Amalaki Ekadashi: आमलकी एकादशी व्रत कथा, मुहूर्त एवं पूजा विधि
Amalaki Ekadashi: आमलकी एकादशी का व्रत हिन्दू धर्म में फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है। इसे आमलकी (आंवला) के नाम पर रखा गया है। आमलकी एकादशी को भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष का पूजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि एकादशी के शुभ दिन भगवान विष्णु इस पेड़ में निवास करते हैं।
आमलकी एकादशी

आधिकारिक नाम | आमलकी एकादशी |
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तिथि | फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि |
अनुयायी | हिन्दू |
प्रकार | हिन्दू व्रत |
उद्देश्य | विष्णुलोक की प्राप्ति |
सम्बंधित लेख | एकादशी व्रत, एकादशी में चावल निषेध क्यों? |
Important Timings on Amalaki Ekadashi 2025
आमलकी एकादशी या आमलका एकादशी, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष (चंद्रमा का वैक्सिंग चरण) की ‘एकादशी‘ (11वें दिन) को मनाया जाता है। यह ग्रेगोरियन कैलेंडर में फरवरी-मार्च के महीनों के बीच आता है। चूंकि आमलकी एकादशी ‘फाल्गुन’ के महीने में मनाई जाती है, इसलिए इसे ‘फाल्गुन शुक्ल एकादशी’ भी कहा जाता है। आमलकी एकादशी इस वर्ष 2025, 10 मार्च (सोमवार) को पड़ रहा है।
Sunrise | March 10, 2025 6:44 AM |
Sunset | March 10, 2025 6:30 PM |
Ekadashi Tithi Begins | March 09, 2025 7:45 AM |
Ekadashi Tithi Ends | March 10, 2025 7:45 AM |
Hari Vasara End Moment | March 10, 2025 1:52 PM |
Dwadashi End Moment | March 11, 2025 8:14 AM |
Parana Time | March 11, 6:43 AM – March 11, 8:14 AM |
Amalaki Ekadashi festival dates between 2025 & 2030
2025 | Monday, 10th of March |
2026 | Friday, 27th of February |
2027 | Thursday, 18th of March |
2028 | Tuesday, 7th of March |
2029 | Sunday, 25th of February |
2030 | Friday, 15th of March |
आमलकी एकादशी कथा और पूजन विधि
युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा : श्रीकृष्ण! मुझे फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम और माहात्म्य बताने की कृपा कीजिये।
भगवान श्री कृष्ण बोलेः महाभाग धर्मनन्दन ! फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘आमलकी’ है। इसका पवित्र व्रत विष्णुलोक की प्राप्ति कराने वाला है।
राजा मान्धाता ने भी महात्मा वशिष्ठ जी से इसी प्रकार का प्रश्न पूछा था, जिसके जवाब में वशिष्ठ जी ने कहा था महाभाग भगवान विष्णु के थूकने पर उनके मुख से चन्द्रमा के समान कान्तिमान एक बिन्दु प्रकट होकर पृथ्वी पर गिरा उसीसे आमलक (आँवले) का महान वृक्ष उत्पन्न हुआ, जो सभी वृक्षों का आदिभूत कहलाता है।
