Gwalior (M.P): History & Tourist Places in Hindi
ग्वालियर (Gwalior) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के ग्वालियर ज़िले में स्थित एक ऐतिहासिक नगर और राज्य का का एक प्रमुख शहर है।
Gwalior: History, Facts & Tourist Places | wiki
राज्य | मध्य प्रदेश |
क्षेत्रफल | 4560 वर्ग कि.मी. |
भाषा | हिंदी और इंग्लिश |
दर्शनीय स्थल | महाराजा मान सिंह का क़िला, तेली का मंदिर, सास बहू मंदिर, सूर्य मंदिर, गुजरी महल, झांसी की रानी स्मारक आदि। |
संबंधित लेख | मध्य प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थल |
कब जाएं | अक्टूबर से मार्च। |
मध्य प्रदेश के उत्तर में स्थित ऐतिहासिक शहर ग्वालियर अपने किले और खूबसूरत मंदिरों के लिए जाना जाता है। ग्वालियर के किले जैसी भव्यता और विशालता अन्यत्र दुर्लभ है। ग्वालियर की भूमि का भारत के इतिहास में विशेष महत्व रहा है। इतिहास में यहां अनेक युद्ध हुए और निर्दयी इच्छाओं ने मृत्यु का स्वाद चखा।
यहां के किले भारत की प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी रहे हैं। वारेन हेस्टिंग्स ने 1780 में ग्वालियर को भारत की कुंजी कहा था। यहां के नियंत्रण को उन्होंने प्लासी के युद्ध से अधिक महत्व दिया था। इस शहर का क्षेत्रफल 82 वर्ग किलोमीटर है।
ग्वालियर का इतिहास (History of Gwalior)
History of Gwalior: ग्वालियर का नामकरण एक बुद्धिमान संत ग्वालिपा के नाम से हुआ। लगभग दो हजार साल पहले एक राजपूत सरदार सूरज सेन के कुष्ठ रोग का इलाज संत ग्वालिपा ने किया था। सन्त ने सूरज सेन का इलाज पहाड़ की चोटी पर बने तालाब के जल से किया था।
ग्वालिपा सन्त के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए सूरजसेन ने पहाड़ की चाटी पर एक किला बनवाया जिसे “ग्वालियर” के नाम से जाना गया। तालाब का नाम सूरजकुंड पड़ा लेकिन उसका औषधीय गुण समय के साथ क्षीण होता गया।
अलग-अलग काल में अनेक राजपूत वंशों ने ग्वालियर पर शासन किया। ग्वालियर पर शासन करने वाले राजपूतों में कच्छवाह, तोमर और परिहार प्रमुख थी। दास वंश के दूसरे शासक इल्तुतमिश ने 1232 ई. में परिहारों से इस हिन्दु राज्य को जीत लिया। लेकिन तोमर राजपूतों ने 1398 में ग्वालियर को मुस्लिमों से छीन कर अपने नियंत्रण में लिया। और तब से आजादी तक किले का मध्य भारत के इतिहास में सामरिक महत्व बना रहा।
ग्वालियर के शासक मानसिंह ने दिल्ली सल्तनत के सिकंदर लोदी के विरूद्ध 1505 ई. में बगावत कर दी। अन्तत: 1517 ई. में लोदियों की लम्बी नजरबंदी के बाद वे मुक्त हुए। इससे बाद 1754 में वह मराठों के सिंधिया वंश से इसे हार गए थे। बाद में इस किले को मुगलों ने जीत लिया।
18वीं शताब्दी का इतिहास बताता है कि जब तक सिंधिया सत्ता में नहीं आ गए, ग्वालियर अंग्रजों के अनुमोदन पर अन्य लोगों के अधीन रहा। ग्वालियर में भी भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया। 1857 में लड़े गए इस संग्राम का नेतृत्व तांत्या तोपे और वीरांगना लक्ष्मीबाई ने किया था। यद्यपि इसमें अग्रेजों की जीत हुई परन्तु फिर भी इस संग्राम ने भारत की आजादी के बीज बो दिए थे। सिंधिया वंश ने भारत की आजादी तक ग्वालियर पर शासन किया। सिंधिया राज में ग्वालियर ने औद्योगिक और आर्थिक तरक्की हासिल की।
ग्वालियर के दर्शनीय स्थल (Best Places to visit in Gwalior)
Gwalior Tourist Places: चौदहवीं शताब्दी में भारत आए अरब यात्री इबनेबतूता ने कहा था- ग्वालियर सफेद पत्थरों से बना खूबसूरत शहर है। ग्वालियर शहर तीन हिस्सों में विभाजित है। ये तीन हिस्से पुराना ग्वालियर, लश्कर और मोरार हैं। इस ऐतिहासिक शहर में अनेक ऐसे स्थान हैं जो पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
