सप्तपुरी (Sapta Puri)
हिन्दू मान्यता अनुसार भारत में सात ऐसे स्थान या नगर हैं, जिन्हें ‘मोक्षदायिनी सप्त पुरियां’ कहा जाता है।
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः ।।
पुराणानुसार ये सात नगर या तीर्थ जो मोक्षदायक कहे गये हैं। वे हैं:-
- अयोध्या
- मथुरा
- माया (हरिद्वार)
- काशी, (वाराणसी)
- कांची
- अवंतिका (उज्जयिनी) और
- द्वारका
काशी (वाराणसी)
काशी भारत के पूर्वी उत्तर प्रदेश में गंगा के तट पर स्थित, भगवान् शंकर की महिमा से मण्डित काशी (वाराणसी) को विश्व का प्राचीनतम नगर होने का गौरव प्राप्त है। यह 12 ज्योतिर्लिंग, शक्तिपीठ तथा सप्तपुरियों में से एक है।
यहां कण-कण में भगवान शिव का वास है। ऐसी मान्यता है कि इस नगरी को भगवान शिव ने स्वयं बसाया था। परमात्मा ने जब एक से दो होकर शिव तथा शक्ति के रूप में प्रकट होकर जगत कल्याण के लिए तपस्या का स्थान चुना, तो काशी का निर्माण हुआ।
वरणा व असी नदी के मध्य स्थित होने के कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा है। भगवान आदि शंकराचार्य ने अपनी धार्मिक दिग्विजय यात्रा यहीं से प्रारंभ की थी।
काशी में शास्त्रों के अध्ययन, अध्यापन की प्राचीन परम्परा रही है। कबीर, रामानन्द, तुलसी सदृश संतों ने काशी को अपनी कर्मभूमि बनाया। बौद्धतीर्थ सारनाथ पास में ही स्थित है। भगवान् बुद्ध ने यहां अपना पहला उपदेश दिया था।
शैव, शाक्त, वैष्णव, बौद्ध, जैन पंथों के उपासक काशी को पवित्र मानकर यात्रा-दर्शन करने यहाँ आते हैं। सातवें तथा तेइसवें तीर्थंकरों का यहाँ आविर्भाव हुआ।
मणिकर्णिका घाट, दशाश्वमेध घाट, केदारघाट, हनुमान घाट प्रमुख घाट हैं। हजारों मन्दिरों की नगरी काशी भारत की सांस्कृतिक राजधानी कही जा सकती है।
काशी पहले आकाश में शिव रूपी पुरुष के पास स्थिर हुई। तप के कारण उनके शरीर से निकली जल धाराओं को रोकने के प्रयास में विष्णु के कान से एक ‘मणि’ गिरी, वहां ‘मणिकर्णिका’ घाट है। जल में डूबने से बचाने के लिए शिव ने सम्पूर्ण काशी को अपने त्रिशूल पर धारण कर लिया और काशी आज भी शिव के त्रिशूल पर ही विराजमान है।
काशी में शिव का नाम ‘विश्वनाथ’ है। विश्वनाथ मंदिर की प्राचीनता अज्ञात है। मंदिर एक बहुत ही संकरी गली में है। इसे ‘ज्ञानवापी’ भी कहा जाता है।
मूल मंदिर के पास ही माँ अन्नपूर्णा देवी मंदिर है। गंगा काशी की प्राण है। यहाँ स्थित दशाश्वमेध घाट की सायंकालीन ‘गंगा आरती’ विश्व प्रसिद्ध है। दशाश्वमेध घाट के बारे में पौराणिक मान्यता है कि यहां स्वयं ब्रह्मा जी ने दस बार अश्वमेघ यज्ञ किया था
इन तीन मुख्य मंदिरों के अलावा गली-कूचों में भैरव, गणेश, काली, भवानी, हनुमान आदि के कई मंदिर हैं। यहां मूल शिव मंदिर के अलावा दो अन्य शिव मंदिर नया काशी विश्वनाथ मंदिर और संत करपात्री महाराज द्वारा बना शिव मंदिर है।
मायापूरी (हरिद्वार)