इसी समय प्रजा की सृष्टि करने के लिए भगवान ने ब्रह्माजी को उत्पन्न किया और ब्रह्माजी ने देवता, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, नाग तथा निर्मल अंतःकरण वाले महर्षियों को जन्म दिया। उनमें से देवता और ऋषि उस स्थान पर आये, जहाँ विष्णुप्रिय आमलक का वृक्ष था। महाभाग उसे देखकर देवताओं को बड़ा विस्मय हुआ क्योंकि उस वृक्ष के बारे में वे नहीं जानते थे।
उन्हें इस प्रकार विस्मित देख आकाशवाणी हुई: महर्षियो! यह सर्वश्रेष्ठ आमलक का वृक्ष हैं, जो विष्णु को प्रिय है। इसके स्मरणमात्र से गोदान का फल मिलता है। स्पर्श करने से इससे दुगना और फल भक्षण करने से तिगुना पुण्य प्राप्त होता है। यह सब पाप को हरनेवाला वैष्णव वृक्ष है।
इसके मूल में विष्णु, उसके ऊपर ब्रह्मा, स्कन्ध में परमेश्वर भगवान रुद्र शाखाओं में मुनि टहनियों में देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्रण तथा फलों में समस्त प्रजापति वास करते हैं। आमलकी सर्वदेवमय है अतः विष्णुभक्त पुरुषों के लिए यह परम पूज्य है। इसलिए सदा प्रयत्नपूर्वक आमलकी का सेवन करना चाहिए।
ऋषि बोले आप कौन हैं ? देवता या कोई और ? हमें ठीक ठीक बताइये। पुन: आकाशवाणी हुई जो सम्पूर्ण भूतों के कर्ता और समस्त भुवनों के स्रष्टा हैं, जिन्हें विद्वान पुरुष भी कठिनता से देख पाते हैं, मैं वही सनातन विष्णु हूँ।
देवाधिदेव भगवान विष्णु का यह कथन सुनकर वे ऋषिगण भगवान की स्तुति करने लगे। इससे भगवान श्रीहरि संतुष्ट हुए और बोले ‘महर्षियों’ तुम्हें कौन सा अभीष्ट वरदान दूँ ?
ऋषि बोले भगवन् ! यदि आप संतुष्ट हैं तो हम लोगों के हित के लिए कोई ऐसा व्रत बतलाइये. जो स्वर्ग और मोक्षरुपी फल प्रदान करनेवाला हो ।
श्री विष्णु जी बोले : महर्षियो! फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष में यदि पुष्य नक्षत्र से युक्त एकादशी हो तो वह महान पुण्य देनेवाली और बड़े बड़े पातकों का नाश करनेवाली होती है। इस दिन आँवले के वृक्ष के पास जाकर वहाँ रात्रि में जागरण करना चाहिए। इससे मनुष्य सब पापों से छुट जाता है और सहस्र गोदान का फल प्राप्त करता है। विप्रगण यह व्रत सभी व्रतों में उत्तम है, जिसे मैंने तुम लोगों को बताया है।
ऋषि बोले भगवन् ! इस व्रत की विधि बताइये। इसके देवता और मंत्र क्या हैं? पूजन कैसे करे? उस समय स्नान और दान कैसे किया जाता है?
भगवान श्रीविष्णुजी ने कहा द्विजवरो इस एकादशी को व्रती प्रातः काल दन्तधावन करके यह संकल्प करे कि हे पुण्डरीकाक्ष हे अच्युत । मैं एकादशी को निराहार रहकर दुसरे दिन भोजन करूँगा। आप मुझे शरण में रखें। ऐसा नियम लेने के बाद पतित, चोर, पाखण्डी, दुराचारी, गुरुपत्नीगामी तथा मर्यादा भंग करनेवाले मनुष्यों से वह वार्तालाप न करे । अपने मन को वश में रखते हुए नदी में पोखरे में, कुएँ पर अथवा घर में ही स्नान करें। स्नान के पहले शरीर में मिट्टी लगाये ।