ग्वालियर का किला (Gwalior Fort)
ग्वालियर के पर्यटन स्थलों में यह किला सर्वाधिक प्रसिद्ध है। यह किला जमीन से 300 फुट ऊंचा है। इसकी लम्बाई लगभग तीन किलोमीटर है। पूर्व से पश्चिम की ओर यह किला 600 से 3000 फीट चौड़ा है। शहर के कोने-कोने से इस किले को देखा जा सकता है।राजा मानसिंह तोमर ने ग्वालियर के किले को 15वीं शताब्दी में बनवाया था।
किले में प्रवेश के दो रास्ते हैं। पूर्वी दिशा में ग्वालियर गेट है जहां पैदल जाना पड़ता है। जबकि पश्चिमी दिशा में उर्वई द्वार है जहां वाहन से पहुंचा जा सकता है। किले की पहाड़ी को दस मीटर ऊंची दीवार ने घेर रखा है। एक खड़ी ढाल वाली सड़क किले के ऊपर की ओर जाती है। किले में जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां पत्थर काटकर बनाई गई हैं। भारत के इतिहास में इस किले का बहुत अधिक महत्व रहा है। इस किले को हिन्द के किलों का मोती कहा गया है।
यह किला कई शासकों के अधीन रहा पर कोई इसे पूरी तरह नहीं जीत पाया।ग्वालियर के किले के उत्तरी सिर पर जंहागीरी महल, शाहजहां महल, करना महल, विक्रम महल और जल जौहर कुंड है। जहांगीरी महल और शाहजहां महल, मुस्लिम वास्तुशैली पर आधारित हैं। दोनों महलों में विशाल दर्शक समूह के लिए दो खण्ड हैं। करना महल ग्वालियर के राजा मानसिंह के चाचा का मातृत्व महल था। विक्रम महल राजकुमार विक्रम का महल था। इस महल में विष्णु भगवान का एक छोटा सा मंदिर भी है।
इसी क्षेत्र में जल जौहर कुंड है। जल जौहर कुंड महिलाओं के जौहर के लिए इस्तेमाल होता था। जौहर एक सामूहिक दहन की प्रथा थी। सामूहिक दहन की घटना उस समय हुई जब गुलाम वंश के शासक इल्तुमिश ने परिहारों को पराजित कर किले की घेराबन्दी कर दी थी। नजदीक ही महाराजा भीम सिंह राणा का स्मारक है। भीम सिंह गौहड जाति के जाट सरदार थे।
किले के भीतर लड़कों का प्रसिद्ध सिंधिया स्कूल है। यह स्कूल ग्वालियर के महाराजा द्वारा लगभग सौ वर्ष पहले बनवाया गया था। किले के निर्माण में सर्वाधिक योगदान कच्छवाहों और तोमरों ने दिया था। यहां शासन करने वाले प्रारंभिक मुस्लिमों और बाद में मुगलों ने किले को राजकीय कारागार के तौर पर इस्तेमाल किया।किले में सुबह आठ बजे से शाम छ: बजे तक भ्रमण किया जा सकता है। प्रवेश शुल्क एक रूपया लिया जाता है। किले के भीतर के स्थानों को देखने का अलग-अलग शुल्क निर्धारित है।
मन मंदिर महल (Man temple Palace)
यह महल तोमर वंश के राजा मानसिंह ने 15वीं शताब्दी के अन्त में बनवाया था। किले के दो भूमिगत तल हैं। इस महल के दो खुले प्रांगण हैं जो अपार्टमेन्टस से घिर हुए हैं। ये अपार्टमेन्ट्स कटे हुए पत्थरों, स्तम्भों और ब्रेकेट के बने हैं। इस महल को चित्र मंदिर और चित्रकारी के महल के नाम से भी जाना जाता है। इस महल में मोर व अन्य पक्षियों की चित्रकारी से सजावट की गई है।
यह महल नीली मिट्टी की पच्चीकारी और नक्कासी का बेहतरीन नमूना है। खूबसूरत पत्थरों की चित्रपटी का यह विशाल चेम्बर कभी संगीत का हॉल होता था जिसके पीछे राजकीय महिलाएं संगीत के विशेषज्ञों से संगीत की शिक्षा लेती थीं। औरंगजेब ने अपने भाई को यहीं कैद रखा था। औरंगजेब ने आदेश दिया था कि उबलते हुए तेल में डालकर उसके भाई की हत्या की जाए।
इसी वजह से इस स्थान की अब तक काली दीवारें हैं।संध्या में साउंड एंड लाईट शो या सोनेट लूमियर, यहां के वातावरण को जीवंत कर देता है। यह कार्यक्रम अंग्रेजी में साढे आठ बजे से सवा नौ बजे तक आयोजित किया जाता है।
सास बहू का मंदिर (Sas Bahu Temple)
