नारद पुराण
नारद पुराण (Narad Puran in Hindi)
नारद पुराण (Narad Puran) या ‘नारदीय पुराण’ हिंदुओं के पवित्र अट्ठारह पुराणों में से एक पुराण है। एक वैष्णवपुराण और महर्षि नारद के मुख से कहे जाने के कारण इसका नाम नारद पुराण पड़ा।
The Narada Purana is one of the major eighteen Mahapuranas, a genre of Hindu religious texts. It deals with the places of pilgrimages and features a dialogue between the sage Narada, and Sanatkumara.
नारदपुराण में उपासना, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द शास्त्र और ज्योतिष का विशद विस्तृत वर्णन है। यह पुराण इस दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें अठारह पुराणों की सूची दी गई है।
नारद पुराण में क्या है?
महर्षि नारद द्वारा वर्णित और वेद व्यास ऋषि द्वारा संकलित नारद पुराण एक वैष्णव पुराण है। इस पुराण में 25,000 श्लोको का संग्रह था लेकिन वर्तमान में उपलब्ध संस्करण में केवल 22,000 श्लोक ही उपलब्ध है।
नारद पुराण दो भागों में विभक्त है-
- पूर्व भाग और
- उत्तर भाग।
प्रथम भाग में चार हैं जिसमें सुत और शौनक का संवाद है, ब्रह्मांड की उत्पत्ति, विलय, शुकदेव का जन्म, मंत्रोच्चार की शिक्षा, पूजा के कर्मकांड, विभिन्न मासों में पड़ने वाले विभिन्न व्रतों के अनुष्ठानों की विधि और फल दिए गए हैं। दूसरे भाग में भगवान विष्णु के अवतारों का वर्णन मिलता है।
पूर्व भाग
पूर्व भाग में कुल 125 अध्याय हैं। इस भाग में ज्ञान के विविध सोपानों का सांगोपांग वर्णन प्राप्त होता है। ऐतिहासिक गाथाएं, धार्मिक अनुष्ठान, धर्म का स्वरूप, भक्ति का महत्त्व दर्शाने वाली विचित्र और विलक्षण कथाएं, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष, मन्त्र विज्ञान, बारह महीनों की व्रत-तिथियों के साथ जुड़ी कथाएं, एकादशी व्रत माहात्म्य, गंगा माहात्म्य तथा ब्रह्मा के मानस पुत्र (सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार) आदि का नारद से संवाद का विस्तृत, अलौकिक और महत्त्वपूर्ण आख्यान इसमें प्राप्त होता है। अठारह पुराणों की सूची का उल्लेख भी इसी भाग में संकलित है।
उत्तर भाग
उत्तर भाग में कुल 82 अध्याय हैं। इस भाग में वेदों के छह अंगों का वर्णन है। छह अंग इस प्रकार है- शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छंद और ज्योतिष। महर्षि वसिष्ठ और ऋषि मान्धाता की व्याख्या भी इसी भाग में है।
शिक्षा
शिक्षा के अंतर्गत मुख्य रूप से स्वर, वर्ण आदि के उच्चारण की विधि का विवेचन है। मन्त्रों की तान, राग, स्वर, ग्राम और मूर्च्छता आदि के लक्षण, मन्त्रों के ऋषि, छंद एवं देवताओं का परिचय तथा गणेश पूजा का विधान इसमें बताया जाता है।
कल्प
कल्प में हवन एवं यज्ञादि अनुष्ठानों के सम्बंध में चर्चा की गई है। इसके अतिरिक्त चौदह मन्वन्तर का एक काल या ४ लाख ३२ हजार वर्ष होते हैं। यह ब्रह्मा का एक दिन कहलाता है। अर्थात् काल गणना का उल्लेख तथा विवेचन भी किया जाता है।
व्याकरण
व्याकरण में शब्दों के रूप तथा उनकी सिद्धि आदि का पूरा विवेचन किया गया है।
निरुक्त
शब्दो के निर्वाचन पर विचार किया जाता है। शब्दों के रूढ़ यौगिक और योगारूढ़ स्वरूप को इसमें समझाया गया है।
ज्योतिष
ज्योतिष के अन्तर्गत गणित अर्थात् सिद्धान्त भाग, जातक अर्थात् होरा स्कंध अथवा ग्रह-नक्षत्रों का फल, ग्रहों की गति, सूर्य संक्रमण आदि विषयों का उल्लेख मिलता है।
छंद
छंद के अन्तर्गत वैदिक और लौकिक छंदों के लक्षणों आदि का वर्णन किया जाता है। इन छन्दों को वेदों का चरण कहा गया है, क्योंकि इनके बिना वेदों की गति नहीं है। छंदों के बिना वेदों की ऋचाओं का सस्वर पाठ नहीं हो सकता। इसीलिए वेदों को ‘छान्दस’ भी कहा जाता है।
वैदिक छन्दों में गायत्री, शम्बरी और अतिशम्बरी आदि भेद होते हैं, जबकि लौकिक छन्दों में ‘मात्रिक’ और ‘वार्णिक’ भेद हैं। भारतीय गुरुकुलों अथवा आश्रमों में शिष्यों को चौदह विद्याएं सिखाई जाती थीं- चार वेद, छह वेदांग,पुराण, इतिहास,न्यास और धर्म शास्त्र।
नारद पुराण का महत्व
इस पुराण के विषय में कहा जाता है कि इसका श्रवण करने से पापी व्यक्ति भी पापमुक्त हो जाता है। पापियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जो व्यक्ति ब्रह्म हत्या का दोषी हो, मदिरापन, मांस भक्षण, वेश्यागमन अथवा दूसरे के धन का हरण करना करता है वह पापी है।