मृतिका लगाने का मंत्र
अश्वकान्ते रथक्रान्ते विष्णुक्रान्ते वसुन्धरे।
मृतिके हर में पापं जन्मकोटयां समर्जितम् ॥
अर्थ: बसुन्धरे तुम्हारे ऊपर अश्व और रथ चला करते हैं तथा वामन अवतार के समय भगवान विष्णु ने भी तुम्हें अपने पैरों से नापा था। मृतिके मैने करोड़ों जन्मों में जो पाप किये हैं, मेरे उन सब पापों को हर लो।”
स्नान का मंत्र
त्वं मातः सर्वभूतानां जीवनं ततु रक्षकम् ।
स्वेदजोद्भिज्जजातीनां रसानां पतये नमः ॥
स्नातोऽहं सर्वतीर्येषु हृदप्रस्रवणेषु च।
नदीषु देवखातेषु इदं स्नानं तु मे भवेत् ॥
अर्थ: जल की अधिष्ठात्री देवी मातः तुम सम्पूर्ण भूतों के लिए जीवन हो वही जीवन, जो स्वेदज और उद्भिज्ज जाति के जीवों का भी रक्षक है। तुम रसों की स्वामिनी हो। तुम्हें नमस्कार हैं । आज मैं सम्पूर्ण तीर्थो, कुण्डों, झरनों, नदियों और देवसम्बन्धी सरोवरों में स्नान कर चुका मेरा यह स्नान उक्त सभी स्नानों का फल देने वाला हो ।
विद्वान पुरुष को चाहिए कि वह परशुराम जी की सोने की प्रतिमा बनवाये प्रतिमा अपनी शक्ति और धन के अनुसार एक या आधे माशे सुवर्ण की होनी चाहिए। स्नान के पश्चात् घर आकर पूजा और हवन करे। इसके बाद सब प्रकार की सामग्री लेकर आँवले के वृक्ष के पास जाय वहाँ वृक्ष के चारों ओर की जमीन झाड बुहार, लीप पोतकर शुद्ध करे। शुद्ध की हुई भूमि में मंत्र पाठ पूर्वक जल से भरे हुए नवीन कलश की स्थापना करे।
कलश में पंचरन और दिव्य गन्ध आदि छोड़ दे । धेत चन्दन से उसका लेपन करे उसके कण्ठ में फूल की माला पहनाये सब प्रकार के धूप की सुगन्ध फैलाये जलते हुए दीपकों की श्रेणी सजाकर रखे। तात्पर्य यह है कि सब ओर से सुन्दर और मनोहर दृश्य उपस्थित करे। पूजा के लिए नवीन छाता, जूता और व भी मँगाकर रखे। कलश के ऊपर एक पात्र रखकर उसे श्रेष्ठ लाजो (खीलों) से भर दे। फिर उसके ऊपर परशुरामजी की मूर्ति (सुवर्ण की) स्थापित करे
विशोकाय नमः’ कहकर उनके चरणों की, विश्वरुपिणे नमः’ से दोनों घुटनों की. उग्राय नमः’ से जाँघो की. दामोदराय नमः’ से कटिभाग की, ‘पधनाभाय नमः’ से उदर की,’ श्रीवत्सधारिणे नमः’ से वक्षः स्थल की, चक्रिणे नमः’ से बायी बाँह की, ‘गदिने नमः’ से दाहिनी बाँह की, ‘वैकुण्ठाय नमः’ से कण्ठ की, यजमुखाय नमः’ से मुख की, ‘विशोकनिधये नमः’ से नासिका की, ‘वासुदेवाय नमः’ से क्षेत्रों की, ‘वामनाय नमः’ से ललाट की, ‘सर्वात्मने नमः’ से संपूर्ण अंगो तथा मस्तक की पूजा करें ।
तदनन्तर भक्तियुक्त चित्त से शुद्ध फल के द्वारा देवाधिदेव परशुरामजी को अर्ध्य प्रदान करे।।’आँवले के फल के साथ दिया हुआ मेरा यह अर्ध्य ग्रहण कीजिये ।।