यह मंदिर सास और बहू को समर्पित है। इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है कि यह मंदिर सहस्रबाहु अर्थात् हजार भुजाओं वाले विष्णु को समर्पित है। ग्यारहवीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर मूर्तिकला का अदभूत नमूना है।
तेली का मंदिर (Teli Ka Mandir)
इस मंदिर को तेलंगाना मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर सौ फुट ऊंचा है। इस मंदिर के निर्माण में दक्षिण भारतीय प्रभाव परिलक्षित होता है। विशेषकर इसकी छत द्रविड़ शैली पर निर्मित है। इसका अग्रभाग इन्डो-आर्यन शैली पर आधारित है। यह मंदिर ग्यारहवीं शताब्दी में बनवाया गया था।
जस विलास महल (Jas Vikas Palace)
सफेद पत्थरों का बना यह खूबसूरत महल 1875 ईसवीं में बनवाया गया था। यह फ्रांस, तस्कन, इटेलियन और कोरियंथम वास्तु की मिश्रित शैली पर आधारित है। यह महल जियाजी राव के काल में बनवाया गया था। जियाजी राव ने 1857 के विद्रोह को दबाने में अग्रेजों का साथ दिया था।
उस समय यह महल बनवाने में 19 लाख रूपये की लागत आई थी।इस महल का कुछ अंश राजकीय संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है। शेष भाग माधवराव सिंधिया का निवास स्थल है। इसका राजकीय दरबार कला का एक शानदार नमूना है जो चार स्तम्भों के सहारे टिका हुआ है।
इस महल के हॉल में एक विशाल कॉरपेट बिछा हुआ है। इस कॉरपेट को 12 बुनकरों ने 13 साल में तैयार किया था। महल की छत पर विश्व के सबसे बड़े दीपाकर क्रिस्टल का जोड़ा है जिनका निर्माण बेल्जियम में हुआ था। इसे पेरिस से लाया गया था। प्रत्येक क्रिस्टल का वजन 3.5 टन है।
सूर्य मंदिर (Sun Temple)
Sun Temple: जीडी बिरला ने इस सूर्य मंदिर का निर्माण 1988 में करवाया था। इस मंदिर को बनवाने की प्रेरणा उन्हें उड़ीसा के सूर्य मंदिर से मिली। मंदिर के बाहरी हिस्से में लाल पत्थर और भीतरी हिस्से में सफेद पत्थरों का प्रयोग किया गया है। इस मंदिर में भगवान सूर्य की सुन्दर प्रतिमा स्थापित है। (और पढ़ें: कोर्णाक का सूर्य मंदिर
गौस मोहम्मद का मकबरा (Tomb of Mohammad Ghaus)
महान सूफी संत गौस मोहम्मद की कब्र तानसेन के मकबरे के नजदीक स्थित है। गौस मोहम्मद अफगान राजकुमार था जो बाद सूफी सम्प्रदाय से जुड़ गया। गौस मोहम्मद ने बाबर को ग्वालियर का किला जीतने में मदद की थी। उनका मकबरा परंपरागत मुगल शैली पर आधारित है। इसकी मुख्य विशेषता षट्कोणीय स्तम्भ और नुकीले पत्थरों से बना चित्रपट है।
तानसेन का मकबर (Tomb of Tansen)
यह मकबरा भारत के शास्त्रीय संगीत के जनक मियां तानसेन का है। तानसेन अकबर के नवरत्नों में एक थे। इस मकबर को प्रारंभिक मुगलीय वास्तुशैली के आधार पर बनाया गया है। मकबरा पारंपरिक मुस्लिम शैली के बगीचे से घिरा हुआ है।
हर वर्ष नवम्बर-दिसम्बर माह में यहां अखिल भारतीय संगीत कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। मकबरे के नजदीक ईमली का पेड़ है। कहा जाता है कि तानसेन की मधुर आवाज इसी इमली के पेड़ के फलों को खाने से मधुर हुई थी। इसलिए लोग इमली के पेड़ के फलों खाने के लिए यहां आते रहते हैं।
गुजरी महल (Gujri Mahal)
15 शताब्दी में गुजरी महल का निर्माण हुआ। यह इमारत राजा मानसिंह ने अपनी गुर्जर पत्नी मृगनयिनी के प्रेम में बनवाई थी। आज गुजरी महल मूर्तिकला के बेहतरीन संग्रहालयों में एक है। महल की बहुत सी मूर्तियों को मुगलों ने विकृत कर दिया था। मुगलों की इन हरकतों के बाद भी मूर्तियों की श्रेष्ठता और सुन्दरता शेष है।
विशेषकर ग्यरासपुर की त्रिदैवी शलभंजिका की दुर्लभ प्रतिमा का छोटे रूप में सारांश बचा हुआ है। प्रतिमा को संग्रहालय के क्यूरेटर के संरक्षण में रखा गया है जिसे विशेष आग्रह पर देखा जा सकता है। संग्रहालय सोमवार के अतिरिक्त सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।