पावन क्षेत्र हरिद्वार को मायापुरी या गंगाद्वार नाम से भी जाना जाता है। पवित्र गंगा हिमालय से 320 कि.मी. की पर्वत-क्षेत्र की यात्रा करने के बाद यहीं पर मैदानी भाग में प्रवेश करती है।
चूंकि 4 धाम के यात्रा का प्रारम्भ गंगा स्नान से ही प्रारम्भ होता है। इसलिए इसे ‘हरिद्वार‘ कहते है। यहाँ के हरि की पौड़ी तथा अन्य घाटों पर गंगास्नान करने से अक्षय पुण्य मिलता है। हरिद्वार में प्रत्येक 12 वे वर्ष कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।
दक्ष प्रजापति ने कनखल में ही वह इतिहास प्रसिद्ध यज्ञ किया था जिसमें देवी सती ने प्राण त्याग दिए थे। हरिद्वार के आसपास के क्षेत्र में सप्तसरोवर, मनसादेवी, भीमगोड़ा. ऋषिकेश आदि तीर्थ स्थापित हैं।
कांची (कांचीपुरम)
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कांची तमिलनाडु के चिंगल पेठ जिले में मद्रास से लगभग 40 कि. मी. दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। उत्तर भारत में जो स्थान काशी को प्राप्त है, दक्षिण भारत में वही स्थान कांचीवरम् या कांचीपुरम को प्राप्त है। इसे दक्षिण भारत का काशी भी कहा जाता है। जगद्गुरु आदि शंकराचार्य ने यहाँ कामकोटि पीठ की स्थापना की थी।
ब्रह्मपुराण के अनुसार कांची को भगवान् ‘शिव का नेत्र’, माना गया है। कांची में 51 शक्ति पीठों में से एक ‘कामाक्षी शक्तिपीठ‘ भी है। यहाँ सती का कंकाल गिरा था। यही पर ब्रह्माजी ने भी तपस्या कर भगवान विष्णु से लक्ष्मी सहित निवास करने की प्रार्थना की थी।
अतः यह शिव भक्त और वैष्णव के सम्मेलन का एक मात्र क्षेत्र हैं। इस नगर में शिवकांची व विष्णुकांची नाम के दो भाग हैं। शिव कांची इस नगर में ही है और विष्णु कांची 5 किलोमीटर दूर हैं।
यहां 108 शिवस्थल माने जाते है, जिनमे कामाक्षी, एकाम्बर नाथ, कैलासनाथ, राजसिंहेश्वर, वरदराज प्रमुख मन्दिर हैं। महर्षि अगस्त्य ने भी यहां लोक कल्याण के लिए घोर तप किया था।
शिव कांची में सर्वतिर्थ सरोवर में स्नान और श्राद्ध का विशेष महत्व है। इस सरोवर के बीच में और चारो और मंदिर बने हुए हैं। विष्णु कांची में 18 विष्णु मंदिर है, परन्तु यहां का प्रमुख मंदिर वरदराज मंदिर है। एक मंदिर पश्चिम तट पर बना है जहां नरसिंह अवतार के दर्शन होते है।
यद्यपि कांची में 2 भागों में अनेक मंदिर है फिर भी मुख्य मंदिर 4 ही है जिनकी विशेष मान्यता है एकाम्बरनाथ, कामाक्षी, वामन तथा सुब्रह्मण्यम मंदिर है।
कामरूप (कामख्या)
कामाख्या का प्राचीन नाम कामरूप है। यह शाक्त संप्रदाय का प्रधान शक्तिपीठ है। कामाख्या का मंदिर गुवाहाटी से 30 किलोमीटर दूर नीलगिरि नामक पहाड़ी पर बना है। यह मंदिर बहुत ही भव्य तथा विशाल है लेकिन यहां कोई देव प्रतिमा नहीं है। प्रतीक रूप में एक 1. गुह्याकार कुंड है।
