 पुराणों में से एक है। यह पुराण श्री पराशर ऋषि द्वारा प्रणीत औऱ विष्णु को समर्पित है।
भगवान विष्णु प्रधान होने के बाद भी यह पुराण विष्णु और शिव के अभिन्नता का प्रतिपादक है। विष्णु पुराण में मुख्य रूप से श्रीकृष्ण चरित्र का वर्णन है, यद्यपि संक्षेप में राम कथा का उल्लेख भी प्राप्त होता है। और पढ़ें: रामायण के प्रमुख पात्र
Vishnu Puran Complete Guide In Hindi
मूल शीर्षक | श्री विष्णुपुराण (Vishnu Puran) |
लेखक | वेदव्यास |
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भाषा | संस्कृत |
श्रृंखला | पुराण |
विषय | विष्णु भक्ति |
प्रकार | हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ |
कुल श्लोक | 23,000 |
विष्णु पुराण में क्या है?
विष्णु पुराण कुल तेईस हजार ( 23,000) श्लोकों से युक्त है। सम्पूर्ण विष्णु पुराण छः (6) अंशों (इस पुराण में खण्ड अथवा स्कंद के स्थान पर अंश शब्द का प्रयोग किया गया है) में विभक्त है और इन 6 अंशों में कुल 126 अध्याय है।
विष्णु पुराण में भूमण्डल का स्वरूप, ज्योतिष, राजवंशों का इतिहास, विष्णु महिमा चरित्र आदि विषयों को बड़े तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इस पुराण में धार्मिक तत्त्वों का सरल और सुबोध शैली में वर्णन किया गया है।
यद्यपि समस्त अठारह पुराणों में विष्णु पुराण का स्वरूप अत्यंत संक्षिप्त है, तथापि इसमें मायानाशक ज्ञान, तत्त्वों, शिक्षाओं और अख्यानों आदि का वर्णन होने के कारण इसे अन्य पुराणों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ और महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
यही कारण है कि अष्टादश पुराणों के क्रम में विष्णु पुराण का स्थान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और युक्तिसंगत है। महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित यह दिव्य ग्रंथ अपने ज्ञान से भक्तों के अंधकाररूपी मोह का नाश कर उन्हें भगवान् विष्णु के वास्तविक स्वरूप का परिचय देता है।
वास्तव में विष्णु पुराण को एक ऐसा सुलभ साधन कहा जा सकता है, जिसके माध्यम से भक्तजन भगवान् विष्णु को सहज ही प्राप्त कर सकते हैं । इस पुराण को श्रीविष्णु और उनके भक्तों के बीच का एक ऐसा अलौकिक सेतु कहा जा सकता है, जो उन्हें परस्पर भक्ति और प्रेम के बंधन में बाँधता है । यदि साररूप में कहा जाए तो विष्णु पुराण भक्ति, ज्ञान और ईश-उपासना का समुच्चय विलक्षण ग्रंथ है। और पढ़ें: भगवान विष्णु के दशावतार
प्रथम खंड
विष्णु पुराण के प्रथम अंश में कुल 22 अध्याय हैं। इस अंश का आरम्भ पराशर और मैत्रेय ऋषि के संवाद से है। इस अंश में भगवान् विष्णु के परम भक्त ध्रुव की कथा का बड़ा सुंदर चित्रण किया गया है । पितृ-प्रेम से वंचित छ: वर्षीय ध्रुव द्वारा परमपिता भगवान् विष्णु को प्राप्त करने के लिए घोर तप करना और उसके तप से प्रसन्न होकर भगवान् द्वारा उसे अपनी गोद में स्थान प्रदान करना इस पौराणिक कथा का सार है।
ध्रुव-कथा के बाद ध्रुव-वंश में उत्पन्न परम तेजस्वी राजा पृथु, प्रचेताओं के चरित्रों का वर्णन किया गया है। ब्रह्माजी के मानस-पुत्र प्रजापति की उत्पत्ति और उनके वंश का वृत्तांत मैथुनी सृष्टि के प्रारम्भिक काल का विवरण प्रस्तुत करता है। भक्त प्रह्लाद द्वारा भगवान् विष्णु की भक्ति के लिए अपने प्राण संकट में डालना तथा श्रीविष्णु द्वारा नृसिंह-अवतार धारण कर अपने भक्त की रक्षा करने का पौराणिक आख्यान भगवान् और भक्त के परस्पर निस्वार्थ प्रेम को प्रदर्शित करता है। प्रथम अंश के अंत में महर्षि कश्यप और उनके वंश का वर्णन है ।
द्वितीय खंड
विष्णु पुराण का दूसरा अंश सोलह (16) अध्यायों से युक्त है । इस अंश का आरम्भ स्वयंभू मनु के पुत्र प्रियव्रत के वंश-वर्णन से है । इसके बाद जम्बू आदि सातों द्वीपों का भौगोलिक विवरण देकर पृथ्वी के प्राचीनतम स्वरूप का वर्णन किया गया है। सूर्य, नक्षत्र और राशियों की व्यवस्था, सातों ऊध्ध्वलोकों, पातालों तथा गंगाविर्भाव का वर्णन पुराण का महत्त्वपूर्ण पक्ष है । इसके अतिरिक्त पुराण में वर्णित विभिन्न नरकों और भगवन्नाम के माहात्म्य का वर्णन अज्ञानरूपी अंधकार में भटकने वाले मनुष्यों के ज्ञान चक्षु खोलने में समर्थ