पुरातात्विक संग्रहालय (Archaeological Museum)
इस संग्रहालय में अनेक मूर्तियां हैं। ये मूर्तियां नरसर, बतेसर, खेरात, अटेर, रनोद, सुरवया, तेराही और पधावली से प्राप्त की गई हैं। इसमें रखी मूर्तियां सातवीं शताब्दी से दसवीं शताब्दी के बीच की हैं। यह काल गुर्जर प्रतिहारों का काल था। ये मूर्तियां गुप्त काल के बाद की कला को प्रदर्शित करती हैं।
गुरूद्वारा दाता बन्दी (Gurudwara Data Bandi)
यह सिक्खों के छठे गुरू सन्त हरगोविन्द सिंह जी की याद में बनवाया गया। इसका सम्पूर्ण ढांचा सफेद संगमरमर से हुआ बना है। इसे रंगीन कांच से सजाया गया है। इस गुरूद्वारे में दो सरोवर हैं। गुरूद्वारे में प्रवेश करने के लिए सिर कपड़े से ढका होना चाहिए।
झांसी की रानी स्मारक (jhansi ki rani memorial, Gwalior)
यह फूलबाग के नजदीक स्थित है। झांसी की रानी भारतीय इतिहास की सबसे अधिक प्रसिद्ध महिलाओं में से एक हैं। रानी लक्ष्मीबाई ने ग्वालियर में मृत्यु प्राप्त की थी। रानी भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करने वाली प्रमुख सेनानायकों में एक थीं।
ब्रिटिश सेनापति ह्यूरोज से कालपी में पराजित होने के बाद वे ग्वालियर आईं। लेकिन यहां के शासक महाराजा सिंधिया ने रानी के साथ विश्वासघात किया। सिंधिया ने रानी को कमजोर घोड़ा दिया। रानी ने 18 जून 1858 में लड़ते हुए अपना बलिदान दे दिया।
ग्वालियर कैंसे पहुंचे (How to reach Gwalior)
मध्य भारत में स्थित होने और इसकी सुविधाजनक स्थिति के कारण ग्वालियर आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए सड़क, वायु या रेल मार्ग को अपनी सुविधा के अनुसार अपनाया जा सकता है।
वायु मार्ग- ग्वालियर का घरेलू एयरपोर्ट नियमित उडानों से दिल्ली, मुम्बई, भोपाल और इंदौर से जुड़ा है। ग्वालियर का नजदीकी राष्ट्रीय एयरपोर्ट आगरा है। आगरा ग्वालियर से 118 किलोमीटर दूर है और यहां पहुंचने में लगभग 3 घंटे का समय लगता है। आगरा से टैक्सी या बस के माध्यम से भी ग्वालियर पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग- रेल मार्ग से ग्वालियर पहुंचना बहुत सरल है। ग्वालियर रेलवे स्टेशन दिल्ली, मुम्बई, भोपाल और अन्य दूसर शहरों से सीधा जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग- दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 2 से पलवल, कौसीकला, होडल और मथुरा होते हुए आगरा पहुंचा जा सकता है जहां राष्ट्रीय राजमार्ग 3 ग्वालियर से जुड़ा हुआ है। भारत के विभिन्न शहरों से बसों के माध्यम से ग्वालियर जुड़ा हुआ है।
कब जाएं- सर्दियों के महीने ग्वालियर जाने के लिए सबसे उत्तम है।अक्टूबर माह के अन्त से मार्च के प्रारंभिक समय पर्यटन के लिहाज से आदर्श अवधि है। गर्मियों में ग्वालियर जाने से बचना चाहिए
कहां ठहरें- ग्वालियर में ठहरने के लिए विभिन्न प्रकार के होटल उपलब्ध हैं। अपनी क्षमता के अनुसार विभिन्न स्तरों के होटलों का चयन किया जा सकता है।
ग्वालियर से क्या खरीदे (Gwalior is Famous for)
बड़ा चौक, ग्वालियर और मोरार के भीड़ भरे बाजारों की दुकानें प्लास्टिक, ग्रासरी और टेक्सटाइल के सामान से भरी रहती हैं। सुगंधित इत्र और स्थानीय शिल्प की खरीददारी के लिए ग्वालियर बेहतर जगह है।
यहां की चंदेरी और महेश्वरी साड़ियां के साथ कोसा और तुषार शिल्क को साड़ी की दुकानों और राज्य सरकार द्वारा संचालित इम्पोरियम से खरीदा जा सकता है। राज्य के इम्पोरियम से डोकरा की जंजीरों से लेकर जनजातीय आभूषणों तक की खरीददारी की जा सकती है।