Ramlila History: कब और कैसे शुरू हुई थी रामलीला?
History of Ramlila: रामलीला भारत की एक ऐसी लोकप्रिय परंपरा है जो सदियों से चली आ रही है। यह भगवान राम के जीवन पर आधारित एक नाट्य प्रस्तुति है जिसमें उनके जन्म से लेकर रावण वध तक के प्रसंगों को नाटकीय तरीके से दिखाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रामलीला की शुरुआत कैसे हुई और यह इतनी लोकप्रिय क्यों है? आइए जानते हैं रामलीला के इतिहास के बारे…
रामलीला की शुरुआत
रामलीला की शुरुआत के बारे में कोई एक निश्चित तारीख या घटना नहीं बताई जा सकती है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि रामलीला की शुरुआत त्रेतायुग में ही हो गई थी। जब लोग भगवान राम की कहानियों को मौखिक रूप से सुनाया जाता। धीरे-धीरे इन कहानियों ने नाटकीय रूप दिया गया और रामलीला का रूप ले लिया। इस प्रकार हम रामायण के इतिहास को 2 रूप में बाट सकते है।
- मौखिक परंपरा: सबसे पहले, रामकथा को कवियों और कहानियों के माध्यम से मौखिक रूप से सुनाया जाता था।
- रामलीला (नाटकीय रूप): धीरे-धीरे, इन कहानियों को नाटकीय रूप दिया गया और लोगों के सामने प्रस्तुत किया जाने लगा।
इतिहास कारो के अनुसार रामलीला का प्रदर्शन 1200 ई. के आस-पास शुरू हुआ माना जाता है, लेकिन यह उस समय मुख्य रूप से संस्कृत भाषा में की जाती थी। जिससे यह केवल राज दरबारों और सम्पन्न वर्ग के परिवारों तक ही सीमित था।
ऐसा भी कहा जाता है कि रामायण मंचन का आरंभ तो वाल्मीक काल से ही शुरू हो गया था। कथा अनुसार त्रेतायुग में श्रीराम के वनवास जाने के बाद अयोध्यावासियों ने चौदह वर्षोंतक राम की बाल लीलाओं का अभिनय कर समय बिताया था।
रामलीला में तुलसी दास का योगदान
रामलीला को जन-जन तक पहुंचाने का श्रेय तुलसीदास जी को जाता है। जब तुलसी दास जी ने सोलहवीं सदी में रामायण को “रामचरित मानस” के रूप में अवधी भाषा में लोगो के समक्ष प्रस्तुत किया। (और पढ़े: रामायण के प्रमुख पात्र
प्रारंभ में शाही संरक्षण के माध्यम से अयोध्या और काशी में रामलीला के मंचन की शुरुवात हुई। बाद में रामलीला का मंचन अवधी भाषा में जगह जगह पर होने लगा। काशी में मेघा भगत को रामलीला के प्रथम आयोजक के रूप में माना जाता है। ये काशी के कतुआपुर मुहल्ले के निवासी थे, जो फुटहे हनुमान के निकट रहते थे। रावण दहन का चलन भी काशी नरेश द्वारा आयोजित “रामनगर की राम लीला” से शुरू ही हुआ था। लखनऊ के ऐशबाग राम लीला की शुरुआत 1860 में हुई थी। इसमें अयोध्या के साधु-संत रामकथा का नाटक खेलते थे.
अंग्रेजी शासन काल में रामलीला का पुनर्निर्माण
दिल्ली में रामलीला: भारत में मुस्लिम आक्रांताओं के आगमन के बाद भारत के कई हिस्सों में रामलीला का आयोजन बंद होने लगा था। मुगल शासक औरंगज़ेब ने तो हिन्दू धर्म संबंधित किसी भी कार्यकम को करने पर पूर्णतः प्रतिबंध ही लगा दिया था। 18 वी शताब्दी में बहादुरशाह ज़फर (Bahadur Shah Zafar) के शासन काल में पुनः एक बार दिल्ली में रामलीला का आयोजन किया गया।
मुस्लिम शासकों की समाप्ति और अंग्रेजो में आगमन के साथ देश में धार्मिक क्रियाकलाप करने की पुनः आजादी मिलने लगी। फलस्वरूप अंग्रेजी शासन के दौरान, 1924 में पुरानी दिल्ली के गांधी मैदान में रामलीला का आयोजन शुरू हुआ। यह आयोजन आज भी निरंतर जारी है और एक प्रमुख सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता है।
थाईलैंड और बर्मा में आज भी होती है रामलीला
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि भारत के अलावा भी रामकथा दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। जावा के सम्राट वलितुंग ने 907 ई. में एक शिलालेख पर रामायण के प्रदर्शन का उल्लेख किया था।
थाईलैंड की रामलीला को ‘रामकिएन’ के नाम से जाना जाता है। थाईलैंड के राजा बोरमत्रयी ने सर्वप्रथम सन 1458 में अपने दरबार में रामलीला का आयोजन किया था। यह एक नृत्य-नाटिका की तरह होती है। इसे किसी भी विशेष अवसर (विवाह, उत्सव इत्यादि) पर किया जा सकता है। सन 1767 में स्याम पर विजय के बाद इस परंपरा को बर्मा में भी फैलाया गया।