मौजूद मंदिर कूच बिहार के महाराजा को बनवाया हुआ है। लोक श्रुति है कि कामाख्या जागृत शक्तिपीठ है। यहां माघ, भाद्रपद तथा आश्विन मास में विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं। लोहित कुंड तथा मानस कुंड यहां के प्रसिद्ध सरोवर हैं, जहां स्नान का विधान है।
ब्रह्मपुत्र नदी के बीचों बीच एक चट्टान पर शिव और उमा का मंदिर है। यहां नौका से जाया जय है। कामाख्या के पास रुद्र पीठ, श्री पीठ आदि मंदिर बने हुए हैं।
मधुपुरी (मथुरा)
मथुरा भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में यमुना के किनारे पर स्थित पावन नगरी है। है। यहां भगवान कृष्ण ने अवतार लिया था। पुराणों में मथुरा को साक्षात गोलोक, बैकुंठ आदि कहा गया है। यहाँ पर कात्यायनी शक्तिपीठ भी है।
पतित पावनी यमुना के किनारे बसी मथुरा में कृष्ण सदा निवास करते हैं। उनकी समस्त बाल लीलाओं और रासलीलाओं का संबंध मथुरा तथा उससे जुड़े 84 कोस की परिधि से है, जिसे ‘ब्रज’ कहा जाता है। यधपि मथुरा को कृष्ण अवतार से पूर्व ही सप्तपूरी होने का गौरव प्राप्त था।
ध्रुव ने यहीं पर तपस्यारत रहकर भगवत्-प्राप्ति की। बाद में मधु नामक राक्षस ने अपने नाम पर मथुरा या मधुपुरी नामक नगर बसाया। त्रेतायुग में इसी मधु और उसके पुत्र लवणासुर को मार कर इसे पुनः बसाया।
यदुवंशी राजा उग्रसेन के शासन काल में मथुरा का वैभव शिखर पर था, परन्तु उनके बेटे कंस ने अपने पूर्वजों के पुण्य को मिट्टी में मिला दिया तथा जनता को संत्रस्त किया। भगवान् श्रीकृष्ण ने कंस को मार कर मथुरा का उद्धार किया। यहीं पर कंस किले में लीलाधर श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
मथुरा में अनेक घाट तथा प्राचीन मन्दिर हैं। द्वारिकाधीश जी का सबसे प्रसिद्ध मन्दिर है। मथुरा के चार कोनों पर चार शिव मंदिर- भूतेश्वर, रंगेश्वर, पिप्लेश्वर तथा गोकर्णेश्वर विराजमान हैं।
मथुरा के पास ही वृंदावन का पावन क्षेत्र हैं जहाँ अनेक मन्दिर तथा श्रीकृष्ण व राधा से सम्बन्धित स्थल हैं । वराह पुराण’, भागवत, महाभारत में मथुरा का वर्णन आया है। यह मोक्षदायिनी पुरी है तथा सब प्रकार के पापों का शमन करने वाली नगरी है।
अवंतिका (उज्जैन)
अवंतिका अर्थात उजैन को भी परम तीर्थ माना गया है। अवनतिका उज्जैन का प्राचीन नाम हैं। यहां भगवान शिव महाकाल के रूप में विराजमान है। उज्जैन के महाकाल की गणना द्वादश ज्योतिर्लिंगों में भी होती हैं।
भगवान महाकाल का मंदिर एक झील के किनारे बसा है निकट के रणघाट में स्थान करके श्रद्धालु मंदिर में दर्शन करने जाते हैं। महाकाल की भस्म आरती जग प्रसिद्ध है।
भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर-वध यहीं किया था। और भगवती सती का ऊर्ध्व ओष्ठ भी यही पर गिरा था। अतः यह ज्योतिर्लिंग और शक्ति पीठ दोनो है। आचार्यश्रेष्ठ सांदीपनि का आश्रम भी उज्जयिनी में ही था जहाँ श्री कृष्ण ने शिक्षा ग्रहण करी थी।