तदनन्तर भक्तियुक्त चित से जागरण करे नृत्य, संगीत, वाघ, धार्मिक उपाख्यान तथा श्रीविष्णु संबंधी कथा वार्ता आदि के द्वारा वह रात्रि व्यतीत करे। उसके बाद भगवान विष्णु के नाम ले लेकर आमलक वृक्ष की परिक्रमा एक सौ आठ या अट्ठाईस बार करे। फिर सवेरा होने पर श्रीहरि की आरती करे ब्राह्मण की पूजा करके वहाँ की सब सामग्री उसे निवेदित कर दे ।
परशुरामजी का कलश, दो वस्त्र, जूता आदि सभी वस्तुएँ दान कर दे और यह भावना करे कि परशुरामजी के स्वरूप में भगवान विष्णु मुझ पर प्रसन्न हो । तत्पश्चात् आमलक का स्पर्श करके उसकी प्रदक्षिणा करे और स्नान करने के बाद विधिपूर्वक ब्राह्मणों को भोजन कराये। तदनन्तर कुटुम्बियों के साथ बैठकर स्वयं भी भोजन करे ।
सम्पूर्ण तीर्थों के सेवन से जो पुण्य प्राप्त होता है तथा सब प्रकार के दान देने दे जो फल मिलता है, यह सब उपर्युक्त विधि के पालन से सुलभ होता है। समस्त यज्ञों की अपेक्षा भी अधिक फल मिलता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। यह व्रत सब व्रतों में उत्तम है।
वशिष्ठजी कहते हैं : महाराज! इतना कहकर देवेश्वर भगवान विष्णु वहीं अन्तर्धान हो गये। तत्पश्चात् उन समस्त महर्षियों ने उक्त व्रत का पूर्णरूप से पालन किया नृपश्रेष्ठ इसी प्रकार तुम्हें भी इस व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं युधिष्ठिर यह दुर्धर्ष व्रत मनुष्य को सब पापों से मुक्त करने वाला हैं।
2025 में पढ़ने वाले एकादशी व्रत (Ekadashi Tithi Date List in 2025)
त्यौहार दिनांक | व्रत |
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जनवरी 10, 2025, शुक्रवार | पौष पुत्रदा एकादशी |
जनवरी 25, 2025, शनिवार | षटतिला एकादशी |
फरवरी 8, 2025, शनिवार | जया एकादशी |
फरवरी 24, 2025, सोमवार | विजया एकादशी |
मार्च 10, 2025, सोमवार | आमलकी एकादशी |
मार्च 25, 2025, मंगलवार | पापमोचिनी एकादशी |
मार्च 26, 2025, बुधवार | वैष्णव पापमोचिनी एकादशी |
अप्रैल 8, 2025, मंगलवार | कामदा एकादशी |
अप्रैल 24, 2025, बृहस्पतिवार | वरुथिनी एकादशी |
मई 8, 2025, बृहस्पतिवार | मोहिनी एकादशी |
मई 23, 2025, शुक्रवार | अपरा एकादशी |
जून 6, 2025, शुक्रवार | निर्जला एकादशी |
जून 21, 2025, शनिवार | योगिनी एकादशी |
जुलाई 6, 2025, रविवार | देवशयनी एकादशी |
जुलाई 21, 2025, सोमवार | कामिका एकादशी |
अगस्त 5, 2025, मंगलवार | श्रावण पुत्रदा एकादशी |
अगस्त 19, 2025, मंगलवार | अजा एकादशी |
सितम्बर 3, 2025, बुधवार | परिवर्तिनी एकादशी |
सितम्बर 17, 2025, बुधवार | इन्दिरा एकादशी |
अक्टूबर 3, 2025, शुक्रवार | पापांकुशा एकादशी |
अक्टूबर 17, 2025, शुक्रवार | रमा एकादशी |
नवम्बर 1, 2025, शनिवार | देवोत्थान / प्रबोधिनी एकादशी |
नवम्बर 15, 2025, शनिवार | उत्पन्ना एकादशी |
दिसम्बर 1, 2025, सोमवार | मोक्षदा एकादशी |
दिसम्बर 15, 2025, सोमवार | सफला एकादशी |
दिसम्बर 30, 2025, मंगलवार | पौष पुत्रदा एकादशी |