दूसरे अंश के अंत में राजा ऋषभदेव के पुत्र तथा प्रथम मन्वंतर के एक विष्णु भक्त राजा जडभरत और सौवीर नरेश के संवाद द्वारा अद्वैत-ज्ञान का उपदेश दिया गया है। एक स्थान पर सौवीर नरेश द्वारा परमार्थ संबंधी प्रश्न किए जाने पर जडभरत ब्रह्म की एकरूपता का वर्णन करते हुए कहते हैं – “राजन! आत्मा केवल एक, व्यापक, सम, शुद्ध, निर्गुण और प्रकृति से परे है। वह जन्म-वृद्धि आदि से रहित सर्वव्यापी और अव्यय है। वह परम ज्ञानमय है, नाम और जाति आदि से उस सर्वव्यापक का मिलन न हुआ था, न है और न कभी होगा। वह विभिन्न प्राणियों में विद्यमान रहते हुए भी एक ही है।”
तृतीय खंड
विष्णु पुराण के अठारह ( 18) अध्यायों से युक्त तीसरा अंश चौदह मन्वंतरों, उनके अधिपति चौदह मनुओं, इन्द्र, देवता, सप्तर्षि और मनु-पुत्रों के विस्तृत वर्णन से आरम्भ होता है। इसमें एक ओर जहाँ चतुर्युगानुसार विभिन्न व्यासों के नाम और ब्रह्म ज्ञान की महिमा का वर्णन किया गया है, वहीं दूसरी ओर ऋग्वेद, शुक्ल, यजुर्वेद, सामवेद तथा तैत्तिरीय यजुर्वेद की शाखाओं के विस्तार का विस्तृत विवरण दिया गया है । पुराण के इस अंश में ब्रह्मचर्य आदि आश्रमों, गृहसंबंधी सदाचार, नामकरण, विवाह-संस्कार की विधि तथा श्रद्धादि का शास्त्रानुसार विवरण गागर में सागर की भांति प्रस्तुत किया गया है।
चतुर्थ खंड
विष्णु पुराण का चौथा अंश चौबीस (24) अध्यायों से सुशोभित है इस अंश में सर्वप्रथम सूर्यवंश के अंतर्गत वैवस्वत मनु के वंश का विवरण राजा इक्ष्वाकु की उत्पत्ति और उनके वंश में उत्पन्न मान्धाता, त्रिशंकु, सगर, सौदास और भगवान् राम के चरित्रों का वर्णन किया गया है । तत्पश्चात् बुध, पुरूरवा, रजि, ययाति आदि राजाओं के चरित्रों का वर्णन कर चन्द्रवंश का विवरण दिया गया है इसके अतिरिक्त इस अंश में बहु, तुर्वसु, अनु, पुरु, क्रोष्टु, अंधक, कुरु आदि जैसे अन्य और भी अनेक प्रसिद्ध राजवंशों का वर्णन है।
पंचम खंड
विष्णु पुराण के पाँचवें अंश के सभी अड़तीस ( 38) अध्यायों में भगवान् विष्णु के श्रीकृष्णावतार के उपक्रम से लेकर यदुवंश के विनाश और पाण्डवों के स्वर्गारोहण का वर्णन किया गया है । इसके अंतर्गत भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा की गई लीलाओं का अत्यंत मनोहारी और काव्यमय वर्णन किया गया है ।
षष्ठ खंड
विष्णु पुराण का छठा और अंतिम अंश मात्र आठ (8) अध्यायों का है। इस अंश में कलियुग- धर्म के गुण-दोषों का विवेचन किया गया है नैमित्तिक, प्राकृतिक और आत्यन्तिक – प्रलय के इन तीन स्वरूपों का विस्तृत वर्णन इस पुराण की एक अन्य विशेषता है । इसके अतिरिक्त इस पुराण में आध्यात्मिकादि त्रिविधि तापों और भगवान् के पारमार्थिक स्वरूप का वर्णन कर ब्रह्मयोग का निरूपण किया है ।
अंत में महर्षि पराशर ग्रंथ का उपसंहार करते हुए कहते हैं – “वेदसम्मत इस पुण्यमय पुराण के श्रवणमात्र से सम्पूर्ण दोषों से उत्पन्न हुआ पाप सहज ही नष्ट हो जाता है। अश्वमेध- यज्ञ में अवभृथ (यज्ञान्त) स्नान करने से जो श्रेष्ठ फल मिलता है, वही फल मनुष्य इस पुराण के श्रवणमात्र से प्राप्त कर लेते हैं यह पुराण संसार से भयभीत हुए पुरुषों का अति उत्तम रक्षक, अत्यंत श्रवण योग्य तथा पवित्रों में परम उत्तम है। यह मनुष्यों के दुःस्वप्नों एवं सम्पूर्ण दोषों को दूर करने वाला, मांगलिक वस्तुओं में परम मांगलिक और संतान व सम्पत्ति प्रदान करने वाला है।”
विष्णु पुराण का महत्व (Importance of Vishnu Puran in Hindi)
महापुराणों में ‘विष्णु पुराण’ का आकार सबसे छोटा है। किन्तु इसका महत्त्व प्राचीन समय से ही बहुत अधिक माना गया है। संस्कृत विद्वानों की दृष्टि में इसकी भाषा ऊंचे दर्जे की, साहित्यिक, काव्यमय गुणों से सम्पन्न और प्रसादमयी मानी गई है। और पढ़ें: सत्यनारायण व्रत कथा
यह पौराणि जहाँ भक्तजन के मन में भगवान् विष्णु की भक्ति का संचार करता है, वहीं भगवान् के दयामयी स्वरूप के दर्शन भी करवाता है।