महाकाल मंदिर के अलावा उज्जैन में भैरव मंदिर, मंगलनाथ मंदिर, गोपाल मंदिर, हर सिद्धि मंदिर,सिद्धि वट, गढ़कालिका, संदीपनी आश्रम, और भर्तहरी गुफ़ा यहां के प्रमुख तीर्थ स्थल है। शिप्रा नदी का घाट अंत्यंत सुन्दर बना है, कुंभ का मेला यही पर लगता हैं।
मौर्यकाल में उज्जयिनी मालवा प्रदेश की राजधानी थी। सम्राट् अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा ने यहीं प्रव्रज्या धारण की। यह कई महाप्रतापी सम्राटों की राजधानी भी रही।
अयोध्या पूरी (अयोध्या)
भगवान् श्री राम का जन्म-स्थान अयोध्या सरयू के तट पर स्थित अति प्राचीन नगर है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार इसे स्वयं भगवान मनु ने स्थापित किया था।
मनुना मानवेन्द्रेण स पुरी निर्मिता स्वयं। (वाल्मीकिरामायण, बालकाण्ड)
स्कन्द पुराण के अनुसार यह नगरी ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का समन्वित रूप है। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने स्वयं यहाँ की ब्रह्मकुण्ड की स्थापना किया था। यह इक्ष्वाकुवंशी वंश के राजाओं की राजधानी रही है। भगवान श्री राम का जन्म इसी पावन भूमि में हुआ था। अयोध्या नगर भगवान विष्णु के सुदर्शन में बसी है।
जब मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम सब अयोध्यावाशियो के साथ दिव्य धाम चले गये। तब यह नगरी उजड़ गयी, श्रीराम के पुत्र ‘कुश‘ ने इसे पुनः बसाया। इसके बाद यह नगरी पुनः उजाड़ हो गयी, तब महान चक्रवती सम्राट राजा विक्रमादित्य ने इसे बसाया। उन्होंने अयोध्या में सरोवर, देवालय आदि बनवाये। सिद्ध सन्तों की कृपा से राम-जन्मस्थल पर दिव्य मन्दिर का निर्माण कराया यह कोटि-कोटि हिन्दुओं का श्रद्धा-केन्द्र रहा है।
वर्ष 1528 मुस्लिम आक्रान्ता बाबर ने इस भव्य मन्दिर का विध्वंस कर दिया और इसके अवशेषों से मस्जिद बना दी। इस संघर्ष में 77 युद्धों में तीन लाख से अधिक समभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दी।
भारत की आजादी के बाद ये वर्षो तक न्यायालय में विवाद का विषय रहा। हिन्दू पक्ष ने यह सिद्ध कर दिया कि यह विवादित जमीन श्रीराम की जन्म भूमि है। निर्णय पाँच जजों की मुख्य न्यायाधीश ‘रजंन गोगोई’ की अध्यक्षता वाली बेंच द्वारा 9 नवंबर 2019 को दिया। सर्वोच्च न्यायालय की बेंच ने 5-0 से एकमत होकर विवादित स्थल को मंदिर का स्थल मानते हुए, फैसला रामलला के पक्ष मे सुनाया।
इसके अंतर्गत विवादित भूमि को राम जन्मभूमि माना गया और मस्जिद के लिये अयोध्या में 5 एकड़ ज़मीन देने का आदेश सरकार को दिया। अब वहां पर भव्य श्री राम मंदिर निर्माण किया जा रहा है।
यहाँ पर हनुमानगढ़ी मन्दिर, कनक भवन, सीता रसोई, नागेश्वर मन्दिर, दर्शनेश्वर शिव मन्दिर आदि धार्मिक स्थान विद्यमान हैं रामघाट, स्वर्गद्वार, ऋणमोचन, जानकी घाट, लक्ष्मण घाट आदि सरयू तट पर घाट बने हुए